Sanchar Saathi App: देश में साइबर ठगी और फर्जी मोबाइल कनेक्शनों पर लगाम लगाने के उद्देश्य से शुरू किया गया सरकारी ऐप ‘संचार साथी’ अचानक राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया है। सरकार इसे नागरिक सुरक्षा का प्रभावी डिजिटल उपकरण बता रही है, जबकि विपक्ष इसे सरकारी निगरानी का आधुनिक औजार करार दे रहा है। इसी विवाद के बीच केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि संचार साथी न तो अनिवार्य है और न ही किसी उपयोगकर्ता पर थोपा जा रहा है।
मीडिया से बातचीत में सिंधिया ने कहा कि सरकार का उद्देश्य केवल जनता को सुरक्षित करना है, न कि किसी की निजता का उल्लंघन। उन्होंने बताया कि संचार साथी ऐप की मदद से अब तक 1.75 करोड़ फर्जी मोबाइल कनेक्शन बंद किए गए हैं, 7.5 लाख चोरी हुए फोन मालिकों को लौटाए गए हैं और 21 लाख संदिग्ध मोबाइल कनेक्शन उपभोक्ता रिपोर्टिंग के आधार पर काटे गए हैं। सिंधिया का दावा है कि यह ऐप पूरी तरह उपयोगकर्ता की पसंद पर निर्भर है—वे चाहें तो इसे रजिस्टर कर इस्तेमाल करें या अपने फोन से कभी भी डिलीट कर दें।
विवाद तब शुरू हुआ जब दूरसंचार विभाग (DoT) ने 28 नवंबर को निर्देश जारी किए कि मार्च 2026 से भारत में निर्मित और आयातित सभी नए स्मार्टफोन्स में संचार साथी ऐप पहले से इंस्टॉल रहेगा। यह भी कहा गया कि ऐप सेटअप के समय उपयोगकर्ता को दिखाई दे और इसे अक्षम या प्रतिबंधित नहीं किया जा सके। यही शर्तें कई लोगों को संदेहास्पद लगीं और सवाल उठने लगे कि क्या सरकार इस ऐप के जरिए फोन में ‘स्थायी उपस्थिति’ चाहती है? क्या यह निगरानी का रास्ता खोलने वाला कदम है?

सरकार की तरफ से संचार साथी ऐप को लेकर जारी आदेश के बाद विपक्षी दलों ने हमला बोल दिया। कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने बयान दिया कि “यह पेगासस प्लस प्लस है। बिग ब्रदर हमारे फोन में घुस जाएगा और हमारी निजी जिंदगी में झांक सकेगा। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने भी इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया। उनका कहना है कि लोगों की सुरक्षा और मदद के नाम पर सरकार जासूसी तंत्र तैयार कर रही है। सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटस ने तो तंज तक कसा कि जिनके फोन में यह ऐप न मिले, उन्हें मतदाता सूची से ही हटा देना चाहिए। कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी ने आरोप लगाया कि पिछले एक दशक में भारतीयों की निजी स्वतंत्रताओं को लगातार सीमित किया गया है और यह कदम उसी दिशा का नया अध्याय है।
सरकार का दावा है कि संचार साथी को प्री-इंस्टॉल करने का उद्देश्य डिजिटल धोखाधड़ी को रोकना है। दूरसंचार विभाग के अनुसार, चोरी हुए मोबाइल को खोजने में यह ऐप बेहद प्रभावी साबित हुआ है। फर्जी सिम और नकली IMEI को पकड़ने में इससे महत्वपूर्ण मदद मिली है। अक्टूबर 2025 तक 50,000 से अधिक चोरी हुए फोन इसी ऐप की मदद से रिकवर किए गए। सरकार का तर्क है कि जैसे-जैसे डिजिटल कनेक्टिविटी बढ़ी है, साइबर अपराध भी तेजी से फैल रहे हैं। ऐसे में नागरिकों के हाथ में ऐसी तकनीक देना जरूरी है जो उन्हें सुरक्षा प्रदान करे और धोखाधड़ी रोक सके।

संचार साथी शुरुआत में वेब पोर्टल के रूप में 2023 में लॉन्च हुआ था। जनवरी 2025 में इसे एंड्रॉयड और iOS के लिए ऐप के रूप में जारी किया गया। इसके प्रमुख फीचर्स में चोरी हुए या खोए हुए मोबाइल की रिपोर्टिंग, फर्जी सिम पहचानने की सुविधा, संदिग्ध कॉल व एसएमएस की शिकायत और मोबाइल कनेक्शनों का सत्यापन शामिल है। सरकार का दावा है कि ऐप न तो फोन के अन्य निजी ऐप्स तक पहुंचता है, न ही किसी की कॉल, संदेश या डेटा की निगरानी करता है। इसके बावजूद, "प्री-इंस्टॉल और नॉन-डिसेबल" जैसे बिंदुओं ने संदेह पैदा किया।
तकनीकी विशेषज्ञों का कहना है कि इस बहस की जड़ में दो बड़े सवाल हैं-पहला क्या ऐप को फोन में अनिवार्य रूप से रखना और उसे हटाने का विकल्प न देना उचित है? दूसरा क्या सरकार द्वारा बनाए गए किसी ऐप को स्थायी सिस्टम एप्लिकेशन बनाना डिजिटल निजता को खतरा पहुंचा सकता है? अगर ऐप सचमुच डिलीट किया जा सकता है, जैसा कि मंत्री कह रहे हैं, तो विवाद का बड़ा हिस्सा खत्म हो जाएगा। यदि DoT के दिशा-निर्देश वास्तविक रूप में लागू होते हैं जिसमें अनइंस्टॉल करना संभव न हो, तब विपक्ष की चिंताएं मजबूत आधार ले लेती हैं।

पेगासस एक अत्यधिक उन्नत स्पाइवेयर है जो बिना किसी इंटरैक्शन के फोन में घुस सकता है और कॉल, संदेश, फोटो, लोकेशन, माइक्रोफोन और कैमरा तक पूरी पहुंच बना सकता है। कांग्रेस की तुलना का आधार यह है कि भारत ने पहले भी पेगासस विवाद का सामना किया था, इसलिए किसी भी सरकारी डिजिटल पहल पर संदेह और बढ़ जाता है, खासकर तब जब ऐप को अनइंस्टॉल करने का विकल्प न हो।
संचार साथी पर जारी बहस संकेत देती है कि डिजिटल सुरक्षा और निजता के बीच कोई भी कदम बेहद संवेदनशील है। सरकार को DoT दिशा-निर्देशों और मंत्री के बयान के बीच मौजूद भ्रम को खत्म करना होगा। तकनीकी विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ऐप पूरी तरह वैकल्पिक हो और उसका सोर्स व संचालन पारदर्शी हो, तो यह जनता की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।
अन्य प्रमुख खबरें
भारत की निर्णायक नीति का प्रतीक है ऑपरेशन सिंदूरः राजनाथ सिंह
नोटबंदी में 27 लाख का घपला: हैदराबाद पोस्ट ऑफिस के दो कर्मचारियों को दो-दो साल की जेल
भारत का डिफेंस टेक्नोलॉजी मार्केट 2030 तक 19 अरब डॉलर होने का अनुमान
रामी ग्रुप ऑफ होटल्स के 38 ठिकानों पर IT की रेड, भारी पुलिस तैनात
बिजली बिल राहत योजना से शुरू होगा भरोसे और सहयोग का एक नया दौर
Syrup Smuggling Case : असम तक पहुंची फेंसेडिल तस्करी की जड़ें, एसटीएफ की जांच में सामने आए नए संदिग्ध