World Labor Day 2025: हिंदी सिनेमा के वो जोशीले डायलॉग्स, जिसमें दिखती है मेहनतकशों की झलक

खबर सार : -
World Labor Day: 1 मई को पूरी दुनिया में मजदूर दिवस मनाया जा रहा है। मजदूर दिवस मनाने के पीछे का उद्देश्य पूरी दुनिया में मेहनतकश लोगों की समस्याओं में सुधार लाना और उनके प्रति जागरूकता फैलाना है।

खबर विस्तार : -

World Labor Day 2025: हर साल की तरह इस साल भी आज यानी 1 मई को पूरी दुनिया में मजदूर दिवस मनाया जा रहा है। मजदूर दिवस मनाने के पीछे का उद्देश्य पूरी दुनिया में मेहनतकश लोगों की समस्याओं में सुधार लाना और उनके प्रति जागरूकता फैलाना है। भारत में भी मजदूर दिवस बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है और इस दिन विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।

 World Labor Day 2025: हिन्दी सिनेमा में मजदूरों पर बनी कई फिल्में

हिंदी सिनेमा में भी मजदूरों के संघर्ष और अधिकारों की चर्चा होती है। सिनेमा की दुनिया में भी मजदूरों के जीवन पर आधारित कई फिल्में बनी हैं। इनकी कहानी और जोशीले डायलॉग दिल को छू लेने वाले होते हैं। हिंदी सिनेमा में अंत में हीरो को जीतते हुए दिखाया जाता है, लेकिन असल जिंदगी में हीरो वो होता है जो हर दिन हारकर भी अगली सुबह काम पर लौट आता है। जिनके हाथ में गिटार नहीं होता, काम करने वाला औजार होता है। 

जो एक बड़ी इमारत की नींव में अपनी कहानी छोड़ जाते हैं। दिलीप कुमार-अमिताभ बच्चन से लेकर सनी देओल तक ज़्यादातर अभिनेताओं ने अपने अनदेखे किरदारों को असल ज़िंदगी में निभाया है। साथ ही उन्होंने ऐसे डायलॉग भी बोले जो उनके संघर्ष और स्वाभिमान की कहानी को बखूबी बयां करते हैं और प्रेरणा देने का काम भी करते हैं।

World Labor Day 2025: हिंदी सिनेमा के वो जोशीले डायलॉग्स, जो मजदूरो में भर देता है जोश 


'ये मजदूर का हाथ है कातिया, लोहे को पिघलाकर उसका आकार बदल देता है'...जब सनी देओल ने फिल्म 'घातक' में ये डायलॉग बोला तो ऐसा लगा जैसे मजदूरों में एक अलग ही जोश भर गया हो। ये डायलॉग मजदूरों की ताकत को बयां करता है।

'हम गरीब ज़रूर हैं, लेकिन बेइज्जत नहीं'...ये डायलॉग 'दीवार' का है। 80 के दशक का वो दौर जब मजदूर यूनियनों का बोलबाला था। अमिताभ बच्चन ने ये डायलॉग बहुत ही शानदार तरीके से बोला। ये स्वाभिमान और गरीबी के बीच बनी मजदूरों की पहचान को बयां करता है।

'मजदूर को उसका पसीना सूखने से पहले उसकी मजदूरी मिल जानी चाहिए', यह डायलॉग 1982 में आई फिल्म 'मजदूर' का है, जिसे भारतीय सिनेमा के लीजेंड दिलीप कुमार ने निभाया था। इस सीन में सिद्धांतवादी और स्वाभिमानी दीनानाथ उर्फ ​​दीनू काका बिगड़ैल फैक्ट्री मालिक सुरेश ओबेरॉय के सामने ज्यादतियों के खिलाफ आवाज उठाते हैं। वह जुल्म के आगे झुकते नहीं बल्कि सीना तानकर खड़े हो जाते हैं।

'ये काले कोयले से निकलती मेहनत की चमक है...इसमें खून-पसीना है'... यह डायलॉग फिल्म 'काला पत्थर' का है। इस डायलॉग के जरिए बताया गया है कि मजदूरों की मेहनत से उड़ती धूल उनके खून-पसीने की कहानी है।
 

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