RAW New Chief: रॉ के नये चीफ बने आईपीएस पराग जैन

खबर सार :-
केंद्र सरकार ने भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के नये चीफ की नियुक्ति कर दी है। इस बार काउंटर टेररिज्म स्पेशलिस्ट और रॉ में दूसरे नंबर के अधिकारी पराग जैन को रॉ का नया प्रमुख बनाया गया है। रॉ के वर्तमान प्रमुख रवि सिन्हा के 30 जून को रिटायर होने के बाद पराग जैन 1 जुलाई को अपना कार्यभार ग्रहण करेंगे।

RAW New Chief: रॉ के नये चीफ बने आईपीएस पराग जैन
खबर विस्तार : -

नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने पंजाब कैडर के 1989 बैच के आईपीएस अधिकारी पराग जैन को रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) का नया प्रमुख नियुक्त किया है। वह रवि सिन्हा की जगह लेंगे, जिनका मौजूदा कार्यकाल 30 जून को समाप्त हो रहा है। 1988 बैच के आईपीएस और छत्तीसगढ़ बैच के सीनियर अधिकारी रवि सिन्हा ने 30 जून 2023 को अपना पदभार ग्रहण किया था, तब से वो लगातार अपने खास उपलब्धियों की वजह से चर्चा में रहे हैं। 

1 जुलाई को संभालेंगे पदभार

आईपीएस पराग जैन की नियुक्ति को इंटेलिजेंस के क्षेत्र में बड़ा कदम माना जा रहा है। पराग जैन 1 जुलाई 2025 को अपना पदभार ग्रहण करेंगे, इसके बाद वह दो साल के निश्चित कार्यकाल तक अपने पद पर बने रहेंगे। पराग जैन रिसर्च एंड एनालिसिस विंग में रवि सिन्हा के बाद दूसरे नंबर पर थे। उन्हें आतंकवाद निरोधक विशेषज्ञ माना जाता है। यही नहीं, उन्हें खास तौर पर अफगानिस्तान-पाकिस्तान क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल है। अफगानिस्तान-पाकिस्तान क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने वाले आतंकवाद निरोधी विशेषज्ञ के रूप में उनकी विशेषज्ञता, विशेष रूप से सीमा पार आतंकी नेटवर्क को डिकोड करने में, आने वाले वर्षों में रॉ की स्थिति को आकार देने की उम्मीद है। जैन की नियुक्ति भारत के कुछ सबसे संवेदनशील सुरक्षा परिदृश्यों में सामने आई है। वह वर्तमान में एविएशन रिसर्च सेंटर का नेतृत्व कर रहे हैं। जैन को ऑपरेशन सिंदूर के दौरान खुफिया प्रयासों को आगे बढ़ाने का श्रेय दिया जाता है। इस मिशन के तहत भारतीय सेना ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान और पीओके में 9 आंतकी ठिकानों को टॉर्गेट कर हमला किया और उन्हें पूरी तरह से तबाह कर दिया था। 

रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के गठन का इतिहास

भारत की विदेशी खुफिया एजेंसी का नाम रिसर्च एंड एनालिसिस विंग है। देश में वर्ष 1968 से पहले, इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी ही देश के अंदर और बाहर की खुफिया जानकारी जुटाने का काम करता था, लेकिन 1962 के भारत-चीन युद्ध और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद परिस्थितियां बिल्कुल बदल गईं। देश की सरकार को सटीकता से विदेशी खुफिया जानकारी इकट्ठा करने की जरूरत महसूस हुई। इसलिए सरकार ने अपनी खुफिया जानकारी जुटाने संबंधी जरूरत को पूरा करने के लिए 'रॉ' का गठन किया। तब से इंटेलिजेंट एजेंसी रॉ भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर सीधा असर डालने वाले पड़ोसी देशों के घटनाक्रमों पर नजर रखती है। भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए गुप्त अभियान चलाना और देश के लिए खतरा पैदा करने वाले आतंकी तत्वों को निष्क्रिय करना भी रॉ के कार्यों में शामिल है। रॉ दूसरे देशों में सक्रिय उन समूहों की जानकारी इकट्ठा करती है, जो भारत की सुरक्षा और अखंडता के लिए खतरा हैं। इसके बाद उन्हें निष्क्रिय करने का कार्य रॉ ही करती है।

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