भारत वैश्विक अस्थिरता के बीच बना स्थिरता का स्तंभ: आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा

खबर सार :-
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा और पूर्व उप-गवर्नर माइकल पात्रा ने चौथे कौटिल्य इकोनॉमिक कॉन्क्लेव में भारत को वैश्विक अस्थिरता के बीच एक स्थिर, आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से मजबूत देश बताया। नियंत्रित मुद्रास्फीति, विदेशी मुद्रा भंडार और नीतिगत स्थिरता जैसे कारकों ने भारत को वैश्विक संकटों से सुरक्षित रखा है, और इसे वैश्विक नेतृत्व की दिशा में अग्रसर किया है।

भारत वैश्विक अस्थिरता के बीच बना स्थिरता का स्तंभ: आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा
खबर विस्तार : -

नई दिल्लीः वैश्विक अर्थव्यवस्था जहां व्यापार युद्धों, भू-राजनीतिक तनावों और आर्थिक झटकों से जूझ रही है, वहीं भारत एक अद्वितीय स्थिरता का उदाहरण पेश कर रहा है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने चौथे कौटिल्य इकोनॉमिक कॉन्क्लेव में कहा कि भारत आज वैश्विक अस्थिरता के युग में स्थिरता का एक दुर्लभ स्तंभ बन चुका है।

 गवर्नर संजय मल्होत्रा ने जोर देकर कहा कि भारत की यह उपलब्धि सिर्फ संयोग नहीं, बल्कि ठोस नीतिगत निरंतरता, मजबूत संस्थानों और समयानुकूल सुधारों का परिणाम है। उन्होंने कहा कि देश की आर्थिक स्थिरता—जैसे कि नियंत्रित मुद्रास्फीति, पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार, सीमित चालू खाता घाटा और बैंकों तथा कॉर्पोरेट्स की सुदृढ़ बैलेंस शीट—नीतियों और नियामक संस्थाओं के कुशल संचालन की देन है।

भारत बनाम विकसित अर्थव्यवस्थाएं

मल्होत्रा ने अमेरिका के टैरिफ नीतियों, यूरोप की कर्ज समस्याओं और वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारत की अलग स्थिति को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि पश्चिमी देशों की तुलना में भारत की मौद्रिक और राजकोषीय नीति अधिक संयमित और स्थिर रही है। उन्होंने कहा, “आप तूफान को नियंत्रित नहीं कर सकते, लेकिन आप अपनी नाव को सही दिशा में चला सकते हैं।” उनके अनुसार, भले ही वैश्विक अर्थव्यवस्था आने वाले वर्षों में अपनी वास्तविक क्षमता तक न पहुंच पाए, लेकिन भारत दीर्घकालिक स्थिरता और विकास पथ पर बना रहेगा।

चुनौतियों से मिली सीख

गवर्नर मल्होत्रा ने बताया कि पिछले दो दशकों में दुनिया भर के केंद्रीय बैंक लगातार झटकों से जूझते रहे हैं—चाहे वह 2008 का वित्तीय संकट हो, यूरोजोन का कर्ज संकट, कोविड-19 महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध या जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न संकट। इन परिस्थितियों ने केंद्रीय बैंकों को अपनी पारंपरिक भूमिका से आगे बढ़ने को मजबूर किया है। उन्होंने सोने की कीमतों में अस्थिरता को वैश्विक अनिश्चितता का संकेतक बताया, जो अब तेल की तरह व्यवहार कर रही है।

पूर्व उप-गवर्नर का दृष्टिकोण

इस अवसर पर आरबीआई के पूर्व उप-गवर्नर माइकल देबाब्रत पात्रा ने भी भारत की आर्थिक क्षमता और वैश्विक भूमिका पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने भारत के आत्मनिर्भर निवेश मॉडल, वित्तीय क्षेत्र की मजबूती और कम एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) को देश की स्थिरता के स्तंभ बताया। पात्रा ने बताया कि भारत का चालू खाता घाटा संकुचित है और विदेशी मुद्रा भंडार विश्व में चौथे स्थान पर है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि भारत की 7.8 8 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर, विशेषकर ऐसे समय में जब अधिकांश देशों में मंदी जैसे हालात हैं, देश की आंतरिक शक्ति को दर्शाती है।

भविष्य की दिशा

पात्रा ने विश्वास जताया कि भारत 8 प्रतिशत  से अधिक जीडीपी वृद्धि बनाए रख सकता है। उन्होंने सरकार के जीएसटी सुधार, निर्यात-प्रोत्साहन पैकेज और अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता की भी सराहना की, जिससे भारत को वैश्विक टैरिफ झटकों से राहत मिलेगी। उन्होंने भारत को बहुपक्षीय विश्व में एक संतुलित शक्ति करार दिया और कहा कि “वैश्विक दक्षिण” भारत को एक स्वाभाविक नेता मानता है। भारत की गैर-संरेखण नीति और संतुलित कूटनीति ने उसे एक रणनीतिक धुरी के रूप में स्थापित किया है।

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