नई दिल्ली: भारतीय शेयर बाजार में घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) की सक्रियता में इस साल अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। 2025 के केवल 9 महीनों में ही, डीआईआई ने रिकॉर्ड 5.3 लाख करोड़ रुपए की इक्विटी खरीदी, जो कि 2024 के पूरे वर्ष के 5.22 लाख करोड़ रुपए के आंकड़े से अधिक है। यह वृद्धि विशेष रूप से म्यूचुअल फंड्स द्वारा की गई खरीदारी से हुई, जिनका योगदान 3.65 लाख करोड़ रुपए रहा। इसमें हर महीने 25,000 करोड़ रुपए से अधिक का एसआईपी (सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) निवेश शामिल है।
म्यूचुअल फंड्स के अलावा, इंश्योरेंस कंपनियों और पेंशन फंड्स ने भी 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया। बाकी का निवेश पोर्टफोलियो मैनेजर्स, अल्टरनेटिव फंड्स, बैंक और अन्य संस्थाओं से आया। इस दौरान अगस्त में म्यूचुअल फंड्स की कैश होल्डिंग्स 1.98 लाख करोड़ रुपए पर स्थिर रही, जो एक उच्च स्तर पर रही। हालांकि, इस मजबूत निवेश प्रवृत्ति के बावजूद, विश्लेषकों का कहना है कि बाजार में रिटर्न स्थिर होने और वैश्विक दबावों के कारण निवेशक भावना में कमजोरी के संकेत देखे जा रहे हैं। डीआईआई द्वारा की गई खरीदारी के बावजूद, भारतीय इक्विटी ग्लोबल समकक्षों से पिछड़ गई हैं। 2025 में डॉलर टर्म्स में सेंसेक्स और निफ्टी केवल क्रमशः 2 प्रतिशत और 4 प्रतिशत ही बढ़े, जबकि प्रमुख एशियाई और पश्चिमी बाजारों में दोहरे अंकों में वृद्धि हुई।
म्यूचुअल फंड्स में निवेश की स्थिरता को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। अगस्त में इक्विटी फंड्स में 33,430 करोड़ रुपए का निवेश हुआ, जबकि जुलाई में यह आंकड़ा 42,702 करोड़ रुपए था। इसके साथ ही, निवेशकों ने मुनाफा बुक कर स्मॉल-कैप और थीमैटिक फंड्स से रिडेम्पशन बढ़ाया और रियल एस्टेट जैसे अन्य क्षेत्रों में निवेश किया। बाजार में अधिकतर दबाव जीएसटी रेट में बदलाव और त्योहारों के खर्च को लेकर था, जिससे घरेलू बचत पर दबाव बढ़ सकता है। इसके परिणामस्वरूप, भारतीय कंजंप्शन साइकल में उतार-चढ़ाव आ सकता है, जिससे इक्विटी में नया निवेश कम हो सकता है।
वहीं, विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) लगातार विक्रेता बने रहे हैं। 2025 में अब तक एफआईआई ने 1.80 लाख करोड़ रुपए की इक्विटी बेची है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 1.21 लाख करोड़ रुपए था। हालांकि, एफआईआई द्वारा एक्सचेंज के माध्यम से लगातार सेलिंग के बावजूद, उन्होंने प्राइमरी मार्केट में 1,559 करोड़ रुपए की इक्विटी खरीदी।
विश्लेषकों का मानना है कि हालांकि कमजोर अर्निंग, स्ट्रैच्ड वैल्यूएशन और अमेरिकी टैरिफ को लेकर अनिश्चितता जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, फिर भी वित्तीय वर्ष 2027 में कॉर्पोरेट कमाई में 15 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि की संभावना है, जो एफआईआई के रुख में बदलाव ला सकता है।
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