भारत का पड़ोसी देश बांग्लादेश चरमपंथियों की हिंसा,अराजकता और आगजनी के चपेट में है जिसकी तपिस सीमा पार भारत में महसूस की जा रही है। बांग्लादेश में छोटे-छोटे मामलों को लेकर अराजकता फैलाना कोई नयी बात नहीं है लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है। पिछले वर्ष अगस्त में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के विरुद्ध हुये छात्र आन्दोलन और तख्तापलट में अगुवायी करने वाले छात्र नेताओं में एक नाम शरीफ उस्मान हादी का था जो इंकलाब मंच का सक्रिय सदस्य था। 32 वर्षीय हादी अगले वर्ष फरवरी में होने वाले संसदीय चुनाव में सम्भावित प्रत्याशी था। 12 दिसम्बर को चुनाव प्रचार के लिये निकले हादी को ढाका में बाइक सवार बदमाशों ने गोली मार दी। 15 दिसम्बर को सरकार के प्रयास से हादी को सिंगापुर ले जाया गया था जहां 18 दिसम्बर को उसकी मौत हो गयी। हादी की मौत के बाद से बांग्लादेश की राजधानी ढाका सहित अनेक शहरों में हिंसा, तोड़फोड़ और आगजनी की गई। इस बार अल्पसंख्यक हिन्दुओं के साथ मीडिया संस्थान,सांस्कृतिक केन्द्र और शेख मुजीब-उर-रहमान के घर को निशाना बनाया गया।
हादी की मौत की खबर आने के बाद बांगलादेश में भारत विरोधी भावनाओं को बड़े पैमाने पर भड़का कर भीड़ एकत्र की गई। सोशल मीडिया पर यह संदेश तेजी से वायरल हुआ कि हादी के हत्यारे घटना के बाद सीमा पार करके भारत चले गये जबकि प्रशासन ने इसका खंडन किया है लेकिन इसके बाद भी चरमपंथियों के नेतृत्व में भीड़ ने राजधानी ढाका में व्यापक पैमाने पर अराजकता फैलायी। तमाम संस्थानों, भवनों के साथ सार्वजनिक संपत्तियों को तोडफोड या आग के हवाले कर दिया। 18 दिसम्बर को हुयी अराजकता से जुड़ी दो घटनाओं का जिक्र आवश्यक है। पहली घटना ढाका के दो प्रतिष्ठित अखबारो प्रोथोम आलो और डेली स्टार के कार्यालय में न केवल तोड़फोड़ की गई अपितु उसको आग के हवाले कर दिया गया जबकि दो दर्जन से ज्यादा लोग उसके अंदर फसें थे जिन्हें सेना और फायर बिग्रेड के कर्मचारियों ने किसी प्रकार से बाहर निकाला। इन अखबारों को निशाना बनाये जाने के पीछे चरमपंथियों का आरोप है कि हादी की हत्या की पृष्ठभूमि इन दोनों अखबारों ने तैयार की थी। वह इन दोनों अखबारों को ’’दिल्ली का पालतू’’ और शेख हसीना का मददगार बता रहे थे। अखबार कार्यालय के बाहर एकत्र भीड़ ’’ दिल्ली या ढाका,- ढाका,ढाका, चापलूसी या आन्दोलन- आन्दोलन आन्दोलन, हमने खून बहाया है और भी बहायेंगे जैसे नारे लगा कर भारत विरोध प्रदर्शित कर रहे थे। इसी दिन दूसरी घटना में बांग्लादेश के मैमनसिंह में ईश निंदा का आरोप लगा कर दीपू चन्द्र दास को भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला और बाद में सबके सामने पेड़़ से बांध कर जला दिया । दीपू अपने घर का इकलौता कमाने वाला था। अब उसके मां-बाप और पत्नी-बच्चों का जीवन कैसे चलेगा? वर्तमान हालात को देखते हुये परिवार को इंसाफ मिलेगा, दोषियों को सजा मिलेगी, इसकी सम्भावना कम ही दिखायी पड़ती है। चरमपंथियों ने ढाका स्थित भारतीय उच्चायोग का भी घेराव करते हुये पथराव और उपद्रव करने की कोशिश की। भीड़ मांग कर रही थी कि शेख हसीना को वापस बांगलादेश भेजा जाय। उपद्रवियों के धमकियों से डर कर ढाका के अतिरिक्त चार सहायक उच्चायोग कार्यालय, चटगांव,राजशाही,खुलना और सिलहट को कुछ समय के लिये बंद करना पड़ा जिससे बीजा निर्गत करने का कार्य प्रभावित हुआ। नेशनल सिटिजन पार्टी के नेता तो भारतीय उच्चायोग को देश से निकालने की मांग की है।
