CET की डेट एक्सटेंशन का दिखावा, महज 48 घण्टे बढ़े, कौन जिम्मेदार है इस टॉर्चर के लिए?

खबर सार :-
हरियाणा में आज जो हालात हैं, वहां डिजिटल नहीं, टॉर्चर इंडिया का निर्माण हो रहा है। एक ऐसी स्थिति जहाँ फैमिली आईडी और सरल पोर्टल के कारण लाखों अभ्यर्थी जाति प्रमाणपत्र, निवास प्रमाणपत्र और आय प्रमाणपत्र नहीं बनवा पा रहे हैं। जिसके बिना वह न तो सरकारी फॉर्म भर सकते हैं, न छात्रवृत्तियों के लिए आवेदन कर सकते हैं, न नौकरी की प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं।

CET की डेट एक्सटेंशन का दिखावा, महज 48 घण्टे बढ़े, कौन जिम्मेदार है इस टॉर्चर के लिए?
खबर विस्तार : -

प्रियंका सौरभ

“डिजिटल इंडिया” का सपना दिखाया गया था कि नागरिकों की जिंदगी आसान होगी। सरकारी सेवाएं घर बैठे मिलेंगी, लाइनें खत्म होंगी, पारदर्शिता बढ़ेगी और हर बच्चा, हर छात्र, हर युवा आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम बढ़ाएगा। लेकिन हरियाणा में आज जो हालात हैं, वहां डिजिटल नहीं, टॉर्चर इंडिया का निर्माण हो रहा है। एक ऐसी स्थिति जहाँ फैमिली आईडी और सरल पोर्टल के कारण लाखों अभ्यर्थी जाति प्रमाणपत्र, निवास प्रमाणपत्र और आय प्रमाणपत्र नहीं बनवा पा रहे हैं। जिसके बिना वह न तो सरकारी फॉर्म भर सकते हैं, न छात्रवृत्तियों के लिए आवेदन कर सकते हैं, न नौकरी की प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं। यह सिर्फ एक तकनीकी समस्या नहीं, लाखों युवाओं के भविष्य का सवाल है।

फैमिली आईडी – सुविधा या फांस?

हरियाणा सरकार द्वारा बनाई गई फैमिली आईडी को “वन स्टेट, वन फैमिली, वन रिकॉर्ड” के नाम पर पेश किया गया था। लेकिन इसकी तकनीकी खामियों ने हजारों परिवारों को बेबस बना दिया है। कई अभ्यर्थियों की फैमिली आईडी में गलत नाम या जन्मतिथि दर्ज है। कुछ परिवारों में सदस्यों की संख्या गलत दर्ज है, तो कुछ में तो मृत व्यक्ति अभी भी जीवित दिख रहे हैं। बच्चों की माताओं के नाम गायब हैं, तो कभी कभार जाति की जानकारी “नोट एवेलेबल” बता दी जाती है। सरकार ने आदेश दे दिए — “जो फैमिली आईडी में नहीं, वह सरकारी सुविधा में नहीं।” पर उस ID को दुरुस्त कौन करेगा? और कब?

सरल पोर्टल नहीं, सबसे मुश्किल प्लेटफॉर्म

सरल पोर्टल को नागरिक सेवाओं को ऑनलाइन बनाने के लिए शुरू किया गया था। लेकिन नाम के विपरीत ये पोर्टल ना तो सरल है, ना ही सुचारु। लॉगिन नहीं होती, या बार-बार लॉग आउट कर देती है। OTP या तो आता नहीं, या देर से आता है। डॉक्युमेंट अपलोड 99% पर जाकर फेल हो जाता है। एक अपॉइंटमेंट स्लॉट के लिए छात्र 5-6 दिन तक सुबह से शाम तक वेबसाइट पर चिपके रहते हैं। एक फॉर्म भरने के लिए किसी छात्र को 7-8 दिन तक कंप्यूटर के आगे बैठना पड़े, तो वह पढ़ाई कब करेगा? मानसिक तनाव से कैसे बचेगा?

CET की तारीखें बढ़ीं, पर सर्टिफिकेट कहाँ से लाएं?

कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट (सीईटी) आवेदन की अंतिम तिथि बढ़ाने का सरकार का फैसला छात्रों के लिए चिंता का विषय प्रतीत होता है, लेकिन यह अंतर्निहित मुद्दों को पूरी तरह से संबोधित नहीं करता है। एक गंभीर समस्या बनी हुई है: छात्र आवश्यक जाति और निवास प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इन दस्तावेजों के बिना, वे फॉर्म कैसे भर सकते हैं?

