Rahul Gandhi Supreme Court : न्याय के गलियारों में अक्सर तीखी बहसें और दलीलें सुनने को मिलती हैं, लेकिन कुछ पल ऐसे भी होते हैं, जब अदालत की टिप्पणी केवल कानूनी दायरे तक सीमित नहीं रहती, बल्कि सीधे राष्ट्रीय भावना और सम्मान को छू जाती है। ऐसा ही कुछ सोमवार को हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को उनकी कुछ टिप्पणियों पर कड़ी फटकार लगाई। मामला गलवान घाटी संघर्ष से जुड़ा है, और अदालत की टिप्पणी ने एक बार फिर इस संवेदनशील मुद्दे पर बहस छेड़ दी है।
गौरतलब है कि 2020 में गलवान में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच भीषण झड़प हुई थी, जिसमें सेना के कई बहादुर जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इसी घटना और बाद की परिस्थितियों को लेकर राहुल गांधी ने कुछ सोशल मीडिया पोस्ट और सार्वजनिक बयानों में भारतीय सेना की कार्रवाई पर सवाल उठाए थे। एक आपराधिक मानहानि का मामला, जो इन्हीं बयानों के आधार पर लखनऊ की एक अदालत में लंबित है, उसी की कार्यवाही को स्थगित करने के लिए राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें तीन सप्ताह के लिए अंतरिम राहत दी है, लेकिन सुनवाई के दौरान हुई मौखिक टिप्पणियों ने पूरे मामले को एक नया मोड़ दे दिया है।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने सुनवाई के दौरान राहुल गांधी के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी से सीधे सवाल किए। सिंघवी ने दलील दी कि एक विपक्षी नेता होने के नाते राहुल गांधी को राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को उठाने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि अगर वह ऐसी बातें नहीं कह सकते जो प्रेस में प्रकाशित होती हैं, तो वह विपक्ष के नेता नहीं हो सकते। इस पर न्यायमूर्ति दत्ता ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल उठाया कि आप जो कुछ भी कहना चाहते हैं, संसद में क्यों नहीं कहते? आप ये सब सोशल मीडिया पोस्ट में क्यों कहते हैं?
असली तल्खी तब आई जब न्यायमूर्ति दत्ता ने राहुल गांधी की इस टिप्पणी पर आपत्ति जताई कि चीनी सेना ने भारतीय क्षेत्र के 2000 वर्ग किलोमीटर हिस्से पर कब्जा कर लिया है। उन्होंने सिंघवी से पूछा, “डॉ. सिंघवी बताइए, आपको कैसे पता चला कि 2000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर चीनियों ने कब्जा कर लिया था? क्या आप वहां थे? क्या आपके पास कोई विश्वसनीय सामग्री है? आप बिना किसी...इन बयानों को क्यों करते हैं? अगर आप एक सच्चे भारतीय होते, तो आप यह सब नहीं कहते।
यह एक ऐसी टिप्पणी थी जो केवल एक कानूनी सवाल नहीं थी, बल्कि इसमें एक गहरी निराशा और राष्ट्र के प्रति सम्मान की भावना निहित थी। सिंघवी ने जवाब में कहा कि एक सच्चा भारतीय यह भी कह सकता है कि हमारे 20 भारतीय सैनिकों को पीटा गया और मार दिया गया, और यह चिंता का विषय है। इस पर न्यायमूर्ति दत्ता ने पलटकर पूछा, जब सीमा पर संघर्ष होता है, तो क्या दोनों तरफ हताहत होना असामान्य है?
सिंघवी ने तर्क दिया कि राहुल गांधी का मकसद केवल सूचना के उचित प्रकटीकरण और जानकारी को दबाने के बारे में चिंता व्यक्त करना था। लेकिन न्यायमूर्ति दत्ता ने साफ कहा कि इन सवालों को उठाने के लिए एक उचित मंच है। सिंघवी ने माना कि राहुल गांधी को अपने शब्दों का चयन बेहतर तरीके से करना चाहिए था, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह शिकायत केवल सवाल उठाने के लिए उन्हें परेशान करने का एक प्रयास है, जो कि एक विपक्षी नेता का कर्तव्य है।
इस मामले में एक तकनीकी पहलू भी सामने आया। सिंघवी ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 223 (बीएनएसएस) का जिक्र किया, जिसके तहत आपराधिक शिकायत पर संज्ञान लेने से पहले आरोपी को सुनवाई का मौका देना अनिवार्य है, और इस मामले में इसका पालन नहीं किया गया। हालांकि, न्यायमूर्ति दत्ता ने बताया कि यह बिंदु हाईकोर्ट में नहीं उठाया गया था। सिंघवी ने इस चूक को स्वीकार किया और कहा कि हाईकोर्ट में मुख्य रूप से शिकायतकर्ता के अधिकार क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया गया था। सिंघवी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस तर्क पर भी सवाल उठाया कि शिकायतकर्ता, भले ही पीड़ित व्यक्ति न हो, अपमानित व्यक्ति तो है।
अंत में, पीठ ने इस बिंदु पर विचार करने के लिए सहमति दी और राहुल गांधी की विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसने कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने तीन सप्ताह की अंतरिम राहत भी प्रदान की।
यह ध्यान देने योग्य है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने 29 मई को राहुल गांधी की याचिका को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने उस समय टिप्पणी की थी कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में ऐसे बयान देने की स्वतंत्रता शामिल नहीं है जो भारतीय सेना के लिए मानहानिकारक हों। यह मानहानि की शिकायत, जो पूर्व सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के निदेशक उदय शंकर श्रीवास्तव द्वारा दायर की गई थी, में कहा गया है कि राहुल गांधी की कथित आपत्तिजनक टिप्पणियां 16 दिसंबर 2022 को उनकी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान की गई थीं।
शिकायत में विशेष रूप से आरोप लगाया गया है कि उन्होंने अरुणाचल प्रदेश में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच 9 दिसंबर 2022 को हुई झड़प के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की थी। उन्होंने कथित तौर पर बार-बार कहा था कि चीनी सेना हमारे सैनिकों को पीट रही है और भारतीय प्रेस इस संबंध में कोई सवाल नहीं पूछेगी। इस पूरे घटनाक्रम से एक बात तो साफ है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और हमारी सेना से जुड़े मामलों में सार्वजनिक बहस की एक लक्ष्मण रेखा होती है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है, लेकिन राष्ट्र की गरिमा और हमारे सैनिकों के मनोबल को बनाए रखना भी उतना ही आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणियां सिर्फ एक कानूनी कार्यवाही का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि राष्ट्र के प्रति हमारी सामूहिक जिम्मेदारी का एक प्रतिबिंब भी हैं।
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