Indian Stock Market: एनएसडीएल की ओर से जारी ताज़ा आंकड़ों ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि नवंबर 2025 की शुरुआत विदेशी निवेशकों के लिए बिकवाली से भरा महीना साबित हुआ है। एफआईआई ने शुरुआती हफ्ते में ही अपनी निकासी तेज करते हुए कुल 13,925 करोड़ रुपए से अधिक की सेलिंग कर डाली। यह रुझान पिछले महीनों से जारी उस ट्रेंड को मजबूत करता है जिसमें विदेशी निवेशक भारतीय इक्विटी से दूरी बनाते दिखाई दे रहे हैं।
मार्केट विश्लेषकों के मुताबिक, वैश्विक बाजारों में अन्य देशों—विशेष रूप से अमेरिका, चीन, ताइवान और दक्षिण कोरिया—की तुलना में बेहतर अर्निंग ग्रोथ देखने को मिल रही है। ऐसे में एफआईआई भारत से पूंजी निकालकर उन बाज़ारों की ओर बढ़ रहे हैं जहाँ उन्हें एआई ट्रेड के जरिए तेज़ और अधिक रिटर्न की उम्मीद है।
जियोजित इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड के मुख्य निवेश रणनीतिकार डॉ. वी.के. विजयकुमार ने कहा कि एआई स्टॉक्स का यह शानदार दौर लंबे समय तक जारी रहना मुश्किल है। बाजार में एआई स्टॉक्स के आसपास बबल बनने की आशंका लगातार मंडरा रही है। जैसे ही यह ट्रेंड कमजोर होगा, भारत एक बार फिर एफआईआई के लिए स्वाभाविक रूप से आकर्षक गंतव्य बन सकता है। उन्होंने बताया कि भले ही सेकेंडरी मार्केट में बिकवाली तेज़ है, लेकिन नवंबर में प्राइमरी मार्केट में 7,833 करोड़ रुपए की एफआईआई खरीदारी अब भी भारतीय बाजार की लंबी अवधि की आकर्षण क्षमता को दिखाती है।
एनएसडीएल के अनुसार, साल 2025 में अब तक एक्सचेंज के जरिए एफआईआई की कुल बिकवाली 2,08,126 करोड़ रुपए तक पहुंच चुकी है। इसके विपरीत, प्राइमरी मार्केट में एफआईआई की कुल खरीदारी 62,125 करोड़ रुपए दर्ज की गई है। यह अंतर बताता है कि विदेशी निवेशक मौजूदा परिस्थितियों में स्थिरता और तेज़ रिटर्न की तलाश में अधिक सतर्क रणनीति अपना रहे हैं।
भारतीय शेयर बाजार में लगातार जारी विदेशी निवेश निकासी का असर कंपनियों की ओनरशिप पैटर्न पर भी दिख रहा है। सितंबर तिमाही में एनएसई-लिस्टेड कंपनियों में एफपीआई की हिस्सेदारी घटकर 16.9 प्रतिशत पर आ गई है, जो पिछले 15 वर्षों का सबसे निचला स्तर है। यह गिरावट भारत के इक्विटी बाज़ार पर विदेशी निवेशकों के घटते भरोसे की ओर संकेत करती है।
बीडीओ इंडिया के पार्टनर एवं वित्तीय सेवाओं के टैक्स विशेषज्ञ मनोज पुरोहित के अनुसार, मौजूदा अनिश्चितताओं के बावजूद आने वाले महीनों में रिकवरी की गुंजाइश है। उन्होंने कहा कि कई पॉजिटिव फैक्टर्स इस बदलाव को समर्थन दे रहे हैं—
इन सुधारों ने बाजार को अधिक पारदर्शी और निवेशक-अनुकूल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
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