मैच होने दो, भारत-पाक मुकाबला रोकने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने ठुकराई

खबर सार :-
सुप्रीम कोर्ट ने एशिया कप में भारत-पाक मैच को रद्द करने की एक जनहित याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि यह सिर्फ एक मैच है, इसे होने दिया जाए। याचिका में कहा गया था कि मौजूदा तनाव के बीच पाक के साथ मैच खेलना राष्ट्रीय हित के खिलाफ है और सैनिकों के बलिदान का अपमान है।

मैच होने दो, भारत-पाक मुकाबला रोकने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने ठुकराई
खबर विस्तार : -

देश में क्रिकेट और राजनीति के बीच की चर्चाएं एक बार फिर गरमा गई है। एशिया कप टी20 टूर्नामेंट में भारत और पाक के बीच होने वाला बहुप्रतीक्षित मुकाबले को रद्द करने की मांग वाली एक याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने से इनकार कर दिया है। जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि यह सिर्फ एक क्रिकेट मैच है, इसे होने दिया जाए।

चार वकीलों ने दायर की थी याचिका

गौरतलब है कि यह याचिका चार वकीलों द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने दलील दी थी कि हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाक के साथ क्रिकेट मैच खेलना राष्ट्रीय हितों के खिलाफ है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि जब हमारे सैनिक  अपनी जान न्योछावर कर रहे हैं, उसी देश के साथ क्रिकेट मैच खेलना, जो आतंकियों को पनाह और समर्थन  देता है, गलत संदेश देता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय गरिमा और नागरिकों की सुरक्षा मनोरंजन से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।

खेल और राजनीति को अलग-अलग रखा जाना चाहिए

याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में दलील दी कि मैच 14 सितंबर को है और अगर कल इस पर सुनवाई नहीं हुई, तो याचिका का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। लेकिन जस्टिस माहेश्वरी ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया और अपनी बात दोहराई, मैच तो होने दो।  इस याचिका में सिर्फ मैच रद्द करने की मांग ही नहीं की गई थी, बल्कि युवा मामलों के मंत्रालय को नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस एक्ट, 2025 को लागू करने और बीसीसीआई (BCCI) को इसके दायरे में लाने का भी निर्देश देने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ताओं का मानना था कि अगर यह कानून लागू होता है, तो बीसीसीआई को इस अधिनियम के तहत स्थापित नेशनल स्पोर्ट्स बोर्ड के दायरे में लाया जा सकेगा।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के इस रुख से यह साफ हो गया है कि खेल और राजनीति को अलग-अलग रखा जाना चाहिए। कोर्ट ने साफ संकेत दिया कि इस तरह के मामलों में न्यायपालिका का हस्तक्षेप उचित नहीं है।

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