खालिदा जिया: भारत में जन्म, पाकिस्तान में बीता बचपन और बांग्लादेश की राजनीति में निर्णायक भूमिका

खबर सार :-
खालिदा जिया का जीवन दक्षिण एशिया के राजनीतिक इतिहास का जीवंत प्रतिबिंब था। भारत में जन्म, पाकिस्तान में परवरिश और बांग्लादेश की सत्ता तक का उनका सफर संघर्ष, सत्ता और विवादों से भरा रहा। उनके निधन के साथ बांग्लादेश की राजनीति का एक प्रभावशाली अध्याय समाप्त हो गया, जिसका असर आने वाले चुनावों और राजनीतिक संतुलन पर जरूर पड़ेगा।

खालिदा जिया: भारत में जन्म, पाकिस्तान में बीता बचपन और बांग्लादेश की राजनीति में निर्णायक भूमिका
खबर विस्तार : -

Khaleda Zia Bangladesh: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की अध्यक्ष खालिदा जिया का आज सुबह निधन हो गया। उनके निधन के साथ ही दक्षिण एशिया की राजनीति का एक महत्वपूर्ण अध्याय समाप्त हो गया। खालिदा जिया 80 वर्ष की थीं। वह न सिर्फ बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं, बल्कि दशकों तक देश की राजनीति की धुरी बनी रहीं। उनका जीवन भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश-तीनों देशों के ऐतिहासिक और राजनीतिक उतार-चढ़ाव से गहराई से जुड़ा रहा।

Khaleda Zia: भारत में जन्म और विभाजन का दौर

खालिदा जिया का जन्म 15 अगस्त 1945 को भारत के पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में हुआ था। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ, जब पूरा उपमहाद्वीप औपनिवेशिक शासन के अंतिम दौर में था। 1947 में जब भारत-पाकिस्तान विभाजन हुआ, तो खालिदा जिया महज दो साल की थीं। इस विभाजन ने करोड़ों लोगों की तरह उनके परिवार के जीवन की दिशा भी बदल दी। विभाजन के बाद उनका परिवार पूर्वी पाकिस्तान चला गया, जो बाद में बांग्लादेश बना।

Khaleda Zia: पाकिस्तान में बीता बचपन

खालिदा जिया का बचपन और युवावस्था पूर्वी पाकिस्तान में बीती। इस दौरान उन्होंने भाषाई और सांस्कृतिक भेदभाव को बहुत ही करीब से देखा, जो पश्चिमी पाकिस्तान द्वारा पूर्वी हिस्से के साथ किया जाता था। जनता के बीच लंबे समय से पनप रहा यही असंतोष आगे चलकर बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन की नींव बना। खालिदा जिया ने इस दौर को बहुत ही नजदीक से महसूस किया, जिसने उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को भी प्रभावित किया।

1971 और बांग्लादेश का उदय

1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध और मुक्ति संग्राम के बाद बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया। यह घटना खालिदा जिया के जीवन की सबसे निर्णायक घटनाओं में से एक रही। स्वतंत्रता के बाद देश में राजनीतिक अस्थिरता बनी रही, लेकिन यहीं से उनके परिवार की भूमिका राष्ट्रीय राजनीति में और मजबूत होती चली गई।

जियाउर रहमान और राजनीति में प्रवेश

खालिदा जिया की राजनीति में सक्रिय भूमिका उनके पति और तत्कालीन राष्ट्रपति जियाउर रहमान की 1981 में हुई हत्या के बाद शुरू हुई। पति की हत्या के बाद वह अचानक राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ गईं। 1980 के दशक में उन्होंने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की कमान संभाली और धीरे-धीरे खुद को एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित किया। 1991 में हुए आम चुनावों के बाद खालिदा जिया ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। यह न सिर्फ उनके लिए, बल्कि पूरे देश के लिए ऐतिहासिक क्षण था। उनके पहले कार्यकाल में संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करने, मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था और निजीकरण को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया।

Khaleda Zia : प्रधानमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल और विवाद

 बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के रूप में वर्ष 2001 से 2006 तक उनका दूसरा कार्यकाल कई विवादों से घिरा रहा। एक ओर बुनियादी ढांचे के विकास और आर्थिक सुधारों की बात हुई, तो दूसरी ओर भ्रष्टाचार, राजनीतिक हिंसा और कट्टरपंथी संगठनों को संरक्षण देने के आरोप भी लगे। इन आरोपों ने उनकी छवि को काफी नुकसान पहुंचाया। बता दें, पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान की पत्नी खालिदा जिया ने बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने का गौरव हासिल किया था। उन्होंने तीन बार प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा की और बांग्लादेश की राजनीति में एक मजबूत और प्रभावशाली नेतृत्व के रूप में अपनी पहचान बनाई।

भारत के साथ तनावपूर्ण रिश्ते

खालिदा जिया के कार्यकाल में भारत-बांग्लादेश संबंध अक्सर तनावपूर्ण रहे। उन्होंने भारत-बांग्लादेश मैत्री संधि और गंगा जल समझौते की आलोचना की। सीमा विवाद, अवैध घुसपैठ और तीस्ता जल बंटवारे जैसे मुद्दों पर भी उनका रुख सख्त रहा। उनके शासनकाल में पाकिस्तान और चीन के साथ रिश्तों को प्राथमिकता दिए जाने की बात भी कही गई।

शेख हसीना से कड़वी प्रतिद्वंद्विता

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की खालिदा जिया और अवामी लीग की नेता शेख हसीना की प्रतिद्वंद्विता बांग्लादेश की राजनीति की सबसे तीखी राजनीतिक लड़ाइयों में गिनी जाती है। सत्ता के लिए यह संघर्ष दशकों तक चला और देश की राजनीति दो खेमों में बंटी रही।

Khaleda Zia: जेल, बीमारी और अंतिम समय

वर्ष 2018 में भ्रष्टाचार के मामलों में सजा के बाद खालिदा जिया को जेल जाना पड़ा। जेल में रहते हुए उनकी सेहत लगातार बिगड़ती चली गई। बेहतर इलाज के लिए विदेश भेजने की मांग कई बार उठी, लेकिन अनुमति नहीं मिली। अंततः उनका निधन हो गया, जिसने बांग्लादेश की राजनीति में एक शून्य पैदा कर दिया।

बीएनपी ने खालिदा के निधन पर जारी किया बयान

बीएनपी ने खालिदा दिया के निधन पर बयान जारी कर दुख व्यक्त किया है। जारी बयान के अनुसार, खालिदा जिया का निधन मंगलवार सुबह करीब 6 बजे ढाका के एवरकेयर अस्पताल में हुआ। वह लंबे समय से बीमार चल रही थीं और पिछले एक महीने से अस्पताल में भर्ती थीं। उनकी उम्र 80 वर्ष थी। पार्टी ने कहा कि वे उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और देशवासियों से भी दुआ करने की अपील करते हैं। बताया गया है कि खालिदा जिया को 23 नवंबर को दिल और फेफड़ों से जुड़ी गंभीर समस्याओं के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अंतिम दिनों में वह निमोनिया से भी जूझ रही थीं और लगातार 36 दिनों तक मेडिकल निगरानी में रहीं। उनके इलाज के लिए बांग्लादेश के साथ-साथ ब्रिटेन, अमेरिका, चीन और ऑस्ट्रेलिया के विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम लगी हुई थी।

खालिदा जिया का निधन बांग्लादेश के लिए गहरा नुकसान : शेख हसीना

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की अध्यक्ष और देश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के निधन पर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने इसे बांग्लादेश की राजनीतिक दुनिया के लिए अपूरणीय क्षति बताया। शेख हसीना ने अवामी लीग के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल पर शोक संदेश साझा करते हुए कहा कि खालिदा जिया बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं और लोकतंत्र की स्थापना के संघर्ष में उनकी भूमिका अहम रही। हसीना ने लिखा, ''देश के लिए उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा और उनका जाना बांग्लादेश की राजनीति तथा बीएनपी नेतृत्व के लिए बड़ी क्षति है।'' शेख हसीना ने खालिदा जिया के परिवार के प्रति भी संवेदना व्यक्त की। उन्होंने उनके बेटे तारिक रहमान और बीएनपी कार्यकर्ताओं के प्रति सहानुभूति जताते हुए कहा कि ईश्वर उन्हें इस कठिन समय में धैर्य, शक्ति और संबल प्रदान करें।

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