रामपुर: 23 महीने बाद सीतापुर जेल से रिहा होकर अपने गृह जनपद रामपुर लौटे समाजवादी पार्टी (सपा) के दिग्गज नेता मोहम्मद आज़म खान से मिलने के लिए अब पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव 8 अक्टूबर को रामपुर पहुंचने वाले हैं। लेकिन इस बहुप्रतीक्षित मुलाक़ात से पहले ही राजनीतिक तापमान चढ़ चुका है। आज़म खान के ताज़ा बयान ने न केवल अखिलेश यादव के दौरे को चुनौतीपूर्ण बना दिया है, बल्कि पार्टी के अंदरूनी समीकरणों और मतभेदों की भी एक झलक दे दी है।
अखिलेश यादव के आगमन से ठीक एक दिन पहले मीडिया से बातचीत में आज़म खान ने साफ शब्दों में कहा कि, 'कोई कार्यक्रम नहीं है, अखिलेश यादव जी मुझसे मिलने आ रहे हैं, केवल मुझसे ही मिलेंगे और मैं भी केवल उनसे ही मिलूंगा।' इस कथन ने यह स्पष्ट कर दिया कि वे अपने आवास पर सिर्फ अखिलेश यादव से ही मुलाक़ात करेंगे, न कि उनके साथ आए किसी और सपा नेता से।
जब मीडिया ने रामपुर के सपा सांसद मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी को लेकर सवाल किया तो आज़म खान ने आश्चर्यजनक बयान देते हुए कहा, 'मैं उन्हें जानता ही नहीं हूं।' उन्होंने आगे कहा, 'मेरी कोई मुलाक़ात नहीं हुई उनसे, लिहाजा उनसे जुड़ा कोई सवाल मुझसे ना किया जाए, मेरे सामने उनका ज़िक्र ना करें।' इस तीखे बयान ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। क्योंकि परंपरागत रूप से सपा अध्यक्ष जहां भी जाते हैं, वहां स्थानीय सपा सांसद या विधायक उनकी अगवानी में शामिल रहते हैं। लेकिन अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या मौलाना नदवी को आज़म खान के घर में प्रवेश भी मिलेगा?
अपने कानूनी मामलों और राजनीतिक हालात पर बोलते हुए आज़म खान ने व्यंग्य की तल्ख़ी में कहा, 'एक मुर्गी चोर पर 21 साल की सजा और 34 लाख का जुर्माना है। अभी तो 114 मुकदमे और बाकी हैं। पूरे परिवार पर 350 मुकदमे हैं। कितनी जिंदगी लाएं?' उन्होंने आगे कहा कि, 'आपका बड़प्पन है कि आप एक मुर्गी चोर से मिलने आ रहे हैं।' यह बयान न केवल उनके हालिया कारावास पर कटाक्ष था बल्कि यह भी दर्शाता है कि आज़म खान अब भी अपने तेवरों में वही पुरानी तल्ख़ी और व्यंग्य लिए हुए हैं।
आजम खान से जब पूछा गया कि क्या उनकी अखिलेश यादव से कोई नाराज़गी है, तो उन्होंने कहा, 'ये बातें मैं मीडिया को क्यों बताऊं? इतना हल्का समझ रखा है?' इस जवाब ने यह तो साफ कर दिया कि उनके और पार्टी नेतृत्व के बीच कुछ तो ऐसा है जो सतह के नीचे दबा हुआ है, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं हुआ।
समाजवादी पार्टी इस समय उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ सबसे बड़ी विपक्षी ताकत मानी जा रही है। पार्टी के पास 107 विधायक और 37 सांसद हैं, जिनमें 34 मुस्लिम विधायक और 4 मुस्लिम सांसद शामिल हैं। आज़म खान जैसे वरिष्ठ मुस्लिम नेता से इस तरह का टकराव पार्टी के सामाजिक समीकरणों के लिए भी नुकसानदेह हो सकता है। अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि अखिलेश यादव 8 अक्टूबर को रामपुर में किस तरह इस मुलाक़ात को संभालते हैं। क्या वे अकेले आज़म खान से मिलकर कोई सियासी सुलह की इबारत लिखेंगे, या फिर यह मुलाक़ात केवल औपचारिकता बनकर रह जाएगी?
जब उनसे स्वास्थ्य को लेकर सवाल किया गया, तो आज़म खान ने जवाब दिया, 'आप देख रहे हैं, खड़ा नहीं हुआ जा रहा है।' लेकिन यह भी दिखा कि शारीरिक कमजोरी के बावजूद उनके राजनीतिक तेवर और व्यंग्यात्मक शैली में कोई कमी नहीं आई है। आजम खान की ये टिप्पणियाँ समाजवादी पार्टी के भीतर चल रही अंदरूनी खींचतान की तरफ इशारा करती हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि अखिलेश यादव इस परिस्थिति को कैसे संभालते हैं। क्या वे आज़म खान को मना पाएंगे, या फिर यह मुलाक़ात पार्टी में दरार का संकेत बन जाएगी – इसका जवाब आने वाला वक्त ही देगा।
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