CM हिमंत बिस्वा सरमा के बयान से मची खलबली, देनी पड़ी सफाई

खबर सार :-
असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा ने बदलते जनसंख्या रुझानों पर चिंता जताते हुए हिंदू परिवारों से दो–तीन बच्चे पैदा करने की अपील की है। इसके बाद उन्होंने अपने इस बयान पर सफाई दी है, उन्होंने कहा कि यह किसी समुदाय को टारगेट करने के लिए नहीं है।

CM हिमंत बिस्वा सरमा के बयान से मची खलबली, देनी पड़ी सफाई
खबर विस्तार : -

गुवाहाटी: असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा ने राज्य में बदलते जनसंख्या रुझानों पर चिंता जताई है और हिंदू परिवारों से दो या तीन बच्चे पैदा करने की अपील की है। मुख्यमंत्री के इस बयान से राजनीतिक और सामाजिक हलकों में एक नई बहस छिड़ गई है। हालांकि, मुख्यमंत्री ने साफ किया है कि उनका संदेश किसी खास समुदाय को टारगेट करने के लिए नहीं है, बल्कि बैलेंस बनाए रखने के लिए है।

जन्म दर में अंतर को बताय गंभीर मुद्दा

मुख्यमंत्री सरमा मंगलवार को यहां एक कार्यक्रम में शामिल होने के बाद मीडिया से बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जिन इलाकों में हिंदू समुदाय अल्पसंख्यक है या अल्पसंख्यक बनने की कगार पर है, वहां परिवारों को सिर्फ एक बच्चे तक सीमित नहीं रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस अपील का मकसद सामाजिक संतुलन बनाए रखना और भविष्य की चुनौतियों का सामना करना है।

डॉ. सरमा के मुताबिक, अलग-अलग समुदायों में जन्म दर में अंतर एक गंभीर मुद्दा है। उन्होंने दावा किया कि कई इलाकों में मुस्लिम समुदाय में जन्म दर तुलनात्मक रूप से ज़्यादा है, जबकि हिंदू समुदाय में यह लगातार कम हो रही है। अगर इस ट्रेंड पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो इसके दूरगामी सामाजिक नतीजे हो सकते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसे इलाकों में हिंदू परिवारों को कम से कम दो बच्चे और आदर्श रूप से तीन बच्चे पैदा करने पर विचार करना चाहिए। उन्होंने इसे परिवार और समाज की लंबे समय की स्थिरता से जोड़ा और कहा कि बहुत छोटे परिवार भविष्य में दिक्कतें पैदा कर सकते हैं।

किसी एक समुदाय को नहीं कर रहे टारगेट

 उन्होंने यह भी साफ किया कि राज्य सरकार मुस्लिम समुदाय को भी बहुत बड़े परिवार रखने से बचने की सलाह दे रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि मुस्लिम परिवारों से सात या आठ बच्चे पैदा न करने के लिए कहा जा रहा है, और उनका संदेश किसी एक समुदाय को टारगेट करने के लिए नहीं है, बल्कि संतुलन बनाए रखने के लिए है।

मुख्यमंत्री का यह बयान ऐसे समय आया है जब असम में जनसंख्या वृद्धि, माइग्रेशन, ज़मीन के अधिकार और सांस्कृतिक पहचान जैसे मुद्दों पर लगातार चर्चा हो रही है। जहां उनके समर्थक इसे डेमोग्राफिक सच्चाइयों की ओर ध्यान खींचने वाला बयान बता रहे हैं, वहीं आलोचक इसके सांप्रदायिक रंग और सामाजिक नतीजों पर सवाल उठा रहे हैं।

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