Kabir Jayanti - 11 June 2025: मगहर बना कबीर की सोच का प्रतीक, जहां मौत भी मोक्ष का संदेश बन गई

खबर सार :-
Kabir Jayanti - 11 June 2025: मगहर अब धार्मिक सौहार्द और कबीरपंथ की आस्था का मुख्य केंद्र बन चुका है। जानिए मगहर की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक यात्रा।

Kabir Jayanti - 11 June 2025:  मगहर बना कबीर की सोच का प्रतीक, जहां मौत भी मोक्ष का संदेश बन गई
खबर विस्तार : -

Kabir Jayanti - 11 June 2025: प्राचीन काल से ही वाराणसी को मोक्षदायिनी नगर के रूप में पहचान मिली। वहीं दूसरी ओर मगहर के बारे में किवदंती थी कि यह अपवित्र जगह है और यहां मरने से व्यक्ति अगले जन्म में या तो गधा बनता है या फिर नरक में जाता है। सोलहवीं सदी में एक महान संत ने जन्म लिया। कबीरदास वाराणसी में अपने जन्म से ही वाराणसी में रहे और जीवन जीया। जब मृत्यु के निकट पहुंचे तो संत कबीरदास ने शरीर छोड़ने के लिए मगहर को चुना। अब से पांच सौ साल पहले वर्ष 1518 में यहीं उनकी मृत्यु हुई।

कबीर अपनी मर्जी से मगहर सिर्फ प्राण त्यागने आए थे। वह उस किंवदंती या अंधविश्वास को मिटाना चाहते थे कि काशी में मोक्ष मिलता है और मगहर में नरक। मगहर में अब कबीर की समाधि और उनकी मज़ार दोनों स्थित हैं। मगहर के निवासियों का कहना है कि मगहर को चाहे जिस वजह से जाना जाता रहा हो लेकिन कबीर साहब ने उसे पवित्र नगर बना दिया। आज दुनिया भर में इसे लोग जानते हैं और यहां आते हैं।

Kabir Jayanti - 11 June 2025: परंपरा और पहचान का संगम है मगहर

मगहर न सिर्फ कबीरपंथियों की आस्था का केंद्र है, बल्कि हिन्दू-मुस्लिम एकता का जीता-जागता उदाहरण भी है। यहां समाधि के पास मस्जिद और मंदिर एक साथ मौजूद हैं। क़रीब ही एक गुरुद्वारा भी है। यही वजह है कि यहां हर साल लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, मगहर अब अपवित्र नहीं माना जाता, बल्कि इसे कबीर की धरती के रूप में पहचाना जाता है। कबीर अपने अंतिम समय में जहां ठहरे थे, उस क्षेत्र में आज भी उनकी विचारधारा की गूंज महसूस की जा सकती है। आमी नदी के किनारे जहां शवदाह किया जाता है, उसी के दाहिने तट पर एक कब्रिस्तान स्थित है, जो आज भी वहीं मौजूद है।

Kabir Jayanti - 11 June 2025: कबीर छोड़ गए है धार्मिक सामंजस्य और भाई-चारे की विरासत

हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के तौर पर याद किए जाने वाले संत कवि कबीर धार्मिक सामंजस्य और भाई-चारे की जो विरासत छोड़कर गए हैं, उसे इस परिसर में जीवंत रूप में दिखाई देता है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि ये सब बहुत आसानी से हो गया हो। कबीर दास की मृत्यु के बाद उनके पार्थिव शरीर पर अधिकार को लेकर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच हुए संघर्ष की कथाएं भी प्रचलित हैं। जानकारों के मुताबिक, उसी का नतीजा है कि हिन्दुओं ने उनकी समाधि बनाई और मुसलमानों ने क़ब्र। लेकिन अब उनके अनुयायी इन दोनों ही जगहों पर अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए आते हैं।

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