लखनऊ, उत्तर प्रदेश एक कृषि प्रधान राज्य है, जहाँ की दो-तिहाई जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। प्रदेश में खरीफ मौसम में लगभग 132 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में फसलों की बुवाई की जाती है। खरीफ मौसम में अधिक वर्षा के कारण पौधों की बढ़वार अधिक होती है। विश्व में लगभग तीन लाख से अधिक पौधों की प्रजातियाँ मानव एवं पशुओं के लिए आर्थिक एवं चारे के महत्व की हैं। इनसे वांछित फसल के अतिरिक्त अन्य प्रजातियों के पौधे, जिन्हें हम खरपतवार कहते हैं, वह भी उग जाते हैं।
खरपतवारों के प्रबंधन हेतु उनकी जानकारी एवं पहचान होना अत्यंत आवश्यक है। इनकी मुख्य रूप से तीन श्रेणियाँ हैं, जिनका प्रबंधन उनके जीवन चक्र, पत्तियों के आकार एवं विषम परिस्थितियों में उनके अंकुरण तथा पादप वृद्धि को ध्यान में रखकर किया जाता है। खरपतवारों का अध्ययन मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभाजित किया गया है, जिसमें संकरी पत्ती वाले खरपतवार, चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार तथा मोथा वर्गीय खरपतवार शामिल हैं। कृषि उत्पादों की वार्षिक हानि में खरपतवारों द्वारा लगभग 32-35 प्रतिशत, कीटों द्वारा 27 प्रतिशत, पादप रोगों द्वारा 18-20 प्रतिशत तथा अन्य कारकों द्वारा 05 प्रतिशत हानि होती है।
फसलों पर खरपतवारों के कारण उनकी वृद्धि, जीवन चक्र एवं उपज पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए कृषकों द्वारा अपनी फसलों में खरपतवारों का समय से नियंत्रण सदैव लाभकारी होता है, जिससे खरपतवार एवं फसलों के बीच पानी, पोषक तत्व, स्थान, हवा एवं प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा न हो सके और अंततः फसलों से अधिकतम उत्पादन प्राप्त हो।
खरीफ फसलों में समय से खरपतवार का नियंत्रण कृषकों के हित में तथा अच्छी उपज प्राप्त करने का सही उपाय है, जिसके लिए समुचित प्रयोग किया जाना कृषक हित में है जैसे- गर्मी में मिट्टी पलट हल से गहरी जुताई, फसल चक्र अपनाना, हरी खाद का प्रयोगउ आदि। खरपतवार का प्रबंधन कृषक एवं पर्यावरण दोनों के हित में रहता है। साथ ही आवश्यकतानुसार मशीनों का प्रयोग किया जा सकता है, जिसमें खुरपी, हो, वीडर, मल्चर आदि के माध्यम से खरपतवारों के अंकुरण एवं वृद्धि में अवरोध पैदा कर खरपतवार को कम किया जा सकता है। यदि उपर्युक्त उपाय कारगर न हों तो कृषि रक्षा रसायन, खरपतवारनाशी रसायनों का प्रयोग आर्थिक दृष्टि से उचित होगा। यह अधिक क्षेत्रफल में कृषि फसलों हेतु लाभकारी एवं ग्राह्य भी है। परंतु इनका सही समय एवं मात्रा में ही प्रयोग मृदा एवं मानव स्वास्थ्य हेतु लाभकारी है।
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