क्वेटा, पाकिस्तानः पाकिस्तान में हालात ठीक नहीं है, यहां देश की जनता के सामने दिन ब दिन कोई न कोई मुसीबत खड़ी ही रहती है। ताजा मामला इंटरनेट सेवाओं से जुड़ा हुआ है। पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में इंटरनेट सेवाओं का निलंबन अब एक गंभीर सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक संकट का रूप ले चुका है। पिछले कई दिनों से जारी इस डिजिटल ब्लैकआउट ने हजारों छात्रों, उद्यमियों, पत्रकारों और आम नागरिकों को बुरी तरह प्रभावित किया है। प्रांतीय सरकार का कहना है कि यह कदम क्षेत्र में सक्रिय उग्रवादी गुटों के बीच संचार को रोकने और "राष्ट्रीय सुरक्षा" सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उठाया गया है।
सुरक्षा एजेंसियों की सिफारिश पर लिया गया यह फैसला अगस्त की शुरुआत में लागू हुआ, जो अब 31 अगस्त तक लागू रहने की आधिकारिक घोषणा पाकिस्तान टेलीकॉम अथॉरिटी (PTA) द्वारा की गई है। अधिकारियों ने कहा है कि यह निर्णय विशेष रूप से पाकिस्तान के 'राष्ट्रीय दिवस समारोहों' के दौरान संभावित हिंसक गतिविधियों को रोकने के लिए जरूरी था। हालांकि, ज़मीनी हकीकत इससे अलग दिखाई दे रही है। क्वेटा, तुर्बत, खुजदार और पंजगुर जैसे प्रमुख शहरों सहित ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों ने सरकार की इस नीति की कड़ी आलोचना की है।
ऑनलाइन शिक्षा पर निर्भर छात्रों के लिए यह स्थिति अत्यंत कठिन बन गई है। कई छात्रों ने बताया कि वे न तो अपने वर्चुअल क्लास में शामिल हो पा रहे हैं और न ही असाइनमेंट जमा कर पा रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में जहां पहले ही शिक्षा के साधन सीमित हैं, वहां इंटरनेट बंद होने से शैक्षणिक असमानता और बढ़ गई है।
बलूचिस्तान के कई हिस्सों में हजारों लोग ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर काम करते हैं। खासकर फ्रीलांसर और छोटे व्यवसायी, जिनका काम पूरी तरह इंटरनेट पर निर्भर है, आर्थिक संकट में घिर गए हैं। एक स्थानीय उद्यमी ने बताया, “हमारी आजीविका डिजिटल काम से चलती थी। अब महीनों से कोई कमाई नहीं हो रही है। हम दिवालियापन के कगार पर हैं।”
पत्रकारों और मीडिया संस्थानों के लिए भी यह इंटरनेट बंदी अभूतपूर्व चुनौती बनकर आई है। स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि वे क्षेत्र की वास्तविक स्थिति को बाहर की दुनिया तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं। कई रिपोर्टर्स ने इस स्थिति को "सूचना का अंधकार" या 'इन्फॉर्मेशन ब्लैकआउट' कहा है, जो प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है।
मानवाधिकार परिषद पाकिस्तान (HRC-PK) और अन्य संगठनों ने इस कदम को "नागरिक स्वतंत्रताओं का उल्लंघन" करार दिया है। परिषद द्वारा जारी एक बयान में कहा गया, "इंटरनेट सेवाएं बंद करने का निर्णय क्रूर और असंवेदनशील है, जिससे लाखों निर्दोष नागरिकों को अनावश्यक रूप से पीड़ित किया गया है।" परिषद ने सरकार से पूछा है कि क्या संपूर्ण प्रांत को संचार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं से काट देना किसी भी रूप में न्यायोचित ठहराया जा सकता है? उनका कहना है कि यह नीति आतंकवाद से निपटने के बजाय नागरिकों के मन में सरकार के प्रति अविश्वास को जन्म देती है।
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