लखनऊ : सड़क हादसों पर लगाम लगाने के लिए परिवहन विभाग को 70 नए इंटरसेप्टर मिले हैं। पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने परिवहन विभाग की कई परियोजनाओं के शिलान्यास और उद्घाटन समारोह में 11 इंटरसेप्टर को हरी झंडी दिखाई थी। तब से ये वाहन ट्रांसपोर्ट नगर स्थित आरटीओ कार्यालय के फिटनेस सेंटर में शोपीस बनकर खड़े हैं। परिवहन विभाग के पास इन वाहनों को चलाने के लिए ड्राइवर नहीं हैं। ड्राइवरों की भर्ती के लिए मैनपावर एजेंसी का चयन किया जाना है और टेंडर प्रक्रिया शुरू हो गई है।
सड़क दुर्घटनाएं उत्तर प्रदेश के लिए चिंता का विषय हैं। इन्हें 50 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा गया है। इसे देखते हुए परिवहन विभाग ने सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने और कार्रवाई करने के लिए इंटरसेप्टर वाहन खरीदे हैं। ये इंटरसेप्टर वाहन प्रदेश भर के यात्री एवं मालकर अधिकारियों (पीटीओ) को उपलब्ध कराए जाएंगे। इंटरसेप्टर वाहन उच्च तकनीक वाले वाहन हैं जिनका उपयोग तेज गति पर नजर रखने और सीट बेल्ट न पहनने पर चालान जारी करने के लिए किया जाता है। इंटरसेप्टर वाहन कैमरे, जीपीएस, स्पीड गन और नंबर प्लेट पहचान प्रणाली जैसी तकनीकों से लैस होते हैं। इससे वाहन को रोके बिना ई-चालान जारी किया जा सकता है। ये वाहन 360-डिग्री घूमने वाले और हाई-लेंस कैमरों से लैस हैं।
यूपी में तेज़ गति से वाहन चलाना मौत का सबसे बड़ा कारण है, जो लगभग 49% मौतों का कारण बनता है। इंटरसेप्टर ऐसे वाहनों की अनियंत्रित आवाजाही पर अंकुश लगाने में मददगार साबित हो सकते हैं, लेकिन ड्राइवरों की कमी के कारण ये वाहन महज दिखावे के लिए बनकर रह गए हैं। अपर परिवहन आयुक्त सड़क सुरक्षा मयंक ज्योति ने बताया कि ड्राइवरों के लिए एक मैनपावर एजेंसी के चयन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। एक निविदा जारी की जाएगी और यह प्रक्रिया लगभग दो सप्ताह में पूरी हो जाएगी।
इंटरसेप्टर वाहन डीज़ल से चलते हैं। इसलिए, यदि इनका लंबे समय तक उपयोग नहीं किया जाता है, तो इनके इंजन में तकनीकी समस्याएं आ सकती हैं। इसके अलावा, यदि वाहनों को खुला छोड़ दिया जाता है, तो धूप और बारिश के संपर्क में आने से इनका रंग फीका पड़ सकता है। रखरखाव संबंधी दिक्कतें भी इन वाहनों के संचालन में समस्याएं पैदा कर सकती हैं।
परिवहन विभाग में संभागीय निरीक्षकों (RI) को मोटर वाहन निरीक्षक (MVI) के पद पर पदोन्नत हुए लगभग छह महीने हो गए हैं, लेकिन उन्हें अभी तक सड़क पर तैनात नहीं किया गया है। काफी जद्दोजहद के बाद उनके पहचान पत्र तो बन गए, लेकिन टैबलेट देने का मामला अभी भी अटका हुआ है। इसके अलावा, इन अधिकारियों को इंटरसेप्टर कब मिलेंगे, इसे लेकर भी अनिश्चितता है। एमवीआई तकनीकी रूप से दक्ष होते हैं और वाहनों में तकनीकी बदलाव को आसानी से पहचान सकते हैं। इसी भूमिका को देखते हुए परिवहन विभाग ने अब उन्हें सड़क निरीक्षण के लिए अधिकृत किया है। करीब छह महीने से सड़क पर निरीक्षण न करने को लेकर सवाल उठ रहे थे।
परिवहन विभाग ने इन अधिकारियों को टैबलेट भी देने का फैसला किया है। हालांकि, निरीक्षण प्रक्रिया मोबाइल फोन पर एक ऐप डाउनलोड करके शुरू की जा सकती है। सूत्र बताते हैं कि एमवीआई की तैनाती को लेकर अधिकारियों के बीच खींचतान चल रही है, जिसमें प्रवर्तन अधिकारी भी शामिल हैं। सूत्रों ने बताया कि जब आरआई को एमवीआई में अपग्रेड करने का फैसला लिया गया था, तो कई प्रवर्तन अधिकारियों ने इसका विरोध किया था। हालांकि, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में एमवीआई की तैनाती से सड़क दुर्घटनाओं में कमी आई है।
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