RBI Repo Rate: आरबीआई की 3–5 दिसंबर को होने वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) बैठक से ठीक पहले एचएसबीसी ग्लोबल इन्वेस्टमेंट रिसर्च और एसबीआई रिसर्च ने रेपो रेट पर अलग-अलग अनुमान जारी किए हैं। एचएसबीसी जहां 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की भविष्यवाणी कर रहा है, वहीं एसबीआई का अनुमान है कि आरबीआई वर्तमान दर 5.5 प्रतिशत पर ही बनाए रखेगा। इन बयानों के बाद आम उपभोक्ता और ऋण लेने वाले ग्राहक असमंजस में हैं कि दरें कम होंगी या नहीं।
एचएसबीसी की ताजा रिपोर्ट का मुख्य तर्क यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी मजबूत है, लेकिन आने वाली तिमाहियों में इसमें थोड़ी नरमी संभावित है। इसलिए आरबीआई इस चक्र में नीतिगत दर में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती कर सकता है। इसके पीछे एचएसबीसी ने कई आर्थिक संकेतकों का हवाला दिया है:
भारत की सितंबर तिमाही की जीडीपी वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रही, जो कि जून तिमाही के 7.8 प्रतिशत और एचएसबीसी के अनुमानित 7.5 प्रतिशत से अधिक है। ग्रॉस वैल्यू एडेड (GVA) वृद्धि भी 8.1 प्रतिशत तक पहुंच गई। रिपोर्ट का मानना है कि जीएसटी दरों में कटौती (सितंबर 2024) के बाद रिटेल खर्च बढ़ा, जिसका अल्पकालिक असर जीडीपी वृद्धि पर पड़ा, लेकिन यह गति लंबे समय तक टिके रहना मुश्किल है।

एचएसबीसी के अनुसार, बढ़ती कंज्यूमर डिमांड ने विनिर्माण उत्पादन को बढ़ावा दिया। कम आय वाले राज्यों में तेजी से वृद्धि इस ट्रेंड की पुष्टि करती है।
अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 50 प्रतिशत रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने के बावजूद भारत की वृद्धि में कोई बड़ी गिरावट नहीं आई। इन कारकों के आधार पर एचएसबीसी को लगता है कि आरबीआई अब दरों में कटौती कर अर्थव्यवस्था को टिकाऊ समर्थन देने की शुरुआत कर सकता है।
एचएसबीसी के विपरीत एसबीआई रिसर्च ने कहा है कि रेपो रेट में फिलहाल कोई बदलाव नहीं होगा और इसे 5.5 प्रतिशत पर ही बरकरार रखा जाएगा। एसबीआई का तर्क अधिक सतर्क और व्यापक आर्थिक वातावरण पर आधारित है।

शुरू में एसबीआई ने भी 25 बीपीएस कटौती की संभावना जताई थी, लेकिन जुलाई-सितंबर तिमाही में 8.2 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि ने इस अनुमान को बदल दिया। एसबीआई के मुताबिक, मजबूत घरेलू मांग और सेकेंडरी-टर्शियरी सेक्टर के योगदान ने नीति ढील की जरूरत को कम कर दिया है।
दुनिया भर के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों पर स्थिर रुख अपनाए हुए हैं। कटौती निर्णय बहुत कम हो रहे हैं। ऐसे में भारत की ओर से जल्दबाजी में कटौती गलत संकेत दे सकती है।
ओवरनाइट रेपो दर और 10-वर्षीय सरकारी बॉन्ड यील्ड का अंतर 40–50 बीपीएस से बढ़कर 100–110 बीपीएस तक पहुंच गया है। एसबीआई का कहना है कि बिना किसी रेट कट के “न्यूट्रल रीज़िम” बनाकर तरलता और यील्ड मैनेजमेंट पर ध्यान देना जरूरी है।
रिपोर्ट के मुताबिक, रेपो रेट स्थिर रखकर आरबीआई को गैर-नीतिगत साधनों से बाजार को स्थिर करने की कोशिश जारी रखनी चाहिए।
एचएसबीसी और एसबीआई दोनों संस्थानों के अनुमान अलग-अलग दिशाओं में इशारा करते हैं, जिससे आम उपभोक्ता और होम-लोन/ऑटो-लोन लेने वाले ग्राहकों में भ्रम पैदा होना स्वाभाविक है।

एचएसबीसी का अनुमान उपभोक्ताओं के हित में है, क्योंकि लोन की EMI सस्ती हो सकती है। यदि 25 बीपीएस कटौती होती है, तो बैंक अपनी उधारी दरें कम कर सकते हैं। इसके साथ ही होम लोन, ऑटो लोन और पर्सनल लोन की ईएमआई कम हो सकती है।
एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, यदि रेपो रेट स्थिर रहता है, तो ईएमआई में कोई बदलाव नहीं आएगा और ब्याज दरों का मौजूदा स्तर अगले कुछ महीनों तक जारी रह सकता है।
एचएसबीसी और एसबीआई दोनों रिपोर्टों के संकेत अलग होने का कारण उपभोक्ता कंफ्यूज हैं, क्योंकि एचएसबीसी भविष्य की संभावित सुस्ती को देखते हुए “अग्रिम कटौती” के पक्ष में है। जबकि, एसबीआई वर्तमान मजबूत डेटा और वैश्विक अनिश्चितताओं को देखते हुए “सावधानी” बरतने की सलाह देता है।
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