क्या ब्रह्मांड में हम अकेले हैं? क्या पृथ्वी के समान कहीं और भी जीवन है? यह सवाल सदियों से मानव मन उठ रहे हैं। आज के आधुनिक युग में वैज्ञानिक इसी रहस्य को सुलझाने में जी-जान से जुटे हैं, और इस राह में सबसे बड़ी चुनौती है उन तारों को समझना, जिनके इर्द-गिर्द जीवन की संभावना वाले ग्रह घूमते हैं। हाल ही में, वैज्ञानिकों ने एक क्रांतिकारी तकनीक विकसित की है, जिसे स्टारी-स्टारी-प्रोसेस नाम दिया गया है, जो इस खोज में एक नया अध्याय जोड़ दिया है।
आपने सूर्य पर काले धब्बों के बारे में अवश्य सुना होगा, जो दरअसल उसकी सतह के ठंडे और अंधेरे क्षेत्र को दिखाते हैं। ये धब्बे अस्थायी होते हैं जो सूर्य की गतिविधि के साथ अपना स्थान व स्वरूप बदलते रहते हैं। इसी तरह, ब्रह्मांड के अन्य तारों पर भी इसी तरह के धब्बे पाए जाते हैं, जिन्हें स्टार स्पॉट्स कहा जाता है। ये धब्बे तारे की चमक और ऊर्जा को प्रभावित करते हैं, जिससे तारे की रोशनी में अनियमितता आ जाती है।
यह अनियमितता तब और भी जटिल हो जाती है, जब कोई ग्रह अपने तारे के सामने से गुजरता है। इस घटना को ट्रांजिट कहते हैं। ट्रांजिट के दौरान तारे की रोशनी में मामूली कमी आती है। तारों में आए इसी बदलाव का उपयोग कर वैज्ञानिक ग्रह के आकार, वजन और दूरी का पता लगाते हैं, लेकिन अगर तारे पर धब्बे हों, तो रोशनी में आने वाले उतार-चढ़ाव को समझना बेहद मुश्किल हो जाता है। यह पता लगाना कठिन हो जाता है कि रोशनी में बदलाव ग्रह के कारण हुआ है या तारे के धब्बों की वजह से।
यहीं पर स्टारी-स्टारी-प्रोसेस मॉडल अपनी अहम भूमिका निभाते नजर आता है। यह तकनीक सिर्फ ग्रह के ट्रांजिट का विश्लेषण नहीं करती, बल्कि तारे के घूमने के दौरान उसकी रोशनी में आने वाले हर सूक्ष्म बदलाव का भी अध्ययन करती है। यह मॉडल तारे पर मौजूद धब्बों की संख्या, उनकी स्थिति और गहराई का सटीक अनुमान लगाने में सक्षम है।
इस तकनीक के माध्यम से, वैज्ञानिक यह तय कर सकते हैं कि किसी तारे से आ रहे संकेत वास्तव में उस तारे की गतिविधि के कारण हैं या फिर किसी दूरस्थ ग्रह से आ रहे हैं। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वैज्ञानिक अक्सर ग्रहों के वायुमंडल में पानी या अन्य गैसों की तलाश करते हैं, जो जीवन का एक बड़ा संकेत हो सकते हैं। कई बार तारे के धब्बों से भी ऐसे ही संकेत मिल सकते हैं, जिससे भ्रम की स्थिति पैदा होती है।
इस नई तकनीक का परीक्षण करने के लिए, वैज्ञानिकों ने टीओआई 3884 बी नामक एक गैस से भरे विशाल ग्रह का अध्ययन किया, जो पृथ्वी से लगभग 141 प्रकाश-वर्ष दूर स्थित है। इस ग्रह का तारा, टीओआई 3884, अपने उत्तरी धु्रव के पास धब्बों से भरा हुआ है। इस तारे की खास बात यह है कि यह पृथ्वी की ओर झुका हुआ है, जिससे ग्रह का ट्रांजिट सीधे इन धब्बों के ऊपर से होता है।
इस अध्ययन ने साबित कर दिया कि स्टारी-स्टारी-प्रोसेस तकनीक तारों पर मौजूद धब्बों को सही ढंग से समझने में कितनी कारगर है। यह शोध द एस्ट्रोफिजिकल पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, जो इस बात पर जोर देता है कि जीवन की खोज सिर्फ ग्रहों तक सीमित नहीं हो सकती। हमें उन तारों को भी गहराई से समझना होगा, जो उन ग्रहों को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
फिलहाल, यह मॉडल नासा के टेस्स और पुराने केप्लर स्पेस टेलीस्कोप द्वारा एकत्र किए गए दृश्य प्रकाश के डेटा पर काम करता है। लेकिन आने वाले समय में, नासा का नया मिशन पैंडोरा इस तकनीक को और भी उन्नत बनाएगा। पैंडोरा उपग्रह विभिन्न तरंगदैर्ध्य पर तारों और ग्रहों का लंबे समय तक अध्ययन करेगा, जिससे वैज्ञानिक यह बेहतर ढंग से समझ पाएंगे कि तारे की रोशनी ग्रह के वातावरण से गुजरते समय कैसे बदलती है।
कुल मिलाकर, स्टारी-स्टारी-प्रोसेस जैसी तकनीक हमें इस विशाल ब्रह्मांड में अपने स्थान को और अधिक स्पष्टता से समझने का मौका देती है। यह हमें न सिर्फ तारों की रहस्यमयी सतहों को उजागर करने में मदद करेगी, बल्कि यह जानने में भी सहायता करेगी कि क्या हम इस ब्रह्मांड में अकेले हैं या कहीं और भी जीवन है।
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