नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में हाल ही में हुए ’विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision & SIR) के दौरान वोटर लिस्ट से हटाए गए 3.66 लाख वोटरों के नामों की विस्तृत जानकारी चुनाव आयोग से मांगी है। यह निर्देश जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान दिया। अदालत ने इस प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और संभावित अनियमितताओं को गंभीरता से लेते हुए आयोग को स्पष्ट रिपोर्ट देने के लिए कहा है।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत को जानकारी दी कि जिन लोगों के नाम सूची से हटे हैं, उन्हें इसकी जानकारी न तो पहले से दी गई और न ही हटाने का कारण ही बताया गया। जवाब में चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि अभी तक किसी भी प्रभावित व्यक्ति ने आयोग के पास औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं कराई है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता पक्ष से पूछा कि क्या वास्तव में ऐसे लोग मौजूद हैं? इस पर वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि वे सौ से अधिक ऐसे नागरिकों को पेश कर सकते हैं जिनका नाम बिना किसी कारण के हटाया गया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति वास्तविक रूप से पीड़ित है और सामने आता है, तो चुनाव आयोग को ठोस निर्देश दिए जाएंगे।
न्यायमूर्ति बागची ने भी मतदाता सूची में पारदर्शिता पर जोर देते हुए कहा कि यह स्पष्ट होना चाहिए कि अंतिम सूची में जोड़े गए नाम पुराने हटाए गए लोगों के हैं या नए मतदाता हैं। उन्होंने कहा कि यदि मृतकों, स्थानांतरित नागरिकों या डुप्लीकेट नामों को हटाया गया है तो वह स्वीकार्य है, लेकिन हर स्थिति में नियम 21 और एसओपी का पालन होना चाहिए। चुनाव आयोग ने 30 सितंबर को बिहार की अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की, जिसमें कुल मतदाताओं की संख्या घटकर 7.42 करोड़ रह गई, जो पहले 7.89 करोड़ थी। हालांकि 1 अगस्त को जारी मसौदा सूची से तुलना करें तो उसमें करीब 17.87 लाख मतदाताओं की वृद्धि दर्ज की गई है। यह वृद्धि 21.53 लाख नए नाम जोड़ने और 3.66 लाख नाम हटाने के बाद हुई।
चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि अधिकांश जोड़े गए नाम नए मतदाताओं के हैं, जबकि कुछ हटाए गए नामों को भी जोड़ा गया है। अब तक किसी भी व्यक्ति ने आयोग से शिकायत नहीं की है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने 8 सितंबर को यह निर्देश दिया था कि आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में मान्यता दी जाए, ताकि मतदाता अपनी पहचान साबित कर सकें। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया था कि आधार को नागरिकता प्रमाण पत्र के रूप में नहीं, बल्कि एक पहचान दस्तावेज के रूप में उपयोग किया जाए। इस पूरे मामले की अगली सुनवाई 9 अक्टूबर को होगी। अदालत की यह सक्रियता ऐसे समय में आई है जब बिहार में विधानसभा चुनाव दो चरणों में कराए जा रहे हैं, पहला चरण 6 नवंबर और दूसरा चरण 11 नवंबर, जबकि मतगणना 14 नवंबर को होगी।
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