लखनऊ, महाराष्ट्र में हिंदी भाषाई सुरक्षित नहीं हैं। यहां मराठियों ने हिंदी भाषाई लोगों पर बर्बरता की शुरूआत कर दी है। स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे हिंदुओं के हितैषी हुआ करते थे। उन्होंने कट्टर हिंदू के रूप में अपनी छवि को चमकाया, इसी कारण वह महाराष्ट्र में प्रमुख व्यक्तियों में सदैव गिने जाते थे। लेकिन उनके पुत्र उद्धव ठाकरे ने बाला साहेब की उस छवि की धज्जियां उड़ा दीं। वह शुरूआत की राजनीति में तो हिंदी छवि बनाकर चले, लेकिन सत्ता के मोह में जल्दबाजी कर गए। भाजपा के साथ चुनाव लड़े थे, लेकिन बाद में कांग्रेस के साथ महागठबंधन में चले गए। उन्होंने चौकाने वाला कारनाम कर दिया था। सुबह तड़के जब लोग सो रहे थे, तब उद्धव मुख्यमत्री पद की शपथ ले चुके थे। कांग्रेस वही पार्टी है, जिसके नेता राहुल गांधी हैं और वह गठबंधन का भी नेतृत्व करते हैं।
उनका गठबंधन इंडी है और इसमें समाजवादी पार्टी, शिवसेना शरद पवार गुट, का भी साथ है। यद्यपि शुरूआत में जब उन्होंने सरकार बनाई, तब से लेकर आज तक उनके गठबंधन में किसी प्रकार का विवाद नहीं हुआ। लेकिन उनकी छवि को ज्यादा लोगों ने पसंद नहीं किया। उनके गठबंधन में कांग्रेस और सपा का रूख स्पष्ट रहा है, इसलिए शिवसेना में फूट पड़ गई। राजनीति के जानकारों का मानना है कि बाला साहेब जैसी छवि उद्धव की कभी नहीं बन सकती। उन्होंने जिन हिंदुओं का वोट लिया, कुछ ही महीनों में उनके साथ विश्वासघात कर दिया।
जिन्होंने सनातन को गालियां दीं, उनके साथ उद्धव ने सरकार बना ली। इससे उनका जनाधार नाराज हो गया। धीरे-धीरे पार्टी कमजोर पड़ गई, इसीलिए, अब उनके लोग नया प्रपंच रच रहे हैं। यद्यपि उनके परिवार का यह नया तरीका नहीं है। कभी अपना जनाधार बनाने के लिए राजठाकरे ने भी मराठी न बोलने वालों के खिलाफ आक्रामक रूख दिखाया था। उनके लोगों ने हिंदी बोलने वालों की सिलसिलेवार पिटाई की। दुकानों को निशाना बनाया था। यहां तक कि टीवी चैनलों में भी तोड़फोड़ की थी। इनकी गुंडागर्दी खुलकर बोलती है। यह किसी सरकार को नहीं डरते हैं। इनके प्रवक्ता टीवी चैनल पर डिबेट के वक्त भी यही बोलते हैं कि जो लोग हिंदी नहीं बोलेंगे, उनको छोड़ा नहीं जाएगा। यह सड़कछाप राजनीति पर उतारू हैं। इनकी संस्कार और सभ्यता से ऐसी दूरी रही है, जैसे कि नदी के इस किनारे से उस किनारे की।
यही कारण है कि यह किसी को भी पीटने लगते हैं। अब सवाल यह है कि भाजपा की शिवसेना सिंदे गुट के साथ बनी सरकार आखिर कर क्या रही है? राज्य में कानून व्यवस्था की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इसके बाद भी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस या यहां के उपमुख्यमंत्री अजित पवार और एकनाथ शिंदे की ओर से अभी तक किसी प्रकार की कार्रवाई का आदेश नहीं दिया गया है। यह जानते हुए कि ठाकरे परिवार सत्ता पाने के लिए मराठी-हिंदी विवाद पैदा कर रहा है। 20 साल बाद उद्धव और राज एक साथ आए हैं।
बीती रात तक कांग्रेस का भी साथ होने का संदेश था, लेकिन मीडिया में हिंदी भाषाई के अपमान और उनकी पिटाई की खबरें चलीं तो कांग्रेस और शरद पवार ने ठाकरे परिवार के कार्यक्रम से दूरियां बना लीं। राज ठाकरे की मनसे और उद्धव गुट की शिवसेना पर लोगों से मारपीट करने का भी आरोप लगा है। विवाद को रंग देने के लिए मजबूत विषय की तलाश काफी दिनों से चल रही है। दरअसल, महाराष्ट्र सरकार थ्री लैंग्वेज पॉलिसी लेकर आई थी। इसमें तीसरी भाषा के रूप में हिंदी की पढ़ाई अनिवार्य की गई थी।
ठाकरे परिवार इसके विरोध में रैली का ऐलान कर दिया। हालांकि, इनकी रैली से पहले महायुति सरकार ने तीसरी भाषा नीति के फैसले को वापस ले लिया। इसके बाद अब दोनों विजय रैली के जरिए मराठियों को खुश करने की जुगत भिड़ा रहे हैं। राज्य में जल्द ही नगर निगम चुनावों होने हैं। इससे पहले यह भाषा विवाद सड़कों और दुकानों तक आ पहुंचा है। इस विवाद में कई व्यापारी और राजनीतिक के अलावा समाजसेवियों ने भी अपनी मौजूदगी दिखा दी है। उन्होंने कह दिया कि कुछ भी मराठी नहीं सीखेंगे। हिंदी ही बोलेंगे।
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