Sawan 2025: सैंकड़ो साल पुराने इस शिव मंदिर की सीढ़ियां छूने पर निकलती है मधुर धुन, जानें इसके पीछे का रहस्य

खबर सार :-
Sawan 2025: देवों के देव महादेव की महिमा अपार है, उनकी परम शक्तियों से न केवल शैतान बल्कि अन्य देवता भी भयभीत रहते हैं। सावन के पवित्र महीने में हर कोई महादेव की भक्ति में लीन रहता है। यही वजह है कि देश के कोने-कोने में आपको उनके मंदिर मिल जाएँगे। देश के ज़्यादातर मंदिर नए हैं, लेकिन कुछ मंदिरों का अपना प्राचीन इतिहास है।

Sawan 2025: सैंकड़ो साल पुराने इस शिव मंदिर की सीढ़ियां छूने पर निकलती है मधुर धुन, जानें इसके पीछे का रहस्य
खबर विस्तार : -

Sawan 2025: देवों के देव महादेव को समर्पित सावन का पवित्र महीना चल रहा है। देशभर के शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है। भोलेनाथ का हर मंदिर भक्ति और चमत्कार की कहानी समेटे हुए है। ऐसा ही एक मंदिर तमिलनाडु के कुंभकोणम के पास दारासुरम में स्थित है, जिसका नाम ऐरावतेश्वर मंदिर (Airavateswara Temple) है। इंद्र के हाथी ऐरावत से जुड़ा यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि इतिहास, कला और स्थापत्य कला का खजाना भी है। इस शिव मंदिर का निर्माण चोल राजा राजराज द्वितीय ने 12वीं शताब्दी में करवाया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसका नाम इंद्र के सफेद हाथी 'ऐरावत' के नाम पर रखा गया है।

Airavateswara Temple: इंद्र के ऐरावत ने की थी महादेव की पूजा

 पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐरावत ने यहां महादेव की पूजा की थी। कहा जाता है कि ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण इंद्र के सफेद हाथी ऐरावत का रंग उड़ गया था। मंदिर के पवित्र जल में स्नान करके और शिव की पूजा करके उसने अपना रंग पुनः प्राप्त कर लिया। इसी प्रकार, मृत्यु के देवता यम, जो श्राप से पीड़ित थे, ने भी यहां स्नान और पूजा की थी और वरदान प्राप्त किया था। इसीलिए मंदिर में यम की छवि भी अंकित है। विश्व धरोहर में शामिल यह शिवालय, चोल वंश द्वारा निर्मित मंदिरों की त्रिमूर्ति का हिस्सा है, जिसमें तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर और गंगईकोंडा चोलपुरम का गंगईकोंडा चोलेश्वरम मंदिर भी शामिल हैं।

संगीतमय सीढ़ियां, छूने से निकलती है मधुर धुन

ऐरावतेश्वर मंदिर की सबसे आकर्षक विशेषता इसकी संगीतमय सीढ़ियां हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर बनी सात सीढ़ियां सात संगीत स्वरों "सा, रे, गा, मा, पा, ध, नि" का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन पर एक कोमल सीढ़ियां संगीत की मधुर धुनों को प्रतिध्वनित करती हैं, जो 800 साल पुरानी वास्तुकला के वैज्ञानिक चमत्कार को दर्शाती हैं। आज भी वैज्ञानिक इस रहस्य को पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं। मंदिर की दीवारों और छतों पर की गई नक्काशी, रथ के आकार का मंडप, और यम, सप्तमाता, गणेश और अन्य वैदिक-पौराणिक देवताओं की मूर्तियां इसे कला की एक उत्कृष्ट कृति बनाती हैं।

नक्काशी पुराणों की कहानियां बयां करता मंदिर

तमिलनाडु पर्यटन विभाग के अनुसार, यह मंदिर चोल वंश की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाता है। 24 मीटर ऊंचा विमान (शिखर) और घोड़े द्वारा खींचे जाने वाले रथ के आकार का मंडप इसकी भव्यता में चार चांद लगा देते हैं। मंदिर की नक्काशी पुराणों की कहानियां बयां करती है, जो मन को विस्मित कर देती हैं। इस मंदिर में साल भर भक्त आते हैं और महादेव की पूजा करते हैं। 

सावन और महाशिवरात्रि के दौरान भक्त Airavateswara Temple में विशेष रूप से उमड़ते हैं। इसके अलावा, कार्तिक पूर्णिमा, तिरुकार्तिकै और मंदिर का वार्षिक उत्सव (महोत्सव) यहां आने वाले प्रमुख अवसरों में से हैं। कुंभकोणम तक पहुंचना आसान है। तिरुचिरापल्ली हवाई अड्डा 91 किमी दूर है और कुंभकोणम रेलवे स्टेशन चेन्नई, मदुरै और तिरुचिरापल्ली से जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग से बस और टैक्सी सेवाएं भी उपलब्ध हैं।

अन्य प्रमुख खबरें