मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, देश का विदेशी मुद्रा भंडार 22 अगस्त 2025 को समाप्त हफ्ते में 4.38 अरब डॉलर घटकर 690.72 अरब डॉलर रह गया। इससे पहले के हफ्ते में विदेशी मुद्रा भंडार में 1.49 अरब डॉलर का इजाफा हुआ था, जो अब घटकर इस स्तर पर पहुंच गया है।
विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का प्रमुख कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय उत्पादों पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाए जाने को माना जा रहा है। इससे भारतीय निर्यातकों पर दबाव बढ़ा है और विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है। भारतीय रुपये की स्थिरता बनाए रखने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने अमेरिकी डॉलर बेचे, जिससे रुपये की कीमतों में गिरावट को रोकने की कोशिश की। जब विदेशी मुद्रा भंडार कम होता है, तो इसका असर भारतीय रुपये की कीमत पर पड़ता है, जो डॉलर के मुकाबले कमजोर हो सकता है।
आरबीआई के अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का मुख्य घटक विदेशी मुद्रा आस्तियों का गिरना था, जो 3.65 अरब डॉलर घटकर 582.25 अरब डॉलर पर पहुंच गया। इसके अलावा, स्वर्ण भंडार का मूल्य भी 66.5 करोड़ डॉलर घटकर 85 अरब डॉलर रह गया। विशेष आहरण अधिकार (SDR) में भी 4.6 करोड़ डॉलर की कमी आई और यह 18.74 अरब डॉलर पर पहुंच गया।
विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का एक और प्रभाव यह हो सकता है कि भारत को अपनी आयातित वस्तुओं, जैसे तेल और अन्य आवश्यक सेवाओं, के लिए अधिक डॉलर खर्च करने पड़ेंगे। इससे महंगाई में इजाफा हो सकता है, विशेष रूप से तेल और अन्य आवश्यक सामानों के मूल्य में बढ़ोतरी हो सकती है। इसके साथ ही, विदेशी मुद्रा भंडार की कमी से भारत के विदेशी ऋण भुगतान की क्षमता पर भी असर पड़ सकता है।
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे ऊंचा स्तर सितंबर 2024 के अंत में 704.88 अरब डॉलर था। हालांकि, वर्तमान में इसमें गिरावट आने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर कुछ दबाव पड़ने की संभावना है। इससे विदेशी निवेशकों के लिए अनिश्चितता बढ़ सकती है, और वे अपना निवेश वापस भी ले सकते हैं, जिससे देश की आर्थिक स्थिति और अधिक कमजोर हो सकती है।
बताते चलें कि, जब भारतीय रुपये में गिरावट आती है, तो इसके दुष्प्रभाव भारतीय आयातों, महंगाई और विदेशी निवेश पर पड़ सकते हैं। विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का अर्थ यह भी हो सकता है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने रुपये को स्थिर करने के लिए डॉलर बेचा है। हालांकि, इसके साथ कई आर्थिक चुनौतियाँ भी जुड़ी हुई हैं, जिनसे बचने के लिए अधिक सतर्कता और रणनीतिक निर्णय की आवश्यकता है।
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