नई दिल्ली: भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी निर्यात बास्केट में विविधता लाने में बड़ी सफलता प्राप्त की है। इसके परिणामस्वरूप, देश को अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करने में मदद मिली है। भारत अब अपने निर्यात को विभिन्न देशों में भेज रहा है, जिससे उसे वैश्विक व्यापार में एक स्थिर स्थान मिला है। यूरोप, मध्य पूर्व, लैटिन अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे क्षेत्रों में भारतीय उत्पादों की मांग में वृद्धि हुई है, जो इसे अमेरिका पर अत्यधिक निर्भर होने से बचाता है।
यूरोपियन टाइम्स के एक आर्टिकल में कहा गया है कि, हालांकि अमेरिका अभी भी भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य बना हुआ है, पिछले तीन वर्षों में भारतीय उत्पादों का अधिकांश हिस्सा अन्य देशों में भी भेजा गया है। अमेरिका के साथ भारतीय व्यापार में कुछ कमी आई है, लेकिन अन्य देशों में निर्यात में शानदार वृद्धि हुई है।
भारत ने 2024-25 में नीदरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और मेक्सिको जैसे देशों को संयुक्त रूप से 162 अरब डॉलर का निर्यात किया। इन देशों में भारतीय निर्यात में पिछले तीन वर्षों में औसतन 19 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि अमेरिका में यह वृद्धि 15 प्रतिशत रही। इससे स्पष्ट होता है कि भारत अब किसी एक बाजार पर निर्भर नहीं है। इन देशों ने भारत के उत्पादों को न केवल अपने बाजार में समाहित किया है, बल्कि उन्नत तकनीक और टिकाऊ उत्पादों के क्षेत्र में विस्तार के अवसर भी प्रदान किए हैं।
फिच रेटिंग एजेंसी के अनुसार, भारत का घरेलू बाजार विशाल होने के कारण वह बाहरी मांग पर कम निर्भर है। इससे अमेरिकी टैरिफ के कारण देश की अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान में भी कमी आई है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी ने भारत की आर्थिक वृद्धि दर को आगामी वित्तीय वर्षों में सकारात्मक बताया है। फिच के अनुसार, भारत के वित्त वर्ष 26 के लिए 6.5 प्रतिशत वृद्धि दर का अनुमान है, जबकि वित्त वर्ष 27 के लिए यह दर 6.3 प्रतिशत तक जा सकती है।
अमेरिकी टैरिफ के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर प्रभावित नहीं हुई है। वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत रही, जबकि पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में यह दर 6.5 प्रतिशत थी। भारतीय अर्थव्यवस्था की वास्तविक जीडीपी 47.89 लाख करोड़ रुपये रही, जो पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में 44.42 लाख करोड़ रुपये थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत की निर्यात रणनीति अब अधिक विविध और स्थिर हो गई है, जिससे उसे अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव से न केवल बचाव मिला है, बल्कि आर्थिक वृद्धि भी तेज हुई है।
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