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के तख्तापलट के बाद से बांग्लादेश में भारत विरोधी लहर को गति दी जा रही है। इसके पीछे चीन और पाकिस्तान की महत्वपूूूूूर्ण भूमिका है। कार्यवाहक सरकार भी चरमपंथियों की कठपुतली बनी हुई है। बांग्लादेश के छात्र नेता हों या फिर जमात-ए-इस्लामी जैसी कटृटरपंथी पार्टियां सभी एक सुर से भारत को शेख हसीना के प्रति नरम रुख अपनाने और शरण देने को आम जनता के बीच मुद्दा बनाती आ रही हैं। यह मुद्दा पिछले कुछ दिनों से और गरम हो गया जब बांग्लादेश की एक अदालत द्वारा शेख हसीना को मृत्युदंड की सजा सुनाये जाने के बाद से अंतरिम सरकार औपचारिक रूप से दो बार उनके प्रत्यार्पण की मांग कर चुकी है जिस पर भारत ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। इससे सरकार और कट्टरपंथी दोनों नाराज है।
बांग्लादेश में जिस प्रकार से कार्यवाहक सरकार में बैठे लोग, कट्टरपंथी राजनीतिक दल और छात्र नेता भारत सरकार के विरुद्ध तल्ख और अनर्गल टिप्पणियां कर रहे है उससे एक बात स्पष्ट हो गई है कि संसदीय चुनाव में भारत विरोध का मुद्दा सबसे अह्म होगा। अभी कुछ दिन पहले छात्र नेता हसनत अब्दुल्ला ने धमकी दी कि अगर भारत ने बांग्लादेश को अस्थिर करने का प्रयास किया तो भारत के सातों पूर्वी राज्यों को उससे काट दिया जायेगा। हसनत ने भी पिछले वर्ष छात्र आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई थी बाद में उन्हें अंतरिम सरकार में सलाहकार का पद दिया गया था लेकिन कुछ माह पहले उन्होंने नेशनल सिटिजन पार्टी का गठन किया है। भारत ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये दिल्ली स्थित बांग्लादेश के उच्चायुक्त को तलब कर अपनी शिकायत दर्ज करायी थी। बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के सलाहकार मोहम्मद तौहीद ने आरोप लगाया है कि भारत 1971 की जीत और बांग्लादेश के गठन का श्रेय स्वयं लेता है, कोलकाता स्थित पूर्वी कमान मुख्यालय में विजय दिवस मनाया जाता है जबकि मुख्य भूमिका में मुक्ति वाहिनी थी जिसके लड़ाकों ने पाक सेना का विरोध करके भारत को विजय दिलायी। बांग्लादेश सरकार का यह आरोप बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के उस बयान से पूरी तरह मेल खाता है जो वह पिछले एक साल से सार्वजनिक मंचों पर दोहरा रही है कि बांग्लादेश को भारत ने नहीं मुक्ति वाहिनी के लड़ाकों ने मुक्त कराया है। भारत ने अपने निजी हितों के लिये लड़ाई लड़ी थी हमारे देश को आजाद कराने के लिये नहीं।
भारत विरोधी लहर का सबसे ज्यादा प्रभाव बांग्लादेश में रह रहे अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर पड़ रहा है और आगे भी पड़ने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है क्योंकि संसदीय चुनाव में अगर चरमपंथी दल सत्ता में आये तो हालात और खराब होगें। हाल ही में भारतीय संसदीय दल ने चेतावनी दी है कि 1971 के बाद बांग्लादेश भारत के लिये सबसे बड़ी रणनीतिक चुनौती बन गया है। मोहम्मद युनुस की अंतरिम सरकार के दौरान इस्लामी कट्टरपंथियों के सक्रिय होने, चीन-पाकिस्तान के प्रभावशाली होने और भारत विरोधी भावनाओं के बढने से पूर्वोत्तर भारत में सुरक्षा खतरे बढ गये है। यह स्थिति भारत के गम्भीर रणनीतिक चिंता का विषय है। बांग्लादेश से बिगड़ते रिश्ते को सुधारने के लिये भारत की ओर से लगातार प्रयास किये जा रहे है। बीते अप्रैल में थाईलैंड़ में मोदी और युनुस के बीच मुलाकात के बाद उम्मीद थी कि फरवरी में चुनाव के बाद जो सरकार आयेगी उससे रिश्ते सामान्य बनाने में मदद मिलेगी। अब हादी की मौत के बाद निरन्तर बदलते हालात से उम्मीद की वह किरण धूमिल पड़ती दिखायी पड़ रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अब अगली सरकार का क्या रुख होगा इस पर कुछ कह पाना सम्भव नहीं है।
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