Vice President Election-2025 : उपराष्ट्रपति का चुनाव परोक्ष (Indirect) होता है। इसमें सिर्फ संसद सदस्य (लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित व मनोनीत दोनों) मतदान करते हैं। राज्य विधानसभाओं की इसमें कोई भूमिका नहीं होती। हर सांसद का वोट मानकीकृत एक (1) मान लिया जाता है।
मतदान सिंगल ट्रान्सफरेबल वोट प्रणाली से होता है, गुप्त पद्धति से। मतदाता अपनी पसंद को क्रमबद्ध (1, 2, 3) कर सकते हैं। आवश्यकता से पहले - पहले बहुमत नहीं मिलने पर, सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को हटाकर उसके वोट दूसरी प्राथमिकता के आधार पर ट्रांसफर कर दिए जाते हैं, जब तक कोई विजेता स्पष्ट न हो।
जब उपराष्ट्रपति का पद खाली हो जाता है (जैसे कि इस्तीफे या निधन की वजह से), तो चुनाव जल्द से जल्द करवाना होता है। आमतौर पर, 60 दिनों के भीतर चुनाव की घोषणा हो जाती है। बीजेपी के जगदीप धनखड़ के स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफ़े के बाद, चुनाव आयोग ने 1 अगस्त को चुनावी प्रक्रिया शुरू कर दी और मतदान 9 सितंबर 2025 को तय हो गया।
2025 का चुनावः दो मुख्य चेहरे, दो अलग-अलग दृष्टिकोण
NDA के उम्मीदवार: सी.पी. राधाकृष्णन
भाजपा की ओर से उम्मीदवार, महाराष्ट्र के राज्यपाल और अनुभवी नेता, सी.पी. राधाकृष्णन हैं। गठबंधन के पास लोकसभा और राज्यसभा में मजबूत संख्या बल है। यदि मतदान में कोई विचलन नहीं हुआ, तो पलड़ा एनडीए की ओर ही झुकता दिखता है।
INDIA ब्लॉक का उम्मीदवार: बी. सुदर्शन रेड्डी
विपक्ष ने पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश, बी. सुदर्शन रेड्डी को अपना उम्मीदवार चुना है। विपक्ष की चर्चा में उनका नाम विशेष रूप से ममता बनर्जी की इच्छा के लिए स्वीकार किया गया, जिससे गठबंधन में क्षेत्रीय नेताओं की शक्ति स्पष्ट होती है।
धनखड़ का अचानक इस्तीफ़ाः सरकारी तर्क स्वास्थ्य से जुड़ा है, लेकिन विपक्ष और कुछ नेताओं ने इसे संदिग्ध माना। विपक्षी नेताओं ने उनका पता न चलने पर चिंता जताई। गृह मंत्री अमित शाह नेघर पर नजरबंदी वाले आरोपों को खारिज कर दिया।
चुनावी मैदान में राधाकृष्णन और सुन्दर्शन रेड्डी की टक्कर को राजनैतिक समीकरणों की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है।
यह चुनाव सिर्फ एक संवैधानिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि राजनीतिक गठबंधनों और नैतिक सवालों का मिश्रण है। एनडीए के पास संख्या बल ज्यादा है, जबकि विपक्ष ने न्यायपालिका से जुड़े अनुभव को मोर्चे पर रखा है। गाँव से लेकर संसद तक, भूमिकाएँ अलग-अलग और मतभेद स्पष्ट हैं। समय आने पर (9 सितंबर, 2025 को) यह चुनाव दिखाएगा कि शक्ति, स्थायित्व और बचाव, कौन सा मॉडल जनता की परोक्ष राय में अधिक विश्वसनीय और प्रासंगिक है।