हर सात में से एक किशोर मानसिक विकार से जूझ रहा: डब्ल्यूएचओ

खबर सार :-
डब्ल्यूएचओ की ताज़ा रिपोर्ट एक सख्त चेतावनी है कि किशोरों का मानसिक स्वास्थ्य वैश्विक संकट का रूप ले चुका है। परिवार, स्कूल और सरकार—तीनों को मिलकर ऐसे सुरक्षित और सहयोगी माहौल की जरूरत है, जहाँ बच्चे अपनी भावनाएं खुलकर व्यक्त कर सकें। मानसिक स्वास्थ्य को शिक्षा और नीति का अभिन्न हिस्सा बनाना अब समय की सबसे बड़ी मांग है।

हर सात में से एक किशोर मानसिक विकार से जूझ रहा: डब्ल्यूएचओ
खबर विस्तार : -

WHO Report: जयपुर में हाल ही में हुई एक 9 वर्षीय बच्ची की आत्महत्या की घटना ने देश को हिला दिया है। बच्ची ने स्कूल की चौथी मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी। इस हृदयविदारक घटना ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की नई फैक्ट शीट की गंभीरता की ओर ध्यान आकर्षित किया है। 1 सितंबर 2025 को जारी इस रिपोर्ट “मेंटल हेल्थ ऑफ एडॉल्सेंट्स” में खुलासा किया गया है कि दुनिया में हर सात में से एक किशोर यानी करीब 16 करोड़ बच्चे मानसिक विकारों से जूझ रहे हैं।

मानसिक स्वास्थ्य पर गहराता संकट

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट बताती है कि 10 से 19 वर्ष की उम्र के किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य संकट तेजी से बढ़ रहा है। डिप्रेशन, एंग्जाइटी और बिहेवियरल डिसऑर्डर्स अब आम मानसिक समस्याएं बन चुकी हैं। इन विकारों का असर सिर्फ पढ़ाई या दोस्तियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बच्चों के शारीरिक स्वास्थ्य और आत्मविश्वास पर भी गहरा प्रभाव डाल रहा है।

आत्महत्या बनी तीसरा प्रमुख कारण

डब्ल्यूएचओ ने चेताया है कि 15 से 29 वर्ष के युवाओं में आत्महत्या अब तीसरा प्रमुख मृत्यु कारण बन चुकी है। इसका मतलब है कि दुनिया का एक बड़ा हिस्सा ऐसा मानसिक दर्द झेल रहा है जो बाहर से दिखाई नहीं देता। विशेषज्ञों का कहना है कि किशोरावस्था में इन समस्याओं की अनदेखी भविष्य में क्रॉनिक डिप्रेशन, नशे की लत और रिश्तों में तनाव जैसी गंभीर परिस्थितियों में बदल सकती है।

डिजिटल जीवन और सोशल मीडिया का बढ़ता असर

रिपोर्ट ने यह भी बताया कि सामाजिक और भावनात्मक दबाव आज के किशोरों की मानसिक स्थिति को सबसे अधिक प्रभावित कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर दिखाई देने वाली “परफेक्ट लाइफ” की तुलना, पारिवारिक अस्थिरता, आर्थिक असुरक्षा और लगातार बदलते डिजिटल माहौल ने बच्चों के आत्मविश्वास को कमजोर किया है। जो किशोर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अधिक समय बिताते हैं, उनमें स्लीप डिस्टर्बेंस, लो सेल्फ-एस्टीम और हाई स्ट्रेस लेवल जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।

डब्ल्यूएचओ की सिफारिशें

संगठन ने सरकारों और समाज से आग्रह किया है कि स्कूलों में मेंटल हेल्थ एजुकेशन, काउंसलिंग सर्विसेज और सामुदायिक सहयोग को प्राथमिकता दी जाए। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि मानसिक स्वास्थ्य को उतनी ही गंभीरता से लिया जाए जितनी शारीरिक स्वास्थ्य को, तो आत्महत्या और अवसाद जैसी घटनाओं को काफी हद तक रोका जा सकता है।

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