Sawan Special: शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ काशी विश्वनाथ मंदिर

खबर सार :-
सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ के द्वादश ज्योतिर्लिंगों का दर्शन और पूजन करना अत्यंत फलदायी होता है। इन 12 शिवलिंगों में हर किसी का अपना अलग महात्म्य है। काशी विश्वनाथ मंदिर में विराजमान शिवलिंग का दर्शन और पूजन करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए सावन में काशी विश्वनाथ का दर्शन और पूजन करने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्दालु पहुंचते हैं।

Sawan Special: शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ काशी विश्वनाथ मंदिर
खबर विस्तार : -

 लखनऊः भगवान भोलेनाथ को सबसे प्रिय सावन की शुरुआत हो चुकी है। सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ के सभी प्रतिरूपों का दर्शन और पूजन करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों का दर्शन करने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। महादेव के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माने जाने वाले काशी के बाबा विश्वनाथ की महिमा अपरम्पार है। यहां देवाधिदेव महादेव ज्योति स्वरूप में और काशी के कोतवाल कहे जाने वाले भगवान काल भैरव स्वयं विराजमान हैं। भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी काशी को शिव और मोक्ष की नगरी के रूप में जाना जाता है। इसलिए सावन के पवित्र मास में बाबा विश्वनाथ का दर्शन एवं पूजन अवश्य करें।

काशी की हवाओं में भी बम-बम भोले की गूंज

उत्तर प्रदेश की आध्यात्मिक नगरी काशी में बाबा विश्वनाथ का मंदिर पवित्र गंगा नदी के पश्चिम तट पर स्थित है। यहां पवित्र गंगा नदी में स्नान करने और बाबा विश्वनाथ को गंगा जल चढ़ाने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां की हवाओं में भी बम-बम भोले और ऊं नमः शिवाय की गूंज सुनाई देती है। शिव और काल भैरव की नगरी काशी को सप्तपुरियों में शामिल किया गया है। सावन की शुरुआत होने के साथ ही काशी में भोलेनाथ के भक्तों का तांता लगने लगा है। काशी विश्वनाथ मंदिर प्रशासन ने इस बार सावन में एक करोड़ भक्तों के आने का अनुमान लगाया है। सावन के प्रत्येक सोमवार को बाबा विश्वनाथ का दर्शन और पूजन करने आने वाले भक्तों का आंकड़ा 10 लाख से अधिक रहने की उम्मीद जताई जा रही है।

बाबा विश्वनाथ से पूर्व काल भैरव के दर्शन की परम्परा

काशी विश्वनाथ के इस मंदिर को आक्रांताओं ने कई बार छिन्न-भिन्न करने की कोशिश की, लेकिन हिन्दुओं की आस्था के केंद्र बिन्दु को डिगा नहीं सके। इस मंदिर को बहुत ही भव्य स्वरूप दिया गया है। यहां भक्तों की सुविधा के लिए कॉरीडोर का निर्माण किया गया है, जिसकी वजह से लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं के जुटने पर भी दर्शन और पूजन शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हो जाता है। भगवान शिव के गण और माता पार्वती के अनुचर काल भैरव को काशी के कोतवाल के रूप में जाना जाता है, वह भी काशी में ही विराजते हैं। ऐसे में काशी विश्वनाथ के दर्शन से पूर्व काल भैरव के दर्शन की परम्परा है। भक्तों को काशी के कोतवाल से अनुमति लेकर ही बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने चाहिए। मंदिरों के इस शहर की सभी गलियां सनातन की समृद्ध परंपरा की गवाही देती हैं। यह मोक्ष की नगरी है, इसलिए लोग अपने जीवन के अंतिम दिनों में काशी में रहना पसंद करते हैं।

