Happy Independence Day 2025: 'पिन कोड' से आई चिट्ठियों की दुनिया में क्रांति, जानें कब हुई थी शुरुआत

खबर सार :-
Happy Independence Day 2025: छह अंकों वाले पिन कोड की व्यवस्था काफी बेहतर और इस वजह से डाक को छांटने और इसे बांटने में काफी मदद मिलती है। इस कोड के हर अंक का एक विशेष मतलब होता है। क्या आपने कभी सोचा है कि सबसे पहले इसकी जरूरत कब महसूस हुई और भारत में कैसे पिनकोड की शुरुआत हुई?

Happy Independence Day 2025: 'पिन कोड' से आई चिट्ठियों की दुनिया में क्रांति, जानें कब हुई थी शुरुआत
खबर विस्तार : -

Happy Independence Day 2025: 15 अगस्त, 1972 को न सिर्फ तिरंगे ने आसमान में अपनी शान बिखेरी, बल्कि भारतीय डाक व्यवस्था में एक नया सूरज भी उदय हुआ - पिन कोड (Postal Index Number)। 70 के दशक में चिट्ठियां हमारी जिदगी का एक अभिन्न हिस्सा थीं, लेकिन इन चिट्ठियों का सही पते पर पहुंचना अक्सर किस्मत का खेल बन जाता था। वजह थी कई शहरों और गांवों के नाम एक जैसे होना। इन भ्रांतियों को दूर करने के लिए एक सटीक कोडिंग प्रणाली की जरूरत महसूस की गई और यहीं से पिन कोड का जन्म हुआ।

Happy Independence Day 2025: पिन कोड की हर क्षेत्र में अहमियत

इस क्रांतिकारी पहल के पीछे उस समय केंद्रीय संचार मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव और डाक एवं तार बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य श्रीराम भीकाजी वेलणकर थे। उन्हें 'पोस्टल इंडेक्स कोड प्रणाली का जनक' कहा जाता है। वेलणकर ने एक सरल लेकिन कारगर तरीका सुझाया। इसके बाद, देश को जोन में बांट दिया गया और प्रत्येक जोन की पहचान उसके पहले दो अंकों से हुई। पिन कोड (Postal Index Number) के पहले दो अंक जोन, तीसरा अंक सब-जोन और अंतिम तीन अंक डाकघर की पहचान दर्शाते हैं। मात्र छह अंकों का यह कोड किसी पत्र को सही जगह पहुंचाने का सबसे विश्वसनीय तरीका बन गया।

आजकल, पत्रों की जगह भले ही व्हाट्सएप और ईमेल ने ले ली हो, लेकिन पिन कोड की जरूरत आज भी खत्म नहीं हुई है, बल्कि पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गई है। अमेज़न से लेकर फ्लिपकार्ट तक, हर ऑनलाइन ऑर्डर का सफर पिन कोड से ही शुरू होता है। कूरियर और डिलीवरी सेवाओं में भी, बिना पिन कोड के आपका पार्सल दूसरे शहर पहुंच सकता है। सरकारी योजनाओं और बैंकिंग सेवाओं में भी सही पिन कोड जरूरी है, ताकि सुविधा समय पर लाभार्थी तक पहुंच सके।

15 अगस्त को हुई थी पिन कोड की शुरुआत

कल्पना कीजिए, 70 के दशक में किसी सैनिक को भेजा गया पत्र, बिना पिन कोड के किसी और की गोद में पहुंच जाता था या शादी का निमंत्रण हफ़्तों तक टल जाता था या किसी और के पास पहुंच जाता था। पिन कोड ने इन सभी समस्याओं का समाधान कर दिया। आज भी 53 साल बाद जब कोई पार्सल आपके घर पहुंचता है, तो उसकी यात्रा उस छोटे से छह अंकों वाले कोड से शुरू होती है जो 15 अगस्त 1972 को हमारे जीवन में आया था।

 पिन कोड का मतलब सामान पहुंचने की गारंटी

पिन कोड सिर्फ एक संख्या नहीं है, यह एक भरोसा है जो आपके पत्रों और सामान के समय पर आप तक पहुंचने की गारंटी देता है। यह हमें उस जमाने की याद दिलाता है जब चिट्ठियां दिलों को जोड़ती थीं और आज ई-कॉमर्स और सरकारी सेवाओं को सही पते पर पहुंचाने में भी यह उतना ही महत्वपूर्ण है। 15 अगस्त को हम आजादी का जश्न मनाते हैं, लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि इसी दिन हमें एक ऐसा तोहफा मिला जिसने देश के हर पते को एक अनूठी पहचान दी।

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