रामपुर जिला अस्पताल की सर्जन पर गंभीर आरोप, सरकारी अस्पताल से निकाला और निजी अस्पताल में कराई डिलीवरी

खबर सार :-
रामपुर जिला अस्पताल की महिला सर्जन पर गंभीर आरोप, सरकारी अस्पताल में इलाज से इनकार कर निजी अस्पताल में मोटी रकम लेकर डिलीवरी कराने का मामला सामने आया।

रामपुर जिला अस्पताल की सर्जन पर गंभीर आरोप, सरकारी अस्पताल से निकाला और निजी अस्पताल में कराई  डिलीवरी
खबर विस्तार : -

रामपुर : जिले के सरकारी स्वास्थ्य तंत्र पर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं। जिला अस्पताल से जुड़ा एक गंभीर मामला सामने आया है, जिसमें महिला सर्जन पर सरकारी अस्पताल में इलाज से इनकार कर निजी अस्पताल में मोटी रकम लेकर डिलीवरी करने का आरोप लगा है। पीड़ित महिला ने मीडिया के सामने आकर पूरे घटनाक्रम का खुलासा किया, जिससे स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लग गया है।

पीड़िता के अनुसार, बीती रात उसे प्रसव पीड़ा के चलते रामपुर जिला अस्पताल लाया गया था। वहां मौजूद महिला सर्जन डॉक्टरों ने यह कहकर इलाज से मना कर दिया कि महिला के शरीर में खून की कमी है और अस्पताल में डिलीवरी कराना संभव नहीं है। महिला का आरोप है कि इस दौरान न तो उसे समुचित उपचार दिया गया और न ही किसी वैकल्पिक सरकारी व्यवस्था की जानकारी दी गई। पीड़िता का कहना है कि जिला अस्पताल में घंटों इंतजार के बाद भी उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई। कथित तौर पर उसे लगातार टालने के बाद अस्पताल से बाहर जाने को मजबूर किया गया। इसके बाद परिजन उसे शहर के एक निजी ग्लोबल अस्पताल में भर्ती कराने ले गए।

सबसे चौंकाने वाला आरोप यह है कि जिला अस्पताल की महिला सर्जन डॉक्टर खुद उस निजी अस्पताल में पहुंचीं और वहीं महिला की डिलीवरी की गई। पीड़िता का दावा है कि इस पूरी प्रक्रिया के लिए उससे मोटी रकम वसूली गई। महिला ने इसे सरकारी पद का दुरुपयोग बताते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की है। पीड़िता ने मीडिया से बातचीत में यह भी कहा कि यदि जिला अस्पताल में ही ईमानदारी से इलाज किया जाता, तो उसे निजी अस्पताल में भारी खर्च नहीं उठाना पड़ता। उसका आरोप है कि जानबूझकर उसे डराया गया और निजी अस्पताल भेजा गया।

मामले की गंभीरता को देखते हुए जिला स्वास्थ्य विभाग की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। इस संबंध में जब रामपुर की मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) दीपा सिंह से संपर्क करने का प्रयास किया गया, तो उनसे कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी। विभागीय चुप्पी ने संदेह को और गहरा कर दिया है। फिलहाल यह मामला स्वास्थ्य विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती बनता नजर आ रहा है। यदि लगाए गए आरोप सही पाए जाते हैं, तो यह न केवल सरकारी अस्पतालों की साख पर चोट है, बल्कि गरीब और जरूरतमंद मरीजों के साथ अन्याय का भी गंभीर उदाहरण है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस मामले में कितनी पारदर्शिता और सख्ती के साथ कार्रवाई करता है।

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