यह स्थिति विशेष रूप से उन हजारों छात्रों के लिए विकट है जो सीईटी में अपने अंतिम प्रयास के लिए आयु सीमा के करीब हैं। इसके अलावा, ओबीसी, एससी और एसटी छात्र अपने संबंधित जाति प्रमाण पत्र के बिना सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन नहीं कर सकते हैं, जिससे उन्हें महत्वपूर्ण आरक्षण लाभ और छात्रवृत्ति से वंचित होना पड़ सकता है।

यदि इन महत्वपूर्ण प्रमाण पत्रों को जारी करने की मूलभूत प्रशासनिक प्रणाली में खामियां हैं, तो केवल समय सीमा बढ़ाना एक व्यापक समाधान नहीं है। सरकार को यह पहचानने की जरूरत है कि प्रमाण पत्र जारी करने में प्रणालीगत विफलता किसी भी समय सीमा विस्तार को छात्र आबादी के एक महत्वपूर्ण हिस्से के लिए काफी हद तक अप्रभावी बना देती है।

कौन जिम्मेदार है इस टॉर्चर के लिए?

जब छात्र परेशान होते हैं, तो वह अपनी आवाज सोशल मीडिया पर उठाते हैं। कुछ मीडिया चैनल भी उनकी आवाज़ बन जाते हैं। परंतु जब मंत्री या विभाग प्रमुख यह कहकर पल्ला झाड़ते हैं कि “पोर्टल तो ठीक है, सब exaggerated है” — तब स्पष्ट हो जाता है कि या तो वे ज़मीनी हकीकत से कटे हुए हैं, या जानबूझकर आंखें मूंद रखी हैं। नायब सैनी जी, क्या आपने कभी खुद सरल पोर्टल खोल कर देखा है कि वह कैसे चलता है? वह यह जवाब दे पाने में नाकाम है कि उन छात्रों का क्या होगा जिनकी उम्र, परीक्षा और सपना इस पोर्टल की देरी के कारण छिन गया?

लाखों युवाओं का प्रश्न – आखिर कब सुधरेगा सिस्टम?

हरियाणा में आखिर बार-बार ऐसी परेशानियाँ क्यों होती हैं? दूसरे राज्यों में छात्र बिना किसी तकनीकी बाधा के आसानी से फॉर्म भरते हैं। पोर्टल सुचारू रूप से चलते हैं, डेटा सुरक्षित रहता है, और सरकारी तंत्र सहयोगी भूमिका निभाता है। लेकिन हरियाणा में तो डिजिटल पोर्टल किसी मानसिक यातना केंद्र से कम नहीं हैं। सरकार दावे करती है – "बेरोजगारी खत्म करेंगे।" पर असल सवाल यह है – "क्या युवाओं को नौकरी के लिए बराबरी का मौका भी मिलेगा?"

क्या समाधान हो सकते हैं?

सरल पोर्टल की आपातकालीन मरम्मत हो तकनीकी टीम को पोर्टल 24x7 मॉनिटर करने का आदेश मिले। यदि ज़रूरी हो तो IIT या NIC जैसी एजेंसियों से मदद ली जाए।  सरकार ने फैमिली आईडी अपडेट प्रक्रिया को लेकर छात्रों की चिंताओं पर ध्यान दिया है और कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई भी छात्र अवसर से वंचित न रहे।  फैमिली आईडी अपडेट प्रक्रिया को तेज और सुव्यवस्थित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही, उन लोगों के लिए ऑफ़लाइन विकल्प भी फिर से शुरू किए जाने चाहिए जिनके पास डिजिटल पहुँच नहीं है या जिन्हें ऑनलाइन प्रक्रिया में कठिनाई आ रही है। जिलों में विशेष कैंप आयोजित करके फैमिली आईडी और अन्य आवश्यक प्रमाणपत्रों से संबंधित लंबित मामलों को तुरंत निपटाया जाना चाहिए। इससे बड़ी संख्या में छात्रों को राहत मिलेगी।

यह केवल तकनीकी नहीं, नैतिक विफलता है

सरकार की असली परीक्षा तब होती है जब नागरिक संकट में हो। हरियाणा के लाखों छात्र, किसान, गरीब, श्रमिक – सब पोर्टल के इस जाल में फंसे हुए हैं। यदि एक भी छात्र का भविष्य इस कारण से बर्बाद होता है कि वह सर्टिफिकेट नहीं बनवा पाया — तो यह किसी भी संवेदनशील सरकार के लिए शर्म की बात होनी चाहिए। "डिजिटल इंडिया" का मतलब डिजिटल शोषण नहीं है। सरकार को ज़िम्मेदारी लेनी ही होगी।

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