Karwa Chauth 2025: करवा चौथ हिंदू धर्म में एक बहुत ही खास और श्रद्धापूर्वक मनाया जाने वाला त्योहार है, जो विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना का प्रतीक है। विवाहित महिलाओं के अलावा जिन युवतियों का विवाह तय हो चुका है, वे भी यह व्रत रख सकती हैं।
करवा चौथ का महत्व केवल धार्मिक मान्यताओं तक ही सीमित नहीं है; इसमें वास्तु शास्त्र से जुड़ी कई मान्यताएं भी हैं, जो वैवाहिक जीवन में शांति और सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखने का सुझाव देती हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार, इन नियमों का पालन करने से जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और स्थिरता बनी रहती है।
करवा चौथ पर ससुराल में सरगी से लेकर करवा चौथ पूजा तक, हर चीज के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है। पहली बार करवा चौथ रख रही नवविवाहिताएं इस दिन कुछ बातों का विशेष ध्यान रखें।
करवा चौथ व्रत की सभी तैयारियां एक दिन पहले ही पूरी कर लेना सबसे अच्छा होता है। चाहे वह आभूषण हों, वस्त्र हों या पूजा सामग्री, सब कुछ पहले से ही इकट्ठा कर लें।
करवा चौथ के दिन सबसे पहले सुबह सही समय पर सरगी ग्रहण करें। सरगी एक प्रकार का भोजन या नाश्ता है जो करवा चौथ का व्रत शुरू करने से पहले खाया जाता है। सरगी का सेवन सूर्योदय से पहले करना चाहिए। सरगी में सूखे मेवे, फल और हल्का भोजन शामिल होता है जो पूरे दिन ऊर्जा प्रदान करता है। सरगी में किसी भी तामसिक वस्तु का सेवन करने से बचें।
सरगी की दिशा का ध्यान रखना चाहिए। सरगी ग्रहण करने के लिए दक्षिण-पूर्व दिशा सबसे उपयुक्त मानी जाती है, क्योंकि यह सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर होती है।
पूजा के दौरान सही दिशा का चुनाव भी महत्वपूर्ण है। करवा चौथ की पूजा करते समय कभी भी दक्षिण दिशा की ओर मुख न करें। अपनी मनोकामनाएँ पूरी करने और घर में सुख-शांति बनाए रखने के लिए पूजा करते समय उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करें।
करवा चौथ व्रत कथा सुनना या पढ़ना भी पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसे उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके सुनना शुभ माना जाता है। यह दिशा ज्ञान और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक है, जो व्रत की सफलता में योगदान देती है और वैवाहिक जीवन में स्थिरता लाती है।
वास्तु के अनुसार, चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए उत्तर-पश्चिम दिशा भी सर्वोत्तम है। चंद्रमा को दूध मिला जल अर्पित करना शुभ माना जाता है, क्योंकि इससे पति की आयु और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।
पारंपरिक पूजा की थाली में जल, लाल सिंदूर, फूल, मिठाई और दीपक भी आवश्यक हैं। इन वस्तुओं का उचित संयोजन व्रत की ऊर्जा को बढ़ाता है और घर में सौभाग्य लाता है।
करवा चौथ पर महिलाओं को लाल या पीले रंग की चूड़ियां पहननी चाहिए, क्योंकि ये रंग शुभता और सकारात्मकता का प्रतीक हैं। इन रंगों को पहनने से न केवल घर में सकारात्मकता आती है, बल्कि पति-पत्नी के बीच संबंध भी प्रगाढ़ होते हैं।
इस वर्ष, करवा चौथ तिथि 9 अक्टूबर को रात 10:54 बजे शुरू होगी और 10 अक्टूबर को शाम 7:38 बजे तक रहेगी। हालांकि, करवा चौथ व्रत रखने के लिए चंद्रोदय का समय और तिथि महत्वपूर्ण हैं। इस बार, चतुर्थी तिथि 9 अक्टूबर को देर रात शुरू होगी, लेकिन चंद्रमा उस दिन तृतीया तिथि को उदय होगा, जबकि चंद्रमा 10 अक्टूबर को चतुर्थी तिथि के बाद उदय होगा। इसलिए, पारंपरिक गणना के अनुसार, इस वर्ष करवा चौथ व्रत शुक्रवार, 10 अक्टूबर को रखा जाएगा। इस दिन चंद्रमा 8ः12 बजे उदय होगा।
हिंदू धर्म में चंद्रमा को देवता माना जाता है। ब्रह्मांड के संचालन में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। शास्त्रों में चंद्रमा को औषधि और मन का अधिष्ठाता देवता माना गया है। इसकी किरणें पौधों और मानव मन को प्रभावित करती हैं। व्रत के बाद जब महिलाएं छलनी से चांद को देखती हैं, तो उनके मन में अपने पति के प्रति निस्वार्थ प्रेम की भावना जागृत होती है।
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