नई दिल्लीः भारत अब आधिकारिक रूप से विश्व बैंक का सबसे बड़ा कर्जदार देश बन चुका है। विश्व बैंक द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत पर 2023 के अंत तक कुल 39.3 अरब डॉलर, यानी लगभग 3.28 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। यह ऋण इंटरनेशनल बैंक फॉर रीकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (IBRD) और इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन (IDA) के माध्यम से दिया गया है।
विश्व बैंक की सूची में भारत के साथ इंडोनेशिया, चीन, ब्राजील, यूक्रेन, अर्जेंटीना, तुर्की, मैक्सिको, कोलंबिया और फिलीपींस शामिल हैं। परंतु इनमें भारत का कर्ज सबसे ज्यादा है, जिससे वह प्रथम स्थान पर है। उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया पर 22.2 अरब डॉलर, जबकि चीन पर इससे भी कम कर्ज है। इस लिस्ट में चीन सातवें नम्बर पर है। विश्व बैंक के ये कर्ज कम ब्याज वाले (Concessional Loans) होते हैं, जिन्हें भारत ने विकास परियोजनाओं के लिए लिया है। इनका उपयोग खासकर सड़कों, रेलवे, शहरी विकास, ग्रामीण योजनाओं, स्वास्थ्य, शिक्षा और महामारी नियंत्रण (जैसे Covid-19) में किया गया है। 2023-24 में भारत को 3.3 अरब डॉलर का नया कर्ज मिला है, जो मुख्य रूप से ऊर्जा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में खर्च हो रहा है।
2014 में, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की बागडोर अपने हाथ में ली थी, तब भारत पर वर्ल्ड बैंक का कर्ज 26.8 अरब डॉलर था। 2023 तक यह 39.3 अरब डॉलर हो गया, यानी 12.5 अरब डॉलर (करीब 46 फीसदी) की बढ़ोतरी। इन योजनाओं के लिए सरकार को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सहयोग की जरूरत पड़ी, जिसे वर्ल्ड बैंक से कर्ज के रूप में प्राप्त किया गया। भारत की 2025 में अनुमानित जीडीपी 3.7 ट्रिलियन डॉलर है। इस हिसाब से वर्ल्ड बैंक से लिया गया कर्ज ळक्च् का मात्र 1 फीसदी से भी कम है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत के लिए यह कर्ज बोझ नहीं, बल्कि विकास में सहायक पूंजी के रूप में है। हालांकि, वैश्विक ब्याज दरों में वृद्धि या मुद्रास्फीति जैसी स्थितियां इस कर्ज की चुकौती को चुनौतीपूर्ण बना सकती हैं, लेकिन भारत का 600 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार इस जोखिम को काफी हद तक संतुलित करता है।
भारत का कुल बाहरी कर्ज 2014 में 457 अरब डॉलर था, जो 2023 में बढ़कर 647 अरब डॉलर हो गया। हालांकि इसमें विश्व बैंक का हिस्सा केवल 6 फीसदी है, जो बताता है कि भारत का अधिकांश विदेशी ऋण वाणिज्यिक स्रोतों से नहीं, बल्कि विकास परियोजनाओं के लिए सहयोगी संस्थाओं से आया है। भारत का विश्व बैंक से सबसे अधिक कर्जदार बनना, जहां एक ओर उसकी तेजी से बढ़ती विकास योजनाओं का प्रमाण है, वहीं दूसरी ओर यह इस बात की याद दिलाता है कि वित्तीय अनुशासन और पारदर्शिता इस कर्ज प्रबंधन में अत्यंत आवश्यक है। आने वाले वर्षों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि ये कर्ज वास्तव में देश की उत्पादकता और जीवन स्तर को कितना ऊपर उठाते हैं।
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