Did You Know : मथुरा के सुरीर में सुहागिनें नहीं रखतीं करवाचौथ का व्रत

खबर सार :-
मथुरा के सुरीर कस्बे में आज भी 200 साल पुरानी एक मान्यता के चलते सुहागिनें करवाचौथ व्रत नहीं रखतीं। सती माता के श्राप से उपजी यह परंपरा अब एक सामाजिक आस्था बन चुकी है, जिसे लोग भय और श्रद्धा दोनों के मिश्रण से निभा रहे हैं।

Did You Know : मथुरा के सुरीर में सुहागिनें नहीं रखतीं करवाचौथ का व्रत
खबर विस्तार : -

मथुराः जब पूरे देश की सुहागिने अपने पति की लम्बी उम्र के लिए करवाचौथ पर निर्जल व्रत रखेंगी, उस समय मथुरा के सुरीर कस्बे में एक बिल्कुल अलग ही नजारा देखने को मिलेगा। यहां करीब दो शताब्दियों से महिलाएं यह व्रत नहीं रखतीं। इसकी वजह है एक दर्दनाक ऐतिहासिक घटना, जिसने इस क्षेत्र की सांस्कृतिक परंपरा को पूरी तरह बदल दिया।

शापित परंपरा का आरंभ

सुरीर के बुजुर्गों के अनुसार, लगभग 200 साल पहले नौहझील क्षेत्र के रामनगला गांव का एक नवविवाहित ब्राह्मण युवक अपनी पत्नी को गौना कराकर घर ले जा रहा था। रास्ते में सुरीर के पास उसका कुछ ठाकुरों से विवाद हुआ, और उस युवक की हत्या कर दी गई। पति की मौत के बाद उसकी पत्नी ने वहीं सती हो जाने का निर्णय लिया और प्राण त्याग दिए। किंवदंती है कि मरने से पहले उसने वहां के निवासियों को श्राप दिया, जिसकी वजह से उस समय कई नवविवाहिता महिलाएं विधवा हो गईं। तभी से यहां करवाचौथ और अहोई अष्टमी जैसे पति की लंबी उम्र के लिए रखे जाने वाले व्रतों का त्याग कर दिया गया।

आज भी जारी है परंपरा का निर्वहन

इस घटना को बीते दो सदियां हो चुकी हैं, लेकिन सुरीर की महिलाएं आज भी करवाचौथ का व्रत नहीं रखती। न ही सोलह श्रृंगार करती हैं। इसकी जगह वे सती माता की पूजा कर, परिवार की कुशलता की प्रार्थना करती हैं। रामनगला गांव के लोग आज भी सुरीर में भोजन तक ग्रहण नहीं करते, इस मान्यता को आदर देते हुए। लोगों का मानना है कि सती माता का श्राप अब भी प्रभावी है, और कोई भी इस परंपरा को तोड़ने का साहस नहीं करता।

भावनाओं की झलक

स्थानीय महिला रीता सिंह बताती हैं कि उनकी शादी के बाद का पहला करवाचौथ था, लेकिन घर की परंपरा के चलते उन्हें व्रत नहीं रखने दिया गया। सपना नाम की महिला ने साझा किया कि आठ साल पहले शादी हुई थी, लेकिन करवाचौथ न मना पाने का दुख आज भी दिल में है। वहीं, सुनहरी देवी जैसी महिलाएं कहती हैं कि हमारे लिए व्रत नहीं, परिवार की सलामती मायने रखती है। व्रत से नहीं, ईश्वर की कृपा और सती माता के आशीर्वाद से ही सब सुरक्षित हैं।

परंपरा और भय के बीच संतुलन

रामवती देवी मानती हैं कि समय के साथ श्राप की धार कुंद हो चुकी है, और अब सती माता आशीर्वाद देती हैं, लेकिन इतिहास के डर और सामूहिक मान्यता के कारण कोई इस परंपरा को बदलने का साहस नहीं करता। सुरीर की यह परंपरा सिर्फ धार्मिक मान्यता नहीं है, बल्कि यह सामूहिक चेतना और भय से उपजी सामाजिक संरचना का एक अनूठा उदाहरण भी है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक यह सोच यूं ही आगे बढ़ती रही है।
 

अन्य प्रमुख खबरें