Vice Presidential Election : उपराष्ट्रपति चुनाव का मुकाबला इस बार विचारधारा की लड़ाई से कहीं ज्यादा, क्षेत्रीय राजनीतिक समीकरणों और दल-बदल की संभावनाओं को परखने का एक दिलचस्प खेल बनता जा रहा है। एक तरफ जहां एनडीए ने तमिलनाडु के सीपी राधाकृष्णन को मैदान में उतारा है, तो वहीं इंडिया ब्लॉक ने तेलंगाना से आने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, बी. सुदर्शन पर दांव लगाया है। यह मुकाबला सिर्फ संसद के वोटों तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे कहीं ज्यादा, उन क्षेत्रीय दलों की परीक्षा है जो ना तो एनडीए के साथ हैं और ना ही इंडिया ब्लॉक के साथ।
बी. सुदर्शनः एक वैचारिक पुल या धार्मिक संकट!
इंडिया ब्लॉक ने बी. सुदर्शन को उम्मीदवार बनाकर एक बड़ा सियासी दांव खेला है। उनके नाम में सुदर्शन का इस्तेमाल सिर्फ एक प्रतीक नहीं है, बल्कि एक रणनीति है। यह एक ऐसा सुदर्शन चक्र है जो उन दलों को धर्मसंकट में डालता है जो न तो सीधे तौर पर भाजपा के साथ हैं और न ही कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन का साथ देते आए हैं।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना पर नज़रः सुदर्शन रेड्डी का तेलंगाना से होना, दोनों तेलुगु राज्यों के प्रमुख नेताओं, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू (टीडीपी), जगन मोहन रेड्डी (वाईएसआर) और तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री केसीआर (बीआरएस) के लिए एक बड़ी चुनौती है।
चंद्रबाबू नायडू: टीडीपी अब एनडीए का हिस्सा है, लेकिन सुदर्शन रेड्डी जैसे तेलुगु चेहरे को वोट न देना उनके लिए अपनी क्षेत्रीय पहचान को दांव पर लगाने जैसा हो सकता है। उन्हें केंद्र के साथ अपने संबंधों और आंध्र प्रदेश के हित, दोनों के बीच संतुलन बनाना होगा।
जगन मोहन रेड्डी (वाईएसआरसीपी): जगन मोहन रेड्डी ने अब तक खुद को दोनों गठबंधनों से दूर रखा है। ऐसे में, एक तेलुगु प्रत्याशी को वोट देने या न देने का फैसला उनके लिए भविष्य की राजनीति की दिशा तय कर सकता है।
केसीआर (बीआरएस): तेलंगाना में केसीआर अब विपक्ष में है। सुदर्शन रेड्डी, जो तेलंगाना के मूल निवासी हैं, को समर्थन देना उनके लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों पर दबाव बनाने का एक मौका हो सकता है।
भाजपा का तमिल दांव और विपक्षी एकता
सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने पहले इंडिया ब्लॉक में शामिल तमिलनाडु के डीएमके को उलझाने की कोशिश की थी। लेकिन, इंडिया ब्लॉक ने बी. सुदर्शन को मैदान में उतारकर न सिर्फ इस दांव का जवाब दिया है, बल्कि अपनी एकता को भी दिखाया है। 2022 के उपराष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग से दूर रहने वाली ममता बनर्जी की पार्टी, तृणमूल कांग्रेस का इस बार पूरी तरह से साथ आना, और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का समर्थन मिलना, विपक्ष की रणनीति को मजबूत बनाता है।
Vice Presidential Election का नतीजा भले ही इंडिया के पक्ष में जाए, लेकिन यह साफ है कि विपक्ष ने एक ऐसा वैचारिक नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की है जो सिर्फ वोटों तक सीमित नहीं है। यह चुनाव सामाजिक न्याय, क्षेत्रीय अस्मिता और वैचारिक प्रतिबद्धता के मुद्दों को एक साथ जोड़कर एक नई दिशा दे रहा है। क्या विपक्ष का सुदर्शन क्षेत्रीय दलों की राजनीतिक दिशा बदल पाएगा, या फिर वे अपने-अपने समीकरणों के हिसाब से ही फैसला लेंगे?
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