Supreme Court issued Notice: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों को भेजा नोटिस

खबर सार :-
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अनुच्छेद 142 के तहत किसी भी पारित विधेयक पर निर्णय की समय सीमा को लेकर सुनवाई करने का निर्णय लिया है। इस मामले में सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता में बनी संविधान पीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस भेजा है। जानें क्या है पूरा मामला...

Supreme Court issued Notice: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों को भेजा नोटिस
खबर विस्तार : -

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 143 के तहत भेजे गए रेफरेंस मामले पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है, जिसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की ओर से भेजे गए एक पत्र के संदर्भ में जवाब मांगा है। कोर्ट ने पूछा है कि कानूनी वैधता को लेकर क्या राज्य विधेयकों (स्टेट बिल्स) पर फैसला लेने के लिए गवर्नरों और राष्ट्रपति पर कोई टाइमलाइन तय की जा सकती है। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों (संवैधानिक) की पीठ ने मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 29 जुलाई निर्धारित की है। 

पारित विधेयकों पर निर्णय की समयसीमा का मामला

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ यह जांचने को राजी हो गई है कि क्या अदालतें राष्ट्रपति और राज्यपालों को राज्य विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए समय-सीमा निर्धारित कर सकती हैं। संविधान पीठ ने केंद्र और सभी राज्यों को नोटिस जारी किया है। इस मामले में अब अगली सुनवाई 29 जुलाई को होगी, जिसमें समय-सीमा तय करने पर विचार होगा। इस मामले में बहस अगस्त के मध्य से शुरू होगी। गौरतलब है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 13 मई को सुप्रीम कोर्ट से विधेयक को अपने पास रखने की समय सीमा को लेकर एक सलाह मांगी थी। इसके साथ ही अदालत से 14 सवाल भी पूछे थे। यह पूरी बहस विधानसभा से पारित विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए डेडलाइन को लेकर है यानी राष्ट्रपति और राज्यपाल को एक तय समय-सीमा में इन विधेयकों पर निर्णय लेना होगा।

 संविधान पीठ में शामिल जजों के नाम

सुप्रीम कोर्ट की जो संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है, उसकी अध्यक्षता सीजेआई बीआर गवई कर रहे हैं। इस बेंच में सीजेआई सहित 5 जज जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस पीएस नरसिंह और जस्टिस अतुल एस चंदुरकर शामिल हैं। दरअसल, इस पूरे मामले की शुरुआत 8 अप्रैल को तब हुई, जब सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करते हुए एक फैसला दिया था, जिसमें राष्ट्रपति के लिए किसी भी विधेयक पर विचार करने के लिए एक समय सीमा तय की गई थी। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचार के लिए रखे गए विधेयकों को राष्ट्रपति को तीन महीने के अंदर मंजूरी देनी होगी। जस्टिस जे बी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली दो जजों की बेंच ने यह फैसला सुनाया था।

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