‘वंदे मातरम’ भारत को भावना और संकल्प में एकजुट करता है: निर्मला सीतारमण

खबर सार :-
‘वंदे मातरम’ सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का प्रतीक है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक देश को भावना, एकता और राष्ट्रभक्ति के सूत्र में बांधे रखा है। निर्मला सीतारमण की पहल इस कालजयी गीत के 150 वर्षों को राष्ट्रव्यापी उत्सव के रूप में मनाने की दिशा में एक प्रेरक कदम है, जो भारत की सांस्कृतिक चेतना को नई ऊर्जा देगा।

‘वंदे मातरम’ भारत को भावना और संकल्प में एकजुट करता है: निर्मला सीतारमण
खबर विस्तार : -

Vande Mataram: भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि यह गीत भारत की आत्मा, उसकी शक्ति और एकता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि वह भावनात्मक सूत्र है जिसने देश को आज़ादी की लड़ाई के दौरान एकजुट किया और आज भी देशभक्ति का संचार करता है।

‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ पर विशेष संदेश

निर्मला सीतारमण ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, “हमारा राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ आज 150 गौरवशाली वर्ष पूरे कर रहा है। श्री बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा रचित यह शाश्वत काव्य हमारी मातृभूमि को शक्ति, समृद्धि और दिव्यता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करता है। यह गीत हमारे राष्ट्र को भावना और संकल्प में एकजुट करता है।” उन्होंने देशवासियों से अपील की कि वे इस ऐतिहासिक अवसर पर शुरू की गई ‘वंदे मातरम स्मरणोत्सव’ पहल से जुड़ें। सीतारमण ने एक वेबसाइट का लिंक साझा करते हुए लोगों को प्रोत्साहित किया कि वे ‘वंदे मातरम’ गाकर उसका वीडियो अपलोड करें और अपनी देशभक्ति की भावना को साझा करें।

‘वंदे मातरम स्मरणोत्सव’ का शुभारंभ

इस अवसर पर 7 नवंबर 2025 से 7 नवंबर 2026 तक चलने वाले वर्षभर के राष्ट्रव्यापी ‘वंदे मातरम स्मरणोत्सव’ की औपचारिक शुरुआत की जाएगी। इस आयोजन का उद्देश्य राष्ट्रीय गीत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को नई पीढ़ी तक पहुंचाना है। ‘वंदे मातरम’ वह गीत रहा जिसने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारियों और आम जनों के भीतर आत्मगौरव की ज्वाला प्रज्वलित की थी। यह राष्ट्र के प्रति निष्ठा, एकता और समर्पण की भावना का अमर प्रतीक है।

‘वंदे मातरम’ का ऐतिहासिक संदर्भ

‘वंदे मातरम’ की रचना बंकिमचंद्र चटर्जी ने 7 नवंबर 1875 को अक्षय नवमी के पावन अवसर पर की थी। यह पहली बार साहित्यिक पत्रिका ‘बंगदर्शन’ में प्रकाशित हुआ था और बाद में उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ का हिस्सा बना। इस गीत में मातृभूमि को देवी के रूप में चित्रित किया गया है — जो शक्ति, समृद्धि और दिव्यता का प्रतीक है। धीरे-धीरे यह गीत स्वतंत्रता आंदोलन का नारा बन गया और भारतीय जनमानस में एकता का संकल्प बनकर गूंजता रहा।

 

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