RBI Credit Flow: को-लेंडिंग व्यवस्था का विस्तार करेगा आरबीआई
Summary : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बुधवार को बैंक और नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी यानी एनबीएफसी के को-लेंडिंग की लिमिट का विस्तार करने का ऐलान किया है।
नई दिल्लीः भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बुधवार को बैंक और नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी यानी एनबीएफसी के को-लेंडिंग की लिमिट का विस्तार करने का ऐलान किया है। फिलहाल, अब तक जो व्यवस्था चल रही थी, उसके हिसाब से बैंक और एनबीएफसी दोनों प्रायोरिटी सेक्टर में ही को-लेंडिंग कर सकते हैं। प्रायोरिटी सेक्टर में कृषि, सूक्ष्म उद्यम और कमजोर वर्ग के लोगों को शामिल किया जाता है। ऐसे समय में आरबीआई ने अब को-लेंडिंग का एक अत्यधिक समावेशी ढांचा प्रस्तुत करने की योजना तैयार की है, जिसमें सभी विनियमित संस्थाओं और सभी प्रकार के लोन को शामिल किया जाएगा।
आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि को-लेंडिंग पर मौजूदा दिशा-निर्देश केवल प्रायोरिटी सेक्टर के लोन के लिए बैंकों और एनबीएफसी की व्यवस्थाओं पर ही लागू होते हैं। क्रेडिट फ्लो को बढ़ाने की को-लेंडिंग की क्षमता को ध्यान में रखते हुए, उसकी लिमिट का विस्तार करने और विनियमित संस्थाओं के बीच सभी प्रकार की को-लेंडिंग व्यवस्थाओं के लिए एक सामान्य नियामक ढांचा जारी करने का निर्णय लिया गया है। वित्त से जुड़े मसौदे को दिशा-निर्देश सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए जारी किया जा रहा है। गवर्नर ने यह भी कहा कि इस तरह की लेंडिंग क्षमताओं का लाभ उठाने के लिए, प्रस्ताव में को-लेंडिंग को सभी विनियमित संस्थाओं और सभी प्रकार के लोन तक विस्तार करने का फैसला किया गया है।
दरअसल, को-लेंडिंग एक आधुनिक व्यवस्था है, इसमें दो संस्थाओं द्वारा मिलकर लोन दिया जाता है। इसमें एक प्राइमरी लेंडर होता है, जो कि मुख्यत: बैंक होता है और दूसरा बैंक, एनबीएफसी या फिनटेक कंपनी हो सकती है। किसी भी संस्था को दिए गए लोन में अपनी हिस्सेदारी के मुताबिक, दोनों कंपनियां वित्तीय भार उठाती हैं और संभावित रिटर्न भी कमाती हैं। रिजर्व बैंक ने सभी विनियमित संस्थाओं के लिए गैर-निधि आधारित यानी एनएफबी सुविधाओं जैसे गारंटी, क्रेडिट लेटर, सह-स्वीकृति आदि को कवर करने वाले दिशा-निर्देशों को सुसंगत और समेकित करने का भी निर्णय लिया है, क्योंकि वे व्यापार लेनदेन सहित निर्बाध व्यावसायिक लेनदेन को सक्षम करने के अलावा प्रभावी ऋण मध्यस्थता को सुविधाजनक बनाने में भी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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