Air Pollution 2025: दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। दीपावली के पहले से ही यहां की हवा जहरीली हो चुकी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) के नवीनतम आंकड़े दर्शाते हैं कि दिल्ली, नोएडा और गाजियाबाद के कई इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 400 के पार पहुंच गया है, जो ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है। दिल्ली के अलीपुर में AQI 420, आनंद विहार में 403, अशोक विहार में 370, जबकि बवाना और बुराड़ी क्रॉसिंग जैसे क्षेत्रों में यह स्तर 390 से अधिक दर्ज किया गया है। वहीं, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी प्रदूषण का स्तर भयावह हो चुका है। यहां वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 से ऊपर पहुंच गया है, जो कि स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक माना जा रहा है।

नोएडा में भी वायु गुणवत्ता बेहद खराब स्थिति में पहुंच गई है। सेक्टर-125 में AQI 345, सेक्टर-116 में 357, और सेक्टर-62 में 323 दर्ज किया गया। गाजियाबाद में स्थिति और भी गंभीर है — लोनी में AQI 420, वसुंधरा में 389, संजय नगर में 360, और इंदिरापुरम में 334 तक पहुंच गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी खराब हवा में लंबे समय तक रहने से सांस की बीमारियां, आंखों में जलन और फेफड़ों के संक्रमण जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं। डॉक्टरों ने बच्चों, बुजुर्गों और अस्थमा के मरीजों को अतिरिक्त सावधानी बरतने की सलाह दी है।
मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, अगले कुछ दिनों में तापमान में गिरावट दर्ज की जाएगी। नोएडा में 4 से 9 नवंबर तक अधिकतम तापमान 29 से घटकर 27 डिग्री सेल्सियस, जबकि न्यूनतम तापमान 19 से घटकर 15 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने का अनुमान है। हालांकि तापमान गिरने से हवा और भारी हो जाएगी, जिससे प्रदूषण फैलाने वाले कण नीचे जम सकते हैं और प्रदूषण का असर और बढ़ सकता है।
आईएमडी ने बताया कि मंगलवार या बुधवार को दिल्ली-एनसीआर के कुछ हिस्सों में हल्की रिमझिम बारिश की संभावना है। मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि हल्की बारिश और हवा की दिशा में बदलाव से प्रदूषण के स्तर में कुछ हद तक सुधार देखने को मिल सकता है। फिलहाल, स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने लोगों को सुबह-शाम घर से बाहर निकलने से बचने, मास्क पहनने और वायु शोधक (एयर प्यूरीफायर) के उपयोग की सलाह दी है।

यूपी की राजधानी लखनऊ की हवा बहुत अधिक प्रदूषित हो चुकी है। यहां की बढ़ती आबादी, बढ़ते वाहन और निर्माण कार्यों की वजह से होने वाले प्रदूषण ने शहर की सांसें पर ब्रेक लगा दिया है। इसको लेकर रिमोट सेंसिंग एप्लिकेशन सेंटर ( आरएसएसी) के वैज्ञानिकों की ओर से किए सर्वे में खुलासा हुआ है कि शहर की आबोहवा बहुत ही खराब है और सिर्फ छह एक्यूआई सेंटरों से इसे मापना पर्याप्त नहीं है। इसलिए वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुधाकर शुक्ला की अगुवाई में वैज्ञानिकों की टीम डॉ. राजीव, नीलेश, पल्लवी, ममता, वैभव, शाश्वत, सौरभ और सुजीत ने 21 से 24 अक्तूबर के बीच पूरे शहर के 110 वार्डों और 8 जोनों में 282 स्थानों पर पोस्ट-मानसून हवा की गुणवत्ता जांची। साथ ही जिओ-सपैशियल तकनीक के जरिए मानचित्रीकरण किया । आंकड़ों में सामने आया कि पोस्ट-मानसून और दीवाली के बाद कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 से ऊपर पहुंच गया है। यह स्तर स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक माना जाता है।
500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले लखनऊ के अंदर 40 लाख से ज्यादा आबादी निवास करती है। यहां पर उद्योग धंधों के साथ ही साथ सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या और उनकी वजह से होने वाला प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है। अनियंत्रित निर्माण कार्यों ने हवा की गुणवत्ता को लगातार बिगाड़ा है। सर्वे के मुताबिक अलीगंज, अमीनाबाद, चौक और विकासनगर जैसे घनी आबादी वाले इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित रहे हैं। औद्योगिक क्षेत्र तॉलकटोरा में भी प्रदूषण का स्तर भयावह रूप ले चुका है। यहां तक की अब तक सबसे ''साफ हवा'' वाला इलाका माना जाने वाला कैंट एरिया भी प्रदूषित हो चुका है।

राजधानी दिल्ली समेत कई राज्यों की सरकारों की ओर से प्रदूषण घटाने के लिए कृत्रिम बारिश के विकल्प पर विचार किया जा रहा है। वैज्ञानिकों ने चेताया कि प्रदूषण घटाने के लिए ''सिल्वर आयोडाइड'' रसायन से कृत्रिम बारिश कराने का तरीका अपनाना बच्चों के लिए घातक साबित हो सकता है। यह खतरनाक कंपाउंड मिट्टी, पानी और वातावरण में स्थाई तौर पर जमा होकर इसे दूषित कर त्वचा और श्वास संबंधी रोगों व समस्याओं को बढ़ा सकता है।
शोध के बाद रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि सिर्फ छह वायु गुणवत्ता मापक केंद्रों से नहीं, बल्कि शहर के अधिक से अधिक इलाकों में नए एक्यूआई मॉनिटरिंग सेंटर लगाए जाने चाहिए। वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे हर वार्ड की असली वायु प्रदूषण की स्थिति की सटीक तस्वीर सामने आएगी। साथ ही आम लोगों को भी प्रदूषण रोकथाम के लिए सजग और साक्षर बनना होगा। औद्योगिक उत्सर्जन, वाहनों के प्रदूषण की जांच, सही ट्रैफिक व्यवस्था, दिवाली पर पटाखों का सीमित उपयोग, हरियाली को और बढ़ाना होगा।
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