मांस ही नहीं दूध, चीनी, तेल, सीमेंट को भी दिया जा रहा है हलाल सर्टिफिकेट : सांसद मेधा कुलकर्णी

खबर सार :-
राज्यसभा में भाजपा सांसद मेधा कुलकर्णी द्वारा उठाए गए इस मुद्दे ने हलाल सर्टिफिकेशन की सीमा, प्रक्रिया, पारदर्शिता और धार्मिक-आर्थिक प्रभावों पर नई बहस शुरू कर दी है। उनके अनुसार हलाल को मांस तक सीमित रहना चाहिए और गैर-खाद्य व सामान्य उत्पादों पर इसका लागू होना अव्यावहारिक है। वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि इस विषय पर व्यापक, वैज्ञानिक और तथ्यपरक विमर्श आवश्यक है।

मांस ही नहीं दूध, चीनी, तेल, सीमेंट को भी दिया जा रहा है हलाल सर्टिफिकेट : सांसद मेधा कुलकर्णी
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Parliament Session 2025: राज्यसभा में बुधवार को भाजपा सांसद डॉ. मेधा विश्राम कुलकर्णी ने हलाल सर्टिफिकेशन के दायरे और इससे जुड़ी प्रक्रियाओं पर गंभीर आपत्तियां जताईं। उन्होंने कहा कि हलाल मूलतः मांस और इस्लामिक पद्धति से जुड़े नियमों का विषय है, लेकिन वर्तमान में प्लास्टिक, सीमेंट, केमिकल, दूध, चीनी, तेल और यहां तक कि औषधियों जैसे गैर-मांस व गैर-खाद्य उत्पादों को भी हलाल प्रमाणपत्र दिए जा रहे हैं, जो तर्कसंगत नहीं है। सांसद मेधा कुलकर्णी ने यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि हलाल पूरी तरह धार्मिक अवधारणा है, इसलिए इसका दायरा केवल मांस तक सीमित रहना चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि सामान्य उपयोग की वस्तुओं को धार्मिक आधार पर प्रमाणित किए जाने की आवश्यकता क्यों पैदा हो रही है।

हलाल प्रमाणन धार्मिक संस्थाओं के हाथ में क्यों?

कुलकर्णी ने सदन में कहा कि मीट का हलाल सर्टिफिकेट किसी धार्मिक संस्था द्वारा नहीं बल्कि सरकार द्वारा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत एक सेकुलर राष्ट्र है, जहां विभिन्न धर्मों, परंपराओं और आस्थाओं के लोग रहते हैं। ऐसे में हलाल सर्टिफाइड उत्पादों को अनिवार्य रूप से बाजार में लागू करना उन समुदायों की भावनाओं के विपरीत है जो हलाल मांस का सेवन नहीं करते, जैसे कि हिंदू और सिख समाज। उन्होंने यह मुद्दा भी उठाया कि इस प्रकार के धार्मिक सर्टिफिकेशन को व्यापक उत्पादों पर लागू करना संविधान द्वारा दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों के भी विरुद्ध जाता है।

गैर-खाद्य वस्तुओं तक हलाल का विस्तार ‘अतार्किक’

सांसद ने सदन में यह कहते हुए चिंता जताई कि न सिर्फ खाद्य पदार्थ बल्कि सीमेंट, प्लास्टर, केमिकल और विभिन्न कंस्ट्रक्शन मटेरियल जैसी वस्तुओं को भी हलाल सर्टिफिकेशन दिया जा रहा है। उनका कहना था कि ऐसे उत्पादों का धर्म से कोई संबंध नहीं है, इसलिए यह प्रक्रिया संदेह पैदा करती है और बाजार में अनावश्यक जटिलता लाती है। उन्होंने इसे ‘‘अतार्किक’’ और ‘‘धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के विपरीत’’ बताया।

स्वास्थ्य संबंधी शोध का भी हवाला, पर विशेषज्ञों की पुष्टि आवश्यक

सदन में मेधा कुलकर्णी ने कुछ मेडिकल अध्ययनों का उल्लेख करते हुए दावा किया कि हलाल पद्धति से काटे गए मांस के बारे में कुछ शोध संभावित स्वास्थ्य जोखिमों का संकेत देते हैं। हालांकि उन्होंने यह भी माना कि इन अध्ययनों की व्यापक वैज्ञानिक पुष्टि आवश्यक है। उन्होंने कहा कि ‘‘सर्टिफिकेशन चार्जेस’’ भी उपभोक्ताओं पर आर्थिक बोझ डालते हैं, जो बाजार की पारदर्शिता और उपभोक्ता स्वतंत्रता को प्रभावित करता है।

गैर-खाद्य उत्पादों पर हलाल तुरंत रद्द करने की मांग

सांसद ने सरकार से मांग की कि भारत में एफएसएसएआई और एफडीए जैसी संस्थाओं के पहले से मौजूद होने पर भी धार्मिक संस्थाओं को प्रमाणन के अधिकार क्यों दिए जा रहे हैं, इसकी जांच की जाए। उन्होंने कहा कि यदि मांस का हलाल प्रमाणन आवश्यक है, तो इसे सरकारी नियंत्रण में रखा जाए ताकि प्रमाणन शुल्क सीधे सरकारी खजाने में जमा हो सके। साथ ही, गैर-मांस और गैर-खाद्य वस्तुओं पर जारी हलाल सर्टिफिकेशन को तुरंत समाप्त किया जाना चाहिए।

 

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