लखनऊ, वैसे तो देश का कोई भी चुनाव जातिवाद पर आधारित भड़काऊ भाषणों के बिना संपन्न नहीं होता है। चुनाव आयोग भी ऐसा न करने के लिए निर्देश देता रहता है। लोकसभा चुनावों में तो थोड़ी मर्यादा बनी रहती है, लेकिन जब राज्यों के चुनाव होते हैं, तो नेता इसमें किसी भी रेखा को लांघने में ही गौरव मानते हैं। सबसे ज्यादा विवाद जातिवाद पर आधारित जुमले और नारेबाजी के कारण ही होते हैं।
बिहार चुनाव में अभी तक यदुवंशियों का खुलेआम जाति आधारित प्रचार होता रहा है। इस बार के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी भी अपनी किस्मत आजमाने जा रही है। बसपा का चुनाव पार्टी के लिए भले ही गुड़-गोबर हो जाए, लेकिन अन्य दलों के नेताओं की नीयत स्पष्ट करने के लिए विवश कर देगी। यह सभी जानते हैं कि बसपा का जनाधार पिछड़ा और अतिपिछड़ा ज्यादा है। वैसे तो बिहार में रोचक मुकाबले के लिए स्थानीय पार्टियां ही काफी रहीं, क्योंकि बसपा के लिए यहां सब नया होगा। लालू प्रसाद यादव और उनके पुत्र तेजस्वी यादव के अलावा पत्नी और पुत्री भी चुनाव में स्टार प्रचारक बनकर लोगों के बीच पहुंचते हैं। सत्ता का सुख भोगने के आदी नीतिश कुमार भला पैंतरे क्यों नहीं दिखाएंगे? वह इस समय केंद्र सरकार के साथ जो हैं।
राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के नाम पर भाजपा अपना काम कर लेगी, लेकिन बसपा को जनाधार दिखा पाना यहां बड़ा कठिन है। मायावती यहां कुछ नई इंजीनियरिंग फिट करना चाहती हैं। इसके लिए वह बिहार की सभी 243 सीटों पर प्रत्याशी उतारने के लिए किसी से गठबंधन भी नहीं करेंगी। वैसे तो बसपा जब खुलकर चुनाव लड़ती है तो जनता का समर्थन भी उसे मिलता है। बिहार की राजनीतिक टेक्नॉलाजी के लिए उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेता रामजी गौतम को गुरुवार के दिन बिहार भेजा था। उन्होंने यह संदेश दे दिया कि बसपा चुनाव मैदान में उतरेगी। रामजी के साथ आकाश आनंद भी बिहार में थे। आकाश अभी राजनीति में परिपक्व भले ही नहीं हैं, लेकिन युवा हैं। यूपी चुनाव में बसपा प्रमुख ने आकाश को जिम्मेदारी दी थी, लेकिन वह जुबानी जंग में माहौल को बदरंग कर दिया।
हालांकि, अब समय के साथ काफी कुछ बदलाव आया है और वह भी मायावती के वोट बैंक को ही अपने खेमे में लाने के लिए कोशिश करेंगे। पटना में मीडिया से बातचीत तो रामजी ने किया, लेकिन रोड शो मायावती के भतीजे आकाश आनंद का था। दलित बहुल सीटों पर बसपा अपना असर डाल सकती है, यही यहां के चुनाव में तड़का होगा। क्योंकि इस वोट बैंक के बिना किसी भी पार्टी की मजबूती नहीं हो सकती है और आकाश इसे ही जुटाने में जुट गए हैं। दूसरी ओर लालू प्रसाद यादव की पार्टी के लिए भी मेहनत बढ़ गई है। यूपी में बसपा का गढ़ रहा, लेकिन यहां की जमीन भी उनके हाथ से निकल गई। ेभले ही बसपा साल 2000 के चुनाव में 5 सीटें जीती, जबकि 2005 के चुनाव में दो सीटें मिलीं। 2009 के उप चुनाव में एक सीट पर ही जीत मिली है। बिहार में करीब 58 फीसदी आबादी 25 वर्ष से कम उम्र के हैं। आकाश आनंद इनको अपनी ओर आसानी से ला सकते हैं।
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