रुदावल में नियमों को रौंदते क्रेशर, मजदूरों की सांसों पर संकट

खबर सार :-
रुदावल क्षेत्र में क्रेशरों द्वारा सुरक्षा नियमों की अनदेखी से मजदूरों की जान खतरे में है। धूल प्रदूषण के कारण सिलिकोसिस के बढ़ते मामलों और प्रशासनिक लापरवाही पर आधारित विशेष रिपोर्ट।

रुदावल में नियमों को रौंदते क्रेशर, मजदूरों की सांसों पर संकट
खबर विस्तार : -

रुदावल (भरतपुर): रुदावल क्षेत्र में संचालित स्टोन क्रेशर मानव जीवन के लिए लगातार खतरा बनते जा रहे हैं। सरकार द्वारा तय किए गए सुरक्षा मानकों और दिशा-निर्देशों की खुलेआम अनदेखी करते हुए कई क्रेशर बिना किसी प्रभावी सुरक्षा इंतजाम के चल रहे हैं। स्थिति यह है कि मजदूरों की जान जोखिम में डालकर उत्पादन कराया जा रहा है, जबकि संबंधित विभागों की भूमिका केवल औपचारिक जांच तक सीमित दिखाई देती है। रुदावल थाना क्षेत्र के अंतर्गत गूजरबलाई गांव के आसपास आधा दर्जन से अधिक क्रेशर सक्रिय हैं। इनमें से गिने-चुने क्रेशर को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश इकाइयों पर नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। कार्यस्थलों पर न तो पर्याप्त सुरक्षा उपकरण उपलब्ध हैं और न ही उनके उपयोग को लेकर कोई सख्ती बरती जा रही है। कई जगह मजदूर बिना मास्क, हेल्मेट और दस्तानों के भारी मशीनों के बीच काम करने को मजबूर हैं।

क्रेशर परिसरों में उड़ती पत्थरों की बारीक धूल मजदूरों के फेफड़ों में जहर की तरह उतर रही है। मास्क का उपयोग जहां अनिवार्य है, वहीं इसकी अनदेखी सबसे बड़ा खतरा बन चुकी है। विशेषज्ञों के अनुसार लंबे समय तक ऐसी धूल के संपर्क में रहने से सिलिकोसिस जैसी जानलेवा बीमारी होने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है। रुदावल क्षेत्र में सिलिकोसिस मरीजों की बढ़ती संख्या इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि हालात कितने गंभीर हो चुके हैं। दुखद पहलू यह है कि इस बीमारी की चपेट में आकर कई युवा मजदूर असमय जान गंवा चुके हैं। केवल धूल ही नहीं, बल्कि बिना हेल्मेट काम करना भी किसी बड़े हादसे को न्योता देने जैसा है। भारी पत्थरों और मशीनरी के बीच एक छोटी-सी चूक मजदूर के जीवन को हमेशा के लिए खत्म कर सकती है। इसके बावजूद सुरक्षा नियमों का पालन न होना और निरीक्षण तंत्र की ढिलाई सवाल खड़े करती है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि विभागीय अधिकारी जब भी निरीक्षण के लिए पहुंचते हैं, तो कार्रवाई के बजाय कागजी खानापूर्ति कर लौट जाते हैं। यदि समय रहते सख्त कदम उठाए जाएं, नियमित निरीक्षण हो और सुरक्षा उपकरणों का उपयोग अनिवार्य रूप से कराया जाए, तो कई जिंदगियों को बचाया जा सकता है। रुदावल क्षेत्र की यह स्थिति प्रशासन और क्रेशर संचालकों दोनों की जिम्मेदारी तय करने की मांग करती है। मजदूरों की सुरक्षा कोई विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता है। सवाल यही है कि आखिर इन हालातों के लिए जिम्मेदार कौन है और कब तक मानव जीवन यूं ही धूल में दम तोड़ता रहेगा?

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