काशी दुनिया का सबसे प्राचीन शहर

वेदों, पुराणों, पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक तथ्यों में भी काशी नगरी और बाबा विश्वनाथ का वर्णन मिलता है। यहां काशी को दुनिया के सबसे प्राचीन शहर के रूप में बताया गया है। विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में भी काशी का जिक्र मिलता है। वहीं महाभारत और उपनिषद में भी इसके बारे में वर्णित है। यहां काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में बाबा विश्वनाथ का ज्योतिर्लिंग ईशान कोण में स्थित है, जो दिशा शास्त्र और वास्तु के अनुसार विद्या, कला, साधना और ब्रह्मज्ञान के प्रतीक रूप में पूजा जाता है। ईशान कोण में शिव का वास यह दर्शाता है कि यहां भगवान का नाम केवल शंकर ही नहीं, ईशान के रूप में विद्या और तंत्र का अधिपति स्वरूप भी है। काशी में बाबा विश्वनाथ और मां भगवती हर पल विराजते हैं। मां भगवती यहां अन्नपूर्णा के रूप में हर जीव का पोषण करती हैं। बाबा विश्वनाथ मृत्यु के उपरांत आत्मा को तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। यह शिव-शक्ति का दुर्लभ संयोग काशी को दिव्यता, पूर्णता और सनातन ऊर्जा का स्रोत बनाता है। यहां मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुखी है। बाबा का मुख उत्तर दिशा की ओर अर्थात अघोर दिशा में स्थित है। जब भक्त मंदिर में प्रवेश करता है, तो सबसे पहले उसे शिव के अघोर रूप के दर्शन होते हैं। जो समस्त पापों, तापों और बंधनों को नष्ट कर देने की शक्ति रखते हैं। महादेव के इस ज्योतिर्लिंग को लेकर द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत में लिखा गया है।
सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम् । 
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥
जो स्वयं आनन्दकन्द हैं और आनंदपूर्वक आनन्दवन (काशीक्षेत्र) में वास करते हैं, जो पाप समूह का नाश करने वाले हैं, उन अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ की शरण में मैं जाता हूं।

भगवान काल भैरव और नौ ग्रह मंदिर

काशी विश्वनाथ मंदिर के पास, देवी अन्नपूर्णा का महत्वपूर्ण मंदिर है, जिन्हें  “अन्न की देवी ” माना जाता है। वहीं सिंधिया घाट के पास, 'संकट विमुक्ति दायिनी देवी' देवी संकटा का एक महत्वपूर्ण मंदिर है। इस मंदिर के परिसर में शेर की एक विशाल प्रतिमा है। इसके अलावा यहां 9 ग्रहों के नौ मंदिर हैं। वहीं विशेसरगंज में हेड पोस्ट ऑफिस के पास वाराणसी का महत्वपूर्ण एवं प्राचीन मंदिर है। भगवान काल भैरव जिन्हें 'वाराणसी के कोतवाल' के रूप में माना जाता है, बिना उनकी अनुमति के कोई भी काशी में नहीं रह सकता है। यहीं कालभैरव मंदिर के निकट दारानगर के मार्ग पर भगवान शिव का मृत्युंजय महादेव मन्दिर मंदिर स्थित है। इस मंदिर का पानी कई भूमिगत धाराओं का मिश्रण है और कई रोगों को नष्ट करने के लिए उत्तम है।

तुलसी मानस मंदिर

शिव की नगरी काशी में तुलसी मानस मन्दिर भी है। यह मंदिर भगवान राम को समर्पित है, यह उस स्थान पर स्थित है, जहां रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास रहते थे। य़हीं रहकर उन्होंने इस ग्रंथ की रचना की थी। वहीं पास में दुर्गा मंदिर स्थित है, जो शक्ति को समर्पित है। यहां मां दुर्गा कुष्मांडा स्वरूप में विद्यमान हैं। इसके साथ ही यहां भगवान हनुमान का प्रसिद्ध मंदिर संकटमोचन मन्दिर स्थित है। यह मंदिर गोस्वामी तुलसीदास द्वारा स्थापित किया गया है। हालांकि इसके अलावा काशी की हर गली में मंदिरों की पूरी-पूरी श्रृंखला मौजूद है। इसीलिए काशी को मंदिरों का शहर, भारत की पवित्र नगरी, भारत की धार्मिक राजधानी आदि नामों से भी जाना जाता है।

काशी से श्री हरि का पुराना नाता

बाबा विश्वनाथ के दर्शन मात्र से मनुष्य का जीवन सफल हो जाता है। यदि कोई भक्त बाबा विश्वनाथ के दरबार में हाजिरी लगाता है, तो उसे जन्म-जन्मांतर के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। यह काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशुल पर बसी है। इस नगरी के बारे में पुराणों में वर्णित है कि यह भगवान विष्णु की नगरी थी। यहां श्रीहरि के आनंदाश्रु गिरे थे, जहां सरोवर बन गया। इस स्थल को प्रभु 'बिंधुमाधव' के रूप में पूजा जाता है। यह कुंड धरती पर गंगा के आगमन से पूर्व का है। जब गंगा को भागीरथ धरती पर लेकर आए थे, उसके भी पहले इस कुंड का निर्माण श्री हरि विष्णु ने किया था। इस कुंड का जल भीषण गर्मी में भी एकदम शीतल होता है और भयानक ठंड में उसका जल बिल्कुल गर्म और गुनगुना होता है। इस स्थान की महत्ता इतनी है कि बिना यहां पर डुबकी लगाएं काशी यात्रा को पूर्ण नहीं माना जाता है। ऐसा कहते हैं कि शिव को यह नगरी इतनी भा गई कि उन्होंने भगवान श्री हरि से इसे अपने निवास के लिए मांग लिया।

 

 

 

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