अब शेख हसीना की फांसी को अमल में लाने की कवायद तेज, भारत सरकार को भेजा पत्र

खबर सार :-
बांग्लादेश के आईटीसी द्वारा शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराधों में दोषी कर मौत की सज़ा देना एक ऐतिहासिक फैसला है। यह न केवल राजनीतिक शक्तियों पर जवाबदेही की मांग करता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय न्याय व्यवस्था की पुनर्सर्जना का संकेत भी है। भारत पर अब प्रत्यर्पण की कानूनी जिम्मेदारी है, और इसके हक़ीक़त में परिणति न्याय और लोकतंत्र की परीक्षा बनेगी।

अब शेख हसीना की फांसी को अमल में लाने की कवायद तेज, भारत सरकार को भेजा पत्र
खबर विस्तार : -

Sheikh Hasina: बांग्लादेश के इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल (आईटीसी) ने मानव विरुद्ध अपराध के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को दोषी ठहराया है और उन्हें मौत की सज़ा सुनाई है। इधर, पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल को भी फांसी, जबकि पूर्व पुलिस प्रमुख (आईजीपी) को पाँच साल की जेल की सज़ा दी गई है। आईटीसी ने उल्लेख किया कि हसीना ने भड़काऊ आदेश जारी कर, हत्या का आदेश देकर, और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई न करने जैसी विफलताओं में संलिप्तता दिखाई। पहले चार्ज में उन्हें उम्रकैद की सज़ा दी गई थी, लेकिन साक्ष्यों और जांच के बाद दोषसिद्धि के बाद कोर्ट ने सख्त फैसला सुनाया।

आरोपों से जुड़े साक्ष्य और वीडियो प्रमाण

कोर्ट ने हसीना के ख़िलाफ ऐसे वीडियो सबूतों का हवाला दिया जिसमें उन पर जुलाई-अगस्ट विरोध प्रदर्शनों के दौरान नागरिकों पर गोली चलाने तथा हेलीकॉप्टर और ड्रोन जैसे हथियारों के उपयोग का आदेश देने का आरोप है। न्यायाधीश गुलाम मुर्तुजा मजुमदार ने कहा कि यह “मानवता के विरुद्ध अपराध की सभी हदें पार करने जैसा कृत्य” था। साक्ष्य यह भी दर्शाते हैं कि हसीना ने सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों, विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को पदों से हटवाया और उन्हें दमन का सामना करना पड़ा।

प्रत्यर्पण की मांग और अंतर्राष्ट्रीय दबाव

बांग्लादेश सरकार ने भारत से मांग की है कि वह शेख हसीना और असदुज्जमां खान कमाल को तुरंत प्रत्यर्पित करे। दोनों आरोपी कथित रूप से भारत में शरण लेकर हैं और प्रतिरूपण संधि 2013 के तहत भारत पर उन्हें अपने देश को सौंपने का दबाव बनाया जा रहा है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यदि कोई देश इन दोषियों को पनाह देता है तो यह “न्याय की अवहेलना और शत्रुता का कृत्य” होगा। संधि के मुताबिक, भारत और बांग्लादेश को ऐसी मामलों में कानूनी ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए। भारतीय विदेश मंत्रालय ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि एक करीबी पड़ोसी के रूप में भारत बांग्लादेश की शांति, लोकतंत्र और राजनीतिक स्थिरता का समर्थन करता है। मंत्रालय ने कहा कि वह सभी हितधारकों के साथ “रचनात्मक बातचीत” जारी रखेगा, लेकिन प्रत्यर्पण पर स्पष्ट प्रतिबद्धता नहीं दिखाई गई है।

कानूनी पृष्ठभूमि और संधि विवरण

भारत–बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि पर दोनों देशों ने 28 जनवरी 2013 को हस्ताक्षर किया था, और इस संधि को 23 अक्टूबर 2013 से लागू किया गया। 2016 में इसे संशोधित करके प्रक्रिया को और सरल बनाया गया था। संधि में ऐसे अपराधों के लिए प्रत्यर्पण की व्यवस्था है, जिनमें न्यूनतम सज़ा एक वर्ष से अधिक हो, जैसे कि हत्या, आतंकवाद, मानव तस्करी आदि। यह संधि “ड्यूल क्रिमिनलिटी थ्योरी” (दोहरी आपराधिकता सिद्धांत) पर आधारित है, यानी प्रत्यर्पण तभी होगा जब दोनों देशों में अपराध दंडनीय हो।

राजनीतिक और मानवाधिकार प्रभाव

यह फैसला न केवल कानूनी मायनों में महत्वपूर्ण है, बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी बड़ा प्रकरण बन गया है। हसीना देश की प्रभावशाली राजनीतिक हस्ती रह चुकी हैं, और उनके खिलाफ ऐसी गंभीर सुनवाई और सज़ा विश्व स्तर पर ध्यान आकर्षित कर रही है। मानवाधिकार संगठन, विश्लेषक और विपक्षी नेता इस फैसले की गहन समीक्षा कर रहे हैं। कुछ लोग इस निर्णय को न्याय का प्रतीक मानते हैं, जबकि अन्य इसे राजनीतिक प्रतिशोध या अधिकार संरचना पर एक विवादास्पद परीक्षण के रूप में देख रहे हैं।

भविष्य की चुनौतियाँ और संभावनाएँ

अब बांग्लादेश और भारत दोनों के लिए यह प्रश्न महत्वपूर्ण हो गया है कि प्रतिरूपण (extradition) संधि के अनुरूप कार्रवाई होगी या नहीं। यदि हसीना और कमाल प्रत्यर्पित किए जाते हैं, तो उन्हें बांग्लादेश की अदालतों में और संभावित अपील व कानूनी लड़ाइयों का सामना करना पड़ेगा। इसके साथ ही यह मामला क्षेत्रीय राजनीति, मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय न्याय व्यवस्था के बीच एक नए युग की शुरुआत कर सकता है। कोर्ट के इस निर्णय ने यह स्पष्ट किया है कि उच्च पदों पर बैठे लोगों को भी गंभीर अपराधों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इस आईटीसी फैसले ने यह संदेश दिया है कि सत्ता में पदों पर बैठने वाले भी मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए जिम्मेदार ठहराए जा सकते हैं। निजी और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा में यह फैसला एक गहन परीक्षण है, और अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि प्रत्यर्पण प्रक्रिया को प्रोसेस किया जाए और न्यायिक कार्रवाई निष्पक्ष रूप से हो।

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