रामपुर में धूमधाम से मनाया गया भगवान वाल्मीकि प्रकटोत्सव, शिक्षा को लेकर लिया गया संकल्प

खबर सार :-
रामपुर में भावाधस द्वारा भगवान वाल्मीकि प्रकटोत्सव धूमधाम से मनाया गया। राष्ट्रीय संचालक दीप लव ने शिक्षा को समाज उत्थान का मूल बताया। कार्यक्रम में अंधविश्वास त्यागने और बच्चों को शिक्षित करने का संकल्प लिया गया। सभी प्रतिभागियों का पारंपरिक स्वागत कर प्रसाद वितरण किया गया।

रामपुर में धूमधाम से मनाया गया भगवान वाल्मीकि प्रकटोत्सव, शिक्षा को लेकर लिया गया संकल्प
खबर विस्तार : -

 रामपुर: आदर्श कॉलोनी, सिविल लाइन स्थित भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज-भावाधस (रजि) कार्यालय में भगवान वाल्मीकि प्रकटोत्सव श्रद्धा, सम्मान और भक्ति के साथ अत्यंत उत्साहपूर्ण वातावरण में मनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत वार्ड सभासद हरी बाबू राज द्वारा भगवान वाल्मीकि जी के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन के साथ की गई। कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण भावाधस के राष्ट्रीय संचालक दीप लव का प्रेरणादायक संबोधन रहा। उन्होंने कहा कि, 'अरबों-खरबों वर्ष पूर्व शरद पूर्णिमा की रात कमल पुष्प पर प्रकट हुए सृष्टि रचयिता भगवान वाल्मीकि न केवल महर्षि थे, बल्कि उन्होंने समस्त मानवता के कल्याण के लिए रामायण जैसा महाग्रंथ रचा। उनकी शिक्षाएं जाति, धर्म या समुदाय से परे हैं – वे समस्त मानव समाज के लिए मार्गदर्शक हैं।'

दीप लव ने शिक्षा को समाज के उत्थान का एकमात्र साधन बताते हुए जोर दिया कि वाल्मीकि समाज को आडंबर, अंधविश्वास, भूत-प्रेत पूजा और नशाखोरी जैसी कुरीतियों को त्याग कर शिक्षा की ओर अग्रसर होना चाहिए। उन्होंने कहा, 'वाल्मीकि समाज को चाहिए कि वह बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित करे ताकि वे सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में सशक्त भूमिका निभा सकें।'

इस आयोजन में बड़ी संख्या में समाज के गणमान्य सदस्य शामिल हुए जिनमें संजय समर्पित, प्रदीप चंद्र, दिव्यांशु दीप, पारस, विनय बाबू, नितिन सरदार, अशोक काका, और कई अन्य सक्रिय कार्यकर्ता मौजूद रहे। सभी वक्ताओं ने एकमत होकर शिक्षा, सामाजिक जागरूकता और आस्था के संतुलन को समाज की प्रगति की कुंजी बताया।

कार्यक्रम में आए सभी आगंतुकों का फूल-मालाओं और पारंपरिक पगड़ी से स्वागत किया गया। समापन पर सभी को प्रसाद वितरण किया गया और उपस्थितजनों ने भगवान वाल्मीकि के आदर्शों पर चलने का संकल्प लिया।

कार्यक्रम का माहौल भक्तिमय, सजीव और सामाजिक समरसता से परिपूर्ण रहा। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक था, बल्कि सामाजिक चेतना का संदेश भी लेकर आया।

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