Vote Chori : हाल ही में, भारतीय राजनीति में एक नया विवाद बखेड़ा खड़ा हो गया। विपक्षी दलों, ख़ासतौर पर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग (ईसीआई) पर गंभीर आरोप लगाए हैं। राहुल गांधी ने एक प्रेस वार्ता करके वोट चोरी और वोटर लिस्ट में धांधली का पर्दाफाश करके चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं। बकौल राहुल गांधी चुनाव आयोग का जनता के सामने नकाब उतर चुका है। ये आरोप बिहार के सासाराम में हुई एक रैली से उठे, जहां विपक्षी नेताओं ने बीजेपी और चुनाव आयोग के बीच मिली-भगत तक का दावा कर दिया। इस रैली के तुरंत बाद, दिल्ली में चुनाव आयोग ने आरोपों का जवाब देने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। यह पूरा मामला अब एक बड़े राजनीतिक और संवैधानिक बहस का विषय बन गया है।
सासाराम की रैली में राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि बिहार में एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) की प्रक्रिया का इस्तेमाल करके नए वोटरों को जोड़ा जा रहा है और पुराने वोटरों के नाम काटे जा रहे हैं। इसका मकसद बीजेपी चुनाव में जीत दिलाने का है। राजद के वरिष्ठ नेता और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने भी इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि चुनाव से ठीक पहले जल्दबाजी में इस तरह कदम उठाने का मकसद क्या हैं, ख़ासकर तब जब बिहार की जनता बाढ़ की स्थिति का सामना कर रही है।
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने स्पष्ट किया कि वोटर लिस्ट को चुनाव से पहले अपडेट करना कानूनन जरूरी है। उन्होंने कहा कि यह कोई नई या चोरी-छिपे की जाने वाली प्रक्रिया नहीं है, बल्कि लोक प्रतिनिधित्व कानून के तहत हर चुनाव से पहले मतदाता सूची को शुद्ध करना आयोग का कानूनी दायित्व है। उन्होंने 2003 में बिहार में हुई एसआईआर का उदाहरण भी दिया ताकि यह साबित हो सके कि यह प्रक्रिया पहले भी सफल रही है।
एक और बड़ा आरोप डुप्लिकेट एपिक (इलेक्टर फोटो आइडेंटिटी कार्ड) को लेकर है। चुनाव आयोग के अनुसार, ऐसी दो तरह की समस्याएं सामने आती हैं। एपिक एक, व्यक्ति अनेक और व्यक्ति एक, एपिक अनेक। आयोग ने बताया कि उन्होंने लाखों डुप्लिकेट एपिक नंबरों को सही किया है।
राहुल गांधी ने ऐसे कुछ उदाहरण दिए जहां एक ही व्यक्ति का नाम कई जगहों की वोटर लिस्ट में शामिल था। चुनाव आयोग ने इस पर सफाई दी कि ऐसा अक्सर तब होता है जब कोई व्यक्ति अपना पता बदल लेता है, लेकिन पुरानी जगह से अपना नाम नहीं हटवाता। आयोग ने कहा कि कानून के अनुसार, वे सिर्फ किसी के कहने पर नाम नहीं हटा सकते, क्योंकि एक ही नाम के कई लोग हो सकते हैं। इस प्रक्रिया को सही करने के लिए या तो व्यक्ति खुद नाम हटवा सकता है या एसआईआर के माध्यम से इसे ठीक किया जा सकता है।
विपक्षी दलों ने दावा किया कि बेंगलुरु की महादेवपुरा विधानसभा और महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में लाखों फर्जी वोटर और अमान्य पते वाले लोग वोटर लिस्ट में शामिल हैं। राहुल गांधी ने जीरो हाउस नंबर वाले पतों पर भी सवाल उठाए, जहां एक ही कमरे में कई-कई वोटर रजिस्टर किए गए थे।
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को निराधार और गैर-जिम्मेदाराना बताया। उन्होंने कहा कि वोट चोरी जैसे शब्द करोड़ों मतदाताओं और लाखों चुनाव कर्मचारियों की ईमानदारी पर सीधा हमला हैं। जीरो हाउस नंबर वाले आरोप पर आयोग ने एक संवेदनशील जवाब दिया। उन्होंने बताया कि ऐसे कई लोग होते हैं जिनके पास स्थायी घर नहीं होता। उनका पता वो जगह होती है जहां वे रात में सोते हैं, जैसे कि कोई पुल या सड़क का किनारा। ऐसे लोगों को फर्जी वोटर कहना उनके सम्मान के साथ खिलवाड़ है।
इसके अलावा, कई अनधिकृत कॉलोनियां या ग्रामीण क्षेत्रों में घरों को कोई नंबर नहीं दिया गया होता। ऐसे में, मतदाता फॉर्म में नोशनल नंबर भरा जाता है, जो कंप्यूटर में दर्ज होने पर शून्य जैसा दिखाई देता है। आयोग ने स्पष्ट किया कि वोटर बनने के लिए नागरिकता और 18 वर्ष की आयु होना सबसे महत्वपूर्ण शर्त है, न कि घर का पता।
राहुल गांधी ने बार-बार यह सवाल उठाया है कि चुनाव आयोग उनसे ही शपथ पत्र क्यों मांग रहा है, जबकि बीजेपी नेताओं से ऐसा नहीं मांगा गया।
चुनाव आयोग ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि यह कानून का एक हिस्सा है। मुख्य चुनाव आयुक्त ने समझाया कि अगर कोई व्यक्ति किसी विधानसभा क्षेत्र का मतदाता नहीं है और वह वहां की वोटर लिस्ट में गड़बड़ी की शिकायत करता है, तो उसे कानूनी रूप से शपथ पत्र देना होता है। यह नियम सबके लिए समान है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर सात दिनों के अंदर शपथ पत्र नहीं दिया जाता तो इसका मतलब है कि आरोप निराधार हैं और आरोप लगाने वाले को देश से माफी मांगनी चाहिए।
चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस की टाइमिंग पर भी सवाल उठे। यह प्रेस कॉन्फ्रेंस ठीक उसी समय हुई जब बिहार में विपक्षी दलों की रैली चल रही थी। वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता ने इसे महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि चुनाव आयोग पहले इस तरह से सामने आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं करता था। उन्होंने यह भी जोड़ा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में चुनाव आयोग को उन 65 लाख मतदाताओं की लिस्ट जारी करने का निर्देश दिया था, जिनके नाम ड्राफ्ट लिस्ट से हटा दिए गए थे।
वहीं, राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद जोशी ने इस टाइमिंग को राजनीतिक संदर्भ में देखा। उन्होंने कहा कि जिस तरह से राहुल गांधी ने इस मुद्दे को राजनीतिक रंग दिया, उसी तरह सरकार की तरफ से चुनाव आयोग ने भी ठीक उसी दिन अपना पक्ष सामने रखा।
यह पूरा मामला अब एक नई दिशा ले चुका है। चुनाव आयोग की भूमिका और विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह बहस आने वाले दिनों में क्या मोड़ लेती है।