शरद पूर्णिमा पर काशी में उमड़ा आस्था का सैलाब, श्रद्धालुओं ने गंगा लगाई डूबकी... बाबा विश्वनाथ के किए दर्शन

खबर सार :-
Sharad Purnima 2025: शरद पूर्णिमा के अवसर पर ब्रजघाट में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, गाजियाबाद और नोएडा से श्रद्धालु सोमवार रात को ही पहुँच गए। श्रद्धालुओं ने तिगरीधाम में स्नान और पूजा-अर्चना भी की।

शरद पूर्णिमा पर काशी में उमड़ा आस्था का सैलाब, श्रद्धालुओं ने गंगा लगाई डूबकी... बाबा विश्वनाथ के किए दर्शन
खबर विस्तार : -

Sharad Purnima 2025: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर मंगलवार को गंगा के घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी।  हिंदू पंचांग के अनुसार, यह आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि है। वैसे तो शरद पूर्णिमा 6 अक्टूबर को मनाई गई। लेकिन इस बार पूर्णिमा तिथि 6 अक्टूबर को शाम 8:49 बजे शुरू हुई और 7 अक्टूबर 2025 को सुबह 9:18 बजे तक रही।  जिसके चलते मंगलवार तड़के श्रद्धालुओं ने गंगा में स्नान कर  पुण्य अर्जन किया और बाबा श्री काशी विश्वनाथ, माता अन्नपूर्णा और संकट मोचन के मंदिरों में पूजा-अर्चना की । 

शरद पूर्णिमा पर स्नान-दान का विशेष महत्व

शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima ) शारदीय नवरात्रि के समापन और कार्तिक मास के प्रारंभ से पहले का अंतिम दिन है। इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व है और सुख-समृद्धि की कामना पूरी होती है। पूर्वांचल के विभिन्न जिलों से आए श्रद्धालुओं ने इस पावन अवसर पर देवी लक्ष्मी और कुबेर की विशेष पूजा-अर्चना में भाग लिया। हालांकि, गंगा में जलस्तर बढ़ने के कारण पिछले वर्षों की तुलना में भीड़ कम रही। 

काशी पहुंचे श्रद्धालुओं ने कहा, "शरद पूर्णिमा पर स्नान और दान करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है। गंगा स्नान के बाद हम बाबा विश्वनाथ के दर्शन करते हैं। इस साल जलस्तर बढ़ने के कारण भीड़ कम है, वरना हर साल घाटों पर भारी भीड़ होती थी।" श्रद्धालुओं ने आगे कहा, "काशी एक पवित्र नगरी है। यहाँ आकर दिव्य आनंद की अनुभूति होती है। मैं कल शाम से यहाँ हूँ और मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।" यहाँ आकर मैं अपने सारे दुःख भूल गया हूँ।

Sharad Purnima 2025: सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

शरद पूर्णिमा के लिए पुलिस और प्रशासन ने घाटों और मंदिरों पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सफाई और अन्य व्यवस्थाएँ भी की गई हैं। स्थानीय लोग और पुजारी इस पर्व को काशी की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानते हैं। इस अवसर पर काशी में आध्यात्मिक माहौल और भक्ति की लहर साफ़ दिखाई दी।

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