नई दिल्लीः पाकिस्तान एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की शर्तों पर खरा उतरने में नाकाम रहा है। 7 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज की दूसरी समीक्षा में पाकिस्तान ने तय किए गए पांच में से केवल दो ही लक्ष्य पूरे किए हैं, जबकि तीन अहम आर्थिक लक्ष्यों को पाने में वह विफल रहा है। इससे भारत का वह रुख फिर से सही साबित हुआ है जिसमें उसने चेताया था कि पाकिस्तान की आर्थिक नीतियां अव्यवस्थित हैं और वह बार-बार अंतरराष्ट्रीय कर्जदाताओं का दरवाजा खटखटाने वाला देश है।
पाकिस्तान के संघीय राजस्व बोर्ड (FBR) द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, वह 12.3 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपये का राजस्व लक्ष्य हासिल नहीं कर सका। साथ ही खुदरा व्यापारियों को कर दायरे में लाने के लिए शुरू की गई 'ताजिर दोस्त योजना' के जरिए 50 अरब रुपये इकट्ठा करने का प्रयास भी बुरी तरह विफल रहा। इस योजना को देश की असंगठित अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण का प्रयास बताया जा रहा था, लेकिन जमीनी हकीकत इसके ठीक उलट रही। वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रांतीय सरकारें भी खर्च पर लगाम नहीं लगा सकीं और 1.2 लाख करोड़ रुपये की बचत का लक्ष्य चूक गईं। यह सब ऐसे समय में हुआ जब देश पहले ही गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, विदेशी मुद्रा भंडार घट रहा है और महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर है।
भारत ने पहले ही IMF और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को आगाह किया था कि पाकिस्तान को दी जाने वाली मदद का उपयोग वह सैन्य उद्देश्यों और आतंकवाद को समर्थन देने में कर सकता है। भारत का कहना रहा है कि पाकिस्तान की नीति और अर्थव्यवस्था पर सेना का अत्यधिक प्रभाव है, जो सुधारों की राह में सबसे बड़ी बाधा है। IMF की पिछली बैठक में भारत के प्रतिनिधि परमेश्वरन अय्यर ने वैश्विक वित्तीय संस्थानों को नैतिक जिम्मेदारियों की याद दिलाते हुए कहा था कि इन संस्थानों को केवल तकनीकी शर्तों के आधार पर नहीं, बल्कि लाभार्थी देशों के ट्रैक रिकॉर्ड और पारदर्शिता के आधार पर भी निर्णय लेने चाहिएं।
सितंबर 2023 में IMF ने पाकिस्तान को 7 अरब डॉलर की सहायता को मंजूरी दी थी, जिसमें से एक किश्त पहले ही जारी हो चुकी है। शुक्रवार को हुई नई समीक्षा बैठक में स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तान अपने वादों पर खरा नहीं उतर सका। भारत ने इस पर दोबारा कहा कि यदि पाकिस्तान ने पूर्व की योजनाओं से कोई सबक लिया होता और व्यापक आर्थिक नीतियों को मजबूती से लागू किया होता, तो आज उसे फिर से अंतरराष्ट्रीय सहायता की जरूरत न पड़ती। बार-बार शर्तों को तोड़ना, सैन्य दखल और सुधारों से पलटना पाकिस्तान की सबसे बड़ी कमजोरी बन चुका है।
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