नोटबंदी में 27 लाख का घपला: हैदराबाद पोस्ट ऑफिस के दो कर्मचारियों को दो-दो साल की जेल

खबर सार :-
हैदराबाद सीबीआई कोर्ट का यह फैसला नोटबंदी के दौरान हुए घोटालों पर सख्त कार्रवाई का प्रतीक है। पोस्ट ऑफिस कर्मचारियों को हुई दो साल की सजा यह संदेश देती है कि सरकारी धन और जनता के भरोसे से जुड़ी अनियमितताओं को गंभीरता से लिया जाएगा। यह निर्णय न केवल न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है बल्कि भविष्य में ऐसे अपराधों पर रोक लगाने में भी सहायक साबित हो सकता है।

नोटबंदी में 27 लाख का घपला: हैदराबाद पोस्ट ऑफिस के दो कर्मचारियों को दो-दो साल की जेल
खबर विस्तार : -

Demonitisation: हैदराबाद की एक विशेष सीबीआई अदालत ने नोटबंदी के दौरान पोस्ट ऑफिस में हुए घोटाले पर कड़ा रुख अपनाते हुए हुमायूं नगर सब-पोस्ट ऑफिस के दो पूर्व कर्मचारियों को दोषी करार दिया है। अदालत ने अदपा श्रीनिवास और यू. राज्यलक्ष्मी को दो-दो साल की कठोर कैद और 65-65 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। कोर्ट ने माना कि इन दोनों ने सरकारी खजाने के साथ धोखा किया और जनता के भरोसे का दुरुपयोग किया।

जानें आखिर कैसे हुआ घोटाला?

मामला 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा के तुरंत बाद शुरू हुआ। उस समय श्रीनिवास ट्रेजरर और राज्यलक्ष्मी पोस्टल असिस्टेंट के पद पर कार्यरत थे। 10 नवंबर से 24 नवंबर 2016 के बीच जब लोग पोस्ट ऑफिस में पुराने 500 और 1000 रुपये के नोट बदलवाने पहुंच रहे थे, तब इन दोनों ने इस स्थिति का फायदा उठाया। गड़बड़ी का तरीका बेहद साज़िशनुमा था-न तो कोई फॉर्म भरा गया, न कोई आधिकारिक रिकॉर्ड रखा गया। लोगों से पुराने नोट तो ले लिए गए, लेकिन बदले में नए नोट नहीं दिए। इस तरह दोनों ने कुल 27 लाख 27 हजार 397 रुपये हड़प लिए। बाद में खातों में हेरफेर कर पूरे मामले को छुपाने की कोशिश भी की गई।

शिकायत से लेकर फैसला आने तक की पूरी टाइमलाइन

यह घोटाला तब उजागर हुआ जब हैदराबाद पोस्ट ऑफिस के सीनियर सुपरिटेंडेंट ने वित्तीय रिकॉर्ड में अनियमितताएं देखीं और 2017 में शिकायत दर्ज कराई। सीबीआई ने 31 अगस्त 2017 को एफआईआर दर्ज की और लंबी जांच के बाद 25 अक्टूबर 2019 को दोनों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। करीब छह वर्षों तक चले इस मुकदमे के बाद 1 दिसंबर 2025 को कोर्ट ने दोनों को दोषी करार दिया और अगले ही दिन 2 दिसंबर को सजा सुनाई।

नोटबंदी घोटालों पर सख्ती का संदेश

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह अपराध सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि जनता के भरोसे को तोड़ने वाला है। सरकारी संस्थानों में काम करने वाले कर्मचारियों से लोगों को पारदर्शिता और ईमानदारी की उम्मीद होती है। नोटबंदी के दौरान देशभर में कई घोटाले सामने आए थे, लेकिन बहुत कम मामलों में दोष साबित हो सका। ऐसे में यह फैसला एक महत्वपूर्ण मिसाल के रूप में देखा जा रहा है।

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