ढाकाः बांग्लादेश को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले बंगबंधु मुजीबुर रहमान का स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा छीन लिया गया है। यह दुस्साहसिक कार्य बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने किया है। 1971 के मुक्ति संग्राम के 400 से अधिक प्रमुख व्यक्तियों का स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा रद्द कर दिया है। इसमें बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान का नाम भी शामिल है।
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस पर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनकी पार्टी आवामी लीग ने कई गंभीर आरोप लगाये हैं। शेख हसीना ने युनूस को विदेशी ताकतों को देश को बेचने और गिरवी रखने समेत कई संवेदनशील आरोप लगाये गये हैं। यहां की सेना के प्रमुख अंतरिम सरकार को अवैध बता चुके हैं। इन सबके बावजूद बांग्लादेश में अंतरिम सरकार लगातार ऐसे फैसले ले रही है, जो देश की शांति के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान का नाम स्वतंत्रता सेनानी की सूची से हटाने का निर्णय भी अशांति का कारण बन सकता है।
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने 'स्वतंत्रता सेनानी' को लेकर एक नया अध्यादेश जारी किया है। इस आदेश के जरिए उन्होंने ‘स्वतंत्रता सेनानी’ (बीर मुक्तिजोद्धा) की परिभाषा को बदलते हुए बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान समेत 400 प्रमुख व्यक्तियों का स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा रद्द कर दिया है। इस अध्यादेश में राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी परिषद अधिनियम में संशोधन किया गया है। इसमें स्वतंत्रता सेनानी शब्द को फिर से परिभाषित किया गया है। इसमें कहा गया है कि मुक्ति संग्राम के दौरान बनी मुजीबनगर सरकार से जुड़े राष्ट्रीय और प्रांतीय सभा के सदस्य, जो बाद में संविधान सभा के सदस्य बने, उन्हें ‘स्वतंत्रता सेनानी’ की बजाय ‘मुक्ति संग्राम का सहयोगी’ माना जाएगा। इसके अलावा, इस नई श्रेणी में वे पेशेवर भी शामिल हैं, जिन्होंने विदेश में रहकर मुक्ति संग्राम में योगदान दिया। साथ ही वैश्विक जनमत बनाने में मदद करने वाले बांग्लादेशी नागरिक, मुजीबनगर सरकार में अधिकारी और कर्मचारी, चिकित्सक, नर्स और अन्य सहायक भी इसमें शामिल हैं।
बांग्लादेश के प्रमुख समाचार पत्र प्रोथोम आलो की रिपोर्ट के मुताबिक, स्वाधीन बांग्ला बेतार केंद्र के सभी कलाकार और कर्मचारी, देश-विदेश में मुक्ति संग्राम का समर्थन करने वाले बांग्लादेशी पत्रकार और स्वाधीन बांग्ला फुटबॉल टीम को भी शामिल किया गया है। यह अध्यादेश अब बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान, पूर्व प्रधानमंत्री ताजुद्दीन अहमद, पूर्व कार्यवाहक राष्ट्रपति सैयद नजरूल इस्लाम और 400 से अधिक अन्य लोगों के स्वतंत्रता सेनानी के दर्जे को प्रभावित करेगा, जो संविधान सभा के सदस्य थे और अब तक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में पहचाने जाते थे।
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने मंगलवार की देर रात को जो अध्यादेश जारी किया है, उसके अनुसार, मुक्ति संग्राम को नये सिरे से परिभाषित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि ‘यह युद्ध 26 मार्च से 16 दिसंबर, 1971 तक लड़ा गया था, जिसका उद्देश्य बांग्लादेश के लोगों के लिए एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक राज्य के रूप में समानता, मानवीय गरिमा और सामाजिक न्याय स्थापित करना था। यह युद्ध पाकिस्तानी सशस्त्र बलों और उनके सहयोगियों- रजाकार, अल-बदर, अल-शम्स, मुस्लिम लीग, जमात-ए-इस्लामी, निजाम-ए-इस्लाम और शांति समिति के खिलाफ था’। बीर मुक्तिजोद्धा (स्वतंत्रता सेनानी) वह व्यक्ति है, जिसने 26 मार्च से 16 दिसंबर 1971 के बीच या तो देश के गांवों में युद्ध की तैयारी की और प्रशिक्षण लिया या भारत में विभिन्न प्रशिक्षण शिविरों में शामिल होने के लिए सीमा पार की, ताकि मुक्ति संग्राम में भाग ले सके। इन व्यक्तियों ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए पाकिस्तानी सशस्त्र बलों और उनके स्थानीय सहयोगियों के खिलाफ सक्रिय रूप से युद्ध में हिस्सा लिया। नए अध्यादेश में 'राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान' का नाम हटा दिया गया है और कानून के उन हिस्सों को भी हटा दिया गया है, जिनमें उनके नाम का जिक्र किया गया था।
मुक्ति संग्राम के शोधकर्ता अफसान चौधरी ने यूनुस सरकार के फैसले पर नाराजगी जाहिर करते हुए कड़ी निंदा की है। उन्होंने इस कदम को 'नौकरशाही का फैसला' बताया है। मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि हम 1972 से यह देखते आ रहे हैं कि हर बार जब नई सरकार सत्ता में आती है, तो वह स्वतंत्रता सेनानियों की नई सूची बनाती है। इसमें व्यक्तिगत लाभ शामिल होते हैं। उन्होंने कहा कि लोग इसे स्वीकार नहीं करेंगे। आम लोगों के दिलों में मुक्ति संग्राम हमेशा की तरह ही रहेगा। इसमें कोई भी परिवर्तन नहीं आएगा।
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