कानपुरः राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली दिवाली के बाद से वायु प्रदूषण से जूझ रही है। इसी के मद्देनज़र, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर ने मंगलवार को एक विशेष शोध विमान से एनसीआर क्षेत्र में दो बार रासायनिक यौगिकों का छिड़काव करके क्लाउड सीडिंग (बादल बोने की क्रिया) की। इससे अब कृत्रिम वर्षा की संभावना बन गई है, जिससे प्रदूषण से राहत मिलेगी।
आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने मंगलवार शाम बताया कि इस मिशन में विमान से विशेष रासायनिक यौगिकों का छिड़काव शामिल है, जिससे बादलों में नमी बढ़ेगी और कृत्रिम वर्षा संभव होगी। यह कार्य पर्यावरण मंत्रालय और दिल्ली सरकार के सहयोग से किया गया। इस तकनीक से न केवल प्रदूषण नियंत्रण में मदद मिलेगी, बल्कि भविष्य में सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यह मिशन सफल होगा और राजधानी के लोगों को प्रदूषण से राहत दिलाएगा।
मिशन का विमान सबसे पहले मेरठ पहुँचा, जिसके बाद राजधानी दिल्ली में क्लाउड सीडिंग की गई। अनुमान है कि अगले तीन से चार घंटों में वहाँ बारिश हो सकती है। अगर ऐसा होता है, तो दिल्ली और आसपास रहने वाले लोगों को दिल्ली और एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण से काफ़ी राहत मिलेगी।
निदेशक ने बताया कि आईआईटी कानपुर ने मंगलवार को दिल्ली के ऊपर क्लाउड-सीडिंग अभियान सफलतापूर्वक चलाया। यह अभियान लगभग 25 समुद्री मील और 4 समुद्री मील तक फैला था, जिसकी सबसे बड़ी दूरी खेकड़ा और बुराड़ी के थोड़ा उत्तर में थी। पहले चरण में लगभग 4,000 फीट की ऊँचाई पर छह फ्लेयर्स छोड़े गए, जिनकी जलने की अवधि 18.5 मिनट थी। इसके बाद दोपहर 3:55 बजे दूसरी उड़ान भरी गई, जिसमें लगभग 5,000 से 6,000 फीट की ऊँचाई पर आठ फ्लेयर्स छोड़े गए।
निदेशक ने बताया कि कृत्रिम वर्षा कराने के प्रयास पहले भी किए गए थे, लेकिन आवश्यक अनुमतियों के अभाव में असफल रहे थे। इस बार, इस प्रयोग को दिल्ली सरकार और पर्यावरण मंत्रालय, दोनों से हरी झंडी मिल गई है, जिससे इसके सफल होने की संभावना बढ़ गई है।
कृत्रिम वर्षा में मनुष्य बादलों की भौतिक अवस्था में परिवर्तन करके उन्हें वर्षा के अनुकूल बनाते हैं। यह प्रक्रिया क्लाउड सीडिंग से शुरू होती है और तीन चरणों में पूरी होती है। पहले चरण में, कैल्शियम क्लोराइड, कैल्शियम कार्बाइड, कैल्शियम ऑक्साइड, नमक और यूरिया के यौगिकों, और यूरिया व अमोनियम नाइट्रेट के यौगिकों का उपयोग किया जाता है। ये रासायनिक यौगिक हवा से जलवाष्प को अवशोषित करते हैं और संघनन की प्रक्रिया शुरू करते हैं। दूसरे चरण में, नमक, यूरिया, अमोनियम नाइट्रेट, शुष्क बर्फ और कैल्शियम क्लोराइड का उपयोग करके द्रव्यमान बढ़ाया जाता है। तीसरा चरण तब शुरू होता है जब बादल या तो पहले से ही बन चुके होते हैं या कृत्रिम रूप से बनाए जाते हैं। इस चरण में, सिल्वर आयोडाइड और शुष्क बर्फ जैसे शीतलन रसायनों का बादलों पर छिड़काव किया जाता है, जिससे उनका घनत्व बढ़ जाता है और वे बर्फीले बादलों में बदल जाते हैं।
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