Mahakal Temple Dress Code: पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग शहर में स्थित महाकाल मंदिर में 'मिनी स्कर्ट' या ऐसी कोई भी छोटी पोशाक पहनकर प्रवेश करने पर पाबंदी लगा दी गई है। मंदिर कमेटी द्वारा एक पोस्टर भी लगाया गया है। इसमें लिखा है कि महिलाओं को स्कर्ट पहनकर मंदिर परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं है।
दरअसल, दार्जिलिंग में साल भर बड़ी संख्या में पर्यटक आते है। विभिन्न पर्यटन स्थलों के साथ-साथ, महाकाल मंदिर भी एक पर्यटन स्थल है। प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग मंदिर में पूजा-अर्चना करने आते है। इस बार मंदिर में महिलाओं के लिए ड्रेस कोड लागू किया गया है। हालांकि, मंदिर में एक वैकल्पिक व्यवस्था भी की गई है। अगर कोई स्कर्ट पहनती भी है, तो मंदिर में प्रवेश के लिए एक लंबा घाघरा पहनाया जाएगा। वहीं से उन्हें वह पोशाक पहनकर मंदिर में प्रवेश करना होगा। हालांकि इस तरह के दिशा-निर्देश से श्रद्धालुओं में असंतोष है, लेकिन कई लोगों ने मंदिर अधिकारियों की इस पहल की सराहना की है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दार्जिलिंग में घोषणा की है कि सिलीगुड़ी में एक बड़े कन्वेंशन सेंटर के बगल में एक भव्य महाकाल मंदिर का निर्माण किया जाएगा। इस मंदिर के निर्माण के लिए एक ट्रस्ट का गठन किया जाएगा और भूमि की पहचान के लिए दार्जिलिंग के जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिए गए हैं। मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि वे पहले भी डिघा में जगन्नाथ मंदिर और राजारहाट में दुर्गा आंगन का निर्माण करवा चुकी हैं। उन्होंने कहा कि यह नया महाकाल मंदिर सबसे ऊंची मीनार वाला होगा और इसके निर्माण की सारी जिम्मेदारी उनकी सरकार की होगी।

ममता बनर्जी ने कुछ ही दिनों पूर्व दार्जिलिंग के महाकाल मंदिर में पूजा अर्चना के बाद यह घोषणा की। उन्होंने मंदिर की वर्तमान स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह मंदिर एक खड़ी और संकरी सीढ़ी से जुड़ा हुआ है, जिस तक पहुंचना बुजुर्गों और दिव्यांगों के लिए बहुत मुश्किल है। उन्होंने कहा, महाकाल मंदिर में पूजा बहुत अच्छी हुई। लेकिन बुजुर्ग और दिव्यांग लोग आसानी से मंदिर तक नहीं पहुंच पाते हैं। उनकी सुविधा के लिए ग्रीन कार्ट की व्यवस्था की जा रही है। उन्होंने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के प्रमुख अनित थापा से भी आग्रह किया कि वे बुजुर्गों और दिव्यांग भक्तों की सुविधा के लिए पर्यावरण-अनुकूल, हरित वाहन की व्यवस्था करें।
मुख्यमंत्री की इस घोषणा का महाकाल मंदिर पूजा समिति और कल्याण समिति के सदस्यों ने गर्मजोशी से स्वागत किया है। उन्होंने इसे एक दूरदर्शी कदम बताया है जो लोगों की आस्था को मजबूत करेगा और पहाड़ियों व तलहटी के बीच एक प्रतीकात्मक जुड़ाव पैदा करेगा। समिति के सचिव किशोर गज़मेर ने कहा कि यह न केवल लोगों की आध्यात्मिक आस्था को गहरा करेगा, बल्कि तलहटी में हमारे प्रतिष्ठित मंदिर का प्रतिबिंब भी होगा। बुजुर्गों और दिव्यांग भक्तों के लिए पर्यावरण-अनुकूल वाहन शुरू करने की योजना वास्तव में विचारशील है।
स्थानीय रिकॉर्ड के अनुसार, दार्जिलिंग नाम की उत्पत्ति का स्रोत, 1765 में लामा डोर्टेय रिंजिंग ने इस पवित्र स्थल पर पहला मठ बनाया था, जिसे डोर्टेय-लिंग मठ के नाम से जाना जाता था। इससे पहले, यह पहाड़ी स्वदेशी लेप्चा लोगों के लिए एक पवित्र स्थान माना जाता था। गज़मेर ने बताया कि 1782 में, लामा डोर्टेय रिंजिंग ने मंदिर का पुनर्निर्माण किया, जिसे आज महाकाल मंदिर के नाम से जाना जाता है। हालांकि, लगभग 1788 में गोरखा आक्रमण के बाद, मूल मठ नष्ट हो गया था। समय के साथ, यह स्थल हिंदू प्रतीकों और पूजा पद्धतियों को दर्शाने लगा, खासकर नेपाली समुदाय के बीच काफी लोकप्रिय हो गया।
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