Panchayat Season 4 Review: भारत की सबसे पसंदीदा वेब सीरीज में से एक, TVF की 'पंचायत' अपने चौथे सीजन के साथ Amazon Prime Video पर वापस आ गई है। 8 सालों से दर्शकों के दिलों पर राज कर रहा यह शो अपने चौथे सीजन के साथ वापस आ गया है। 'पंचायत' ने अपने पहले तीन सीजन में दिखा दिया था कि कैसे एक कहानी बिना गाली-गलौज, ग्लैमर या बड़े ट्विस्ट के भी लाखों दिल जीत सकती है।
पिछले 3 सीजन की तरह 'पंचायत 4' भी अपनी सादगी और किरदारों से आकर्षित करता है। सभी किरदारों की एक्टिंग हमेशा की तरह कमाल की है और गांव का माहौल असली लगता है। लेकिन कहानी थोड़ी धीमी है और उसमें नयापन कम है, जो कई बार बोरियत पैदा कर सकता है। कुछ सीन बेमतलब लगते हैं। फिर भी अगर आपको हल्की-फुल्की कहानियां पसंद हैं, तो आपको यह सीजन भी पसंद आएगा।
24 जून, 2025 को रिलीज़ हुए इस नए सीजन से दर्शकों को काफ़ी उम्मीदें थीं, ख़ास तौर पर पिछले सीजन की थोड़ी निराशा के बाद। अगर आप पिछले सीजन की असफलता के बाद पंचायत सीजन 4 से ज़्यादा उम्मीद नहीं कर रहे हैं, तो आप बिल्कुल सही हैं। जैसा कि निर्माताओं ने बताया, चौथी किस्त ग्राम पंचायत चुनावों पर केंद्रित है, जहां मौजूदा प्रधान मंजू देवी और नई उम्मीदवार क्रांति देवी आमने-सामने हैं।
इस बार कहानी पूरी तरह से गांव फुलेरा के चुनाव पर केंद्रित है, जहां मंजू देवी (नीना गुप्ता) और क्रांति देवी (सुनीता राजवार) आमने-सामने हैं। हालांकि, असली लड़ाई उनके पतियों के बीच है, जो एक-दूसरे को हराने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। भले ही ऐसा लग रहा हो कि यह चुनावी लड़ाई ग्रामीण जीवन की आकर्षक विचित्रताओं को दर्शाएगी, जिन्हें पहले के सीजन में बहुत ही शानदार तरीके से दिखाया गया था, लेकिन इस बार ऐसा लगता है कि कहानी को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है। शुरुआत में आपको यह पसंद आ सकती है, लेकिन फिर आपको एहसास होगा कि इसे बेवजह खींचा जा रहा है।
सचिव जी, विकास, प्रहलाद (फैजल मलिक) के बीच की बॉन्डिंग भी इस बार कम देखने को मिली है। अगर रिंकी और सचिव जी का रोमांटिक ट्रैक थोड़ा और रूमानी हो जाता तो मजा आ जाता। लेकिन इसके बावजूद दर्शकों ने अपने सभी पसंदीदा किरदारों के साथ अपनी यात्रा जारी रखी है जो तीन सीजन में पूरी तरह से स्थापित हो चुके हैं। चौथे सीजन का क्लाइमेक्स ओपन रखा गया है।
'पंचायत' सीजन 4 की शुरुआत वहीं से होती है, जहां सीजन 3 खत्म हुआ था। प्रधान जी (रघुबीर यादव) को गोली लगी थी, जो उनके कंधे पर लगी थी। अब उनके कंधे का घाव तो ठीक हो गया है, लेकिन उनके अंदर का दर्द और डर अभी भी बरकरार है। वहीं, सचिव जी (जितेंद्र कुमार) के नाम पर केस दर्ज हो गया है। विधायक जी (प्रकाश झा) पर हमला करने के बदले में उन्हें यह केस तोहफे में मिला है। उन्हें अपनी कैट परीक्षा के रिजल्ट का भी इंतजार है। इस बीच, फुलेरा में चुनावी माहौल गरमा गया है। बनारस के क्रांति देवी, बिनोद (अशोक पाठक) और माधव (बुल्लू कुमार) गिद्धों की तरह प्रधान जी और पार्टी पर नजर रखे हुए हैं। विधायक जी भी इन चारों का जमकर समर्थन कर रहे हैं। दूसरी तरफ, प्रधान जी किसी शुभचिंतक के संरक्षण में हैं, जिसके बारे में उन्हें अभी तक पता नहीं है।
शो की शुरुआत धीमी है, लेकिन जैसे-जैसे यह आगे बढ़ता है, आपको राजनीति का रंग देखने को मिलता है। प्रधान जी और मंजू देवी, सचिव जी, रिंकी (संविका), विकास (चंदन रॉय) और प्रहलाद चा (फैसल मलिक) जो भी करने की कोशिश करते हैं, बनराकस और कंपनी उनके पीछे पड़ जाती है। बनराकस और उसके साथियों ने प्रधान जी और उनकी टीम का खून चूसा है। उनका नारा है 'कुकर में लौकी पकाना' और वे ऐसा करने के लिए काफी मेहनत कर रहे हैं।
प्रधान और उसके साथियों की बुरी हालत देखकर एक बार आपको दुख भी होने लगता है। जब भी भूषण और क्रांति मुंह खोलते हैं, तो आपको लगता है कि बल्ले से उनका मुंह तोड़ दूं। मंजू देवी और क्रांति देवी के बीच चल रही चुनावी जंग देखने में मजेदार भी है और बोरिंग भी। अगर आपको 'पंचायत' का सीजन 3 याद है, तो वह काफी उथला था। इस सीजन में भी यही दिक्कत नजर आ रही है।
नए सीजन की कहानी चुनाव, उसकी गर्माहट और खींचतान के इर्द-गिर्द बुनी गई है। हालांकि, इससे आगे आपको कुछ नहीं मिलता। जवाब तलाशा जा रहा है कि प्रधान जी को किसने गोली मारी। जवाब मिलने के बाद भी बात पूरी नहीं होती। सीरीज की सबसे बड़ी कमी सचिव जी, विकास, प्रहलाद चा और प्रधान जी की चौकड़ी के चारों पैरों का असंतुलन है। इनका आपसी जुड़ाव ही इस सीरीज की असली जान थी लेकिन अब इसे मसाले की तरह यहां-वहां जोड़ दिया गया है। न तो इनके बीच पहले जैसी गर्मजोशी दिखती है और न ही नजदीकियां।
कुल मिलाकर, 'पंचायत सीजन 4' एक 'आरामदायक घड़ी' है। इसमें भले ही 'बाहुबली' जैसे ट्विस्ट और धमाके न हों, लेकिन यह सीरीज आपको लोगों की असली मुश्किलों और भावनाओं की दुनिया में ले जाती है। अगर आप सुकून भरी, हल्की-फुल्की और जमीनी कहानियों के शौकीन हैं, तो यह सीजन आपको निराश नहीं करेगा। बस बहुत ज़्यादा उम्मीद न करें